उस्ताद अमजद अली खान जिन्हे तहजीब और मौसिकी की मिसाल भी कहा जाता है. उस्ताद अमजद अली खान सेनिया बंगश घराने की छठी पीढ़ी के सरताज थे. अमजद अली खान को संगीत तो विरासत से प्राप्त हुई थी. अमज़द अली खान के संगीत में ऐसी कशिश हैं कि जो भी उन्हें सुनना शुरू करता हैं वो सुनते ही जाता हैं. अमजद अली खान जिन्हे सरोद वादक भी कहा जाता हैं. इस घराने के लोग ही ईरान के लोकवाद्य ‘रबाब’ को भारत में लाए थे और फिर इसे भारतीय संस्कृति के अनुकूल कर रबाब से सरोद में परिवर्तित कर दिया. उस्ताद अमजद अली खान ने महज 12 वर्ष की उम्र में ही सरोद-वादन का एकल प्रदर्शन किया था. उस समय इस नन्हे बालक की कला देखकर तो दिग्गज संगीतज्ञ भी हैरान रह गए थे. अमजद साहब ने सरोद वादन में परंपरागत तरीके से तकनीकी दक्षता हासिल की थी. अमजद साहब कहते हैं कि उन्हें कोई पैसा या अवार्ड नहीं चाहिए वो तो बस किसी भी समारोह में प्रस्तुति देने की भीख मांगते हैं. अमजद ने संगीत में तो कई परिवर्तन किये ही हैं इसके साथ ही उन्होंने बच्चों के लिए भी गायन और वाद्य संगीत की रचना की हैं. अमजद ने कई तरह की रागों की रचना की हैं जिनमे शिवांजली, हरिप्रिया कानदा, किरण रंजनी, सुहाग भैरव, ललित ध्वनि, श्याम श्री और जवाहर मंजरी मुख्य रूप से शामिल हैं. अमजद खान साहब ने इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी की याद में राग प्रियदर्शनी और राग कमलश्री की भी रचना की थी. महज 18 वर्ष की उम्र में पहली बार अमजद साहब विदेश यात्रा पर गए थे. इस दौरान उन्होंने पण्डित बिरजू महाराज के नृत्य-दल के साथ सरोद वादन की प्रस्तुति दी थी. इसके अलावा भी उन्होंने दुनियाभर के कई बड़े देशो में अपनी इस बेहतरीन कला का परचम लहराया हैं. सरोद वादन में अमजद साहब ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की हैं. अमज़द साहब ने भरतनाट्यम नृत्यांगना शुभलक्ष्मी से शादी की थी. उनके दो बेटे अमान और अयान अली अब देश-विदेषों में सरोद वादन की पताका फहरा रहे हैं. वे अपने सरोद वादन के प्रदर्शन से सभी को मंत्रमुग्ध कर लेते हैं. उस्ताद अमजद अली खान को उनकी सरोद वादन की कला के लिए अब तक कई सम्मान भी मिल चुके हैं जिसमे भारत रत्न, पद्म भूषण और पद्म विभूषण भी शामिल हैं. Video : टॉयलेट के गड्ढे में फंसा लड़की का पैर, जिसने देखा हैरान रह गया देश का सबसे खूबसूरत शहर बना इंदौर... बच्चे को मारने पर पिता ने प्रिंसिपल का किया ऐसा हाल