देशभर में लागू होगी 'समान नागरिक संहिता'! विधि आयोग ने जनता से मांगी सलाह, ऐसे दें अपनी राय

नई दिल्ली: समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code- UCC) को लेकर विधि आयोग (Law Commission) ने एक बार फिर से देशवासियों से राय मांगी है। इसको लेकर देश के प्रबुद्ध लोगों और तमाम धर्मों के मान्यता प्राप्त प्रमुख धार्मिक संगठनों से राय देने को कहा गया है। विधि आयोग ने बुधवार (14 जून) को कहा कि 22वें विधि आयोग ने UCC के संबंध में मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के विचारों को जानने के लिए फिर से फैसला लिया है। आयोग ने कहा कि जिन लोगों को इसमें दिलचस्पी है और अपनी राय देना चाहते हैं, वे राय दे सकते हैं।

 

विधि आयोग ने कहा कि जो लोग इस मामले पर अपनी राय रखना चाहते हैं, वे नोटिस जारी करने की तारीख के 30 दिनों के अंदर इससे संबंधित लिंक पर करके अपनी राय भेज सकते हैं। इसके साथ ही, भारत सरकार के विधि आयोग को Membersecretary-lci@gov.in पर ईमेल के जरिए भी राय भेज सकते हैं। कानूनी पैनल ने आगे कहा कि, 'शुरुआत में भारत के 21वें विधि आयोग ने UCC पर विषय की जाँच की थी और 7 अक्टूबर 2016 को एक प्रश्नावली दी थी। इसके साथ ही, 19 मार्च 2018 एवं 27 मार्च 2018 और 10 अप्रैल 2018 की सार्वजनिक अपील/नोटिस देकर सभी हितधारकों को अपने विचार रखने का आग्रह किया था।'

विधि आयोग ने अपने बयान में कहा कि इस अनुरोध पर लोगों से उसे जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली थी। इसके बाद 21वें विधि आयोग ने 31 अगस्त 2018 को ‘पारिवारिक कानून में सुधार’ पर परामर्श पत्र जारी किया था। पैनल ने कहा कि चूंकि परामर्श पत्र जारी किए हुए तीन वर्षों से ज्यादा समय बीत चुका है। ऐसे में विषय की प्रासंगिकता और महत्व के मद्देनज़र तथा इस विषय पर विभिन्न अदालती आदेशों को ध्यान में रखते हुए भारत के 22वें विधि आयोग ने इस पर पहल करना आवश्यक समझा।

क्या है समान नागरिक संहिता :-

बता दें कि, समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानून है, जो देश के हर जाति-धर्म के लोगों पर समान रूप लागू होता है। यानी 140 करोड़ देशवासियों के लिए एक ही कानून होगा। अंग्रेजों ने आपराधिक और राजस्व से संबंधित कानूनों को भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) 1872, भारतीय अनुबंध अधिनियम (ICA) 1872, विशिष्ट राहत अधिनियम 1877 आदि के जरिए सारे समुदायों पर लागू किया, मगर शादी-विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति, गोद लेने आदि से संबंधित मुद्दों को धार्मिक समूहों के लिए उनकी मान्यताओं के आधार पर छोड़ दिया।

स्वतंत्रता के बाद देश के प्रथम पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हिंदुओं के पर्सनल लॉ को समाप्त कर दिया, मगर बंटवारा होने के बावजूद मुस्लिमों के कानून को जस का तस बनाए रखा। हिंदुओं की धार्मिक प्रथाओं के तहत जारी कानूनों को रद्द कर हिंदू कोड बिल के माध्यम से तत्कालीन सरकार ने  हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू नाबालिग एवं अभिभावक अधिनियम 1956, हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 लागू कर दिए। हिन्दू कोड बिल के ये कानून हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख आदि पर समान रूप से लागू होते हैं।

वहीं, मुसलमानों का कानून पर्सनल कानून (शरिया), 1937 के तहत संचालित होता है। इसमें मुस्लिमों के निकाह, तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार, संपत्ति का अधिकार, बच्चा गोद लेना आदि मसले आते हैं, जो इस्लामी शरिया कानून से संचालित होते हैं। यदि UCC लागू होता है, तो मुस्लिमों के निम्नलिखित कानून बदल जाएँगे।  

भारत में केवल गोवा में लागू है UCC:-

बता दें कि, सम्पूर्ण भारत में समान नागरिक संहिता को लागू करने की माँग कई दशकों से हो रही है, मगर देश में गोवा एकलौता ऐसा राज्य है जहाँ UCC लागू है। गोवा में साल 1962 में यह कानून लागू किया गया था। दरअसल, वर्ष 1961 में गोवा के भारत में विलय होने के बाद भारतीय संसद ने गोवा में ‘पुर्तगाल सिविल कोड 1867’ को लागू करने का प्रावधान किया था। इसके तहत गोवा में UCC लागू हो गई और तब से प्रदेश में यह कानून लागू है। कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व CJI एस ए बोबडे ने भी गोवा में लागू समान नागरिक संहिता (UCC) कि प्रशंसा की थी। CJI ने कहा था कि गोवा के पास पहले से ही वह मौजूद है, जिसकी कल्पना संविधान निर्माताओं ने पूरे भारत के लिए की थी।

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