बेंगलुरु : केंद्रीय मंत्री एचडी कुमारस्वामी ने सोमवार को कर्नाटक में स्थानीय निकाय चुनाव कराने में देरी के लिए कांग्रेस सरकार की तीखी आलोचना की। कुमारस्वामी की यह टिप्पणी कर्नाटक सरकार द्वारा रविवार को 'अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस' मनाने के लिए आयोजित मानव श्रृंखला कार्यक्रम के जवाब में आई है। सोशल मीडिया पर कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर "वास्तविक शासन के बजाय प्रचार को प्राथमिकता देने" का आरोप लगाया। उन्होंने तर्क दिया कि मानव श्रृंखला जैसे प्रतीकात्मक इशारों पर सरकार का जोर स्थानीय निकाय चुनावों के ज्वलंत मुद्दे को संबोधित नहीं करता। कुमारस्वामी ने एक्स पर लिखा, "मानव कल्याण को बढ़ावा देने की आड़ में आपने मानव श्रृंखला बनाई, फिर भी @INCKarnataka सरकार लोकतंत्र के प्रति कोई वास्तविक प्रतिबद्धता नहीं दिखाती। अगर वे वास्तव में लोकतांत्रिक सिद्धांतों को महत्व देते, तो वे पहले ही जिला और तालुक पंचायतों और बीबीएमपी सहित स्थानीय निकायों के लिए चुनाव करा चुके होते। लोकतंत्र के इन बुनियादी स्तंभों की उपेक्षा क्यों की जा रही है?" उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि सिद्धारमैया प्रशासन स्थानीय निकाय चुनाव कराए बिना एक साल और चार महीने से अधिक समय से सत्ता में है। कुमारस्वामी ने कहा, "आपका (सिद्धारमैया का) लोकतंत्र और लोगों को ध्यान में रखकर बनाया गया दृष्टिकोण केवल विज्ञापनों में ही दिखाई देता है। आपके कार्य वास्तविक शासन के बजाय प्रचार पर अधिक केंद्रित प्रतीत होते हैं।" कुमारस्वामी ने यह भी सवाल उठाया कि क्या असहमति को दबाना और करदाताओं के पैसे का दुरुपयोग लोकतंत्र को बढ़ावा देने के रूप में उचित ठहराया जा सकता है। उन्होंने कहा कि "क्या असहमति की आवाज़ों को दबाना डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के सिद्धांतों के साथ विश्वासघात है? क्या मानव श्रृंखला के ज़रिए लोकतंत्र को बचाया जा सकता है? क्या करदाताओं के पैसे का दुरुपयोग लोकतंत्र को सुशोभित करने का एक तरीका है? पहले स्थानीय निकाय चुनावों की घोषणा करें। सच्ची लोकतांत्रिक श्रृंखला को मज़बूत करें।" रविवार को कर्नाटक ने 2,500 किलोमीटर लंबी मानव श्रृंखला बनाकर 'अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस' मनाया, जो समानता, एकता, बंधुत्व और सहभागी शासन का प्रतीक है। कार्यक्रम के दौरान, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने विधान सौधा की भव्य सीढ़ियों पर उपस्थित लोगों को संबोधित किया और संविधान में निहित बहुलवाद को बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने 25 नवंबर, 1949 को डॉ. बीआर अंबेडकर के भाषण का संदर्भ दिया, जिसमें उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि सच्ची राजनीतिक स्वतंत्रता तभी सार्थक हो सकती है जब उसके साथ आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र भी हो। सिद्धारमैया ने कहा कि जब तक भारत में असमानता बनी रहेगी, तब तक राजनीतिक स्वतंत्रता का वास्तविक महत्व नहीं रहेगा। 'केजरीवाल को अपनी ईमानदारी पर भरोसा..', इस्तीफे की चर्चाओं के बीच सौरभ भरद्वाज का बयान 'भारत ने तय वक्त से पहले हासिल किया लक्ष्य..', पेरिस जलवायु समझौते पर बोले PM मणिपुर के 5 जिलों में बहाल हुआ इंटरनेट, हिंसा के चलते किया था बंद