नई दिल्ली: केरल के बाद उत्तर प्रदेश, उन राज्यों की सूची में सबसे ऊपर है जहां भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के तहत समलैंगिक यौन संबंध के लिए अधिकतम संख्या दर्ज की गई थी, जिसे कुछ ही दिन पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा संशोधित किया गया है. कुल मिलाकर, धारा 377 के तहत 2014 और 2016 के बीच 4690 मामले दर्ज किए गए, जिसमे अप्राकृतिक यौन सम्बन्ध बनाने के कारण उन्हें अपराध ठहराया गया है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, 2016 में धारा 377 के तहत 2195 समलैंगिक यौन मामले दर्ज किए गए थे, 2015 में 1347 और 2014 में 1148 मामले थे. हांगकांग को मिला अंतर्राष्ट्रीय टीम का दर्जा, एशिया कप में भारत और पाक से होगी टक्कर उत्तर प्रदेश में 2016 में सूची में शीर्ष स्थान पर रहा, जिसमे 999 मामले दर्ज किए गए, वहीं केरल इस मामले में दूसरे स्थान पर रहा, केरल में साल 2016 में धारा 377 के तहत 207 मामले दर्ज किए गए थे. दिल्ली में 183 और महारष्ट्र में 170 समलैंगिक यौन संबंधों के मामले दर्ज किए गए थे. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2015 में, धारा 377 के तहत सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए थे, 2015 में यूपी में 239 समलैंगिक मामले दर्ज किए गए थे. मॉब लिंचिंग पर उपराष्ट्रपति नायडू का बड़ा बयान 2015 में, केरल और महाराष्ट्र में 159 समलैंगिक यौन संबंध दर्ज किए गए, हरियाणा में 111 मामले सामने आए और पंजाब ने 81 ऐसे मामले दर्ज किए. हालांकि, 2015 में देश में पंजीकृत 1347 मामलों में से 814 मामलों में पीड़ित बच्चे थे, इन 814 मामलों में से 179 उत्तर प्रदेश में, केरल में 142, महाराष्ट्र में 116 और हरियाणा में 63 मामले थे. गृह मंत्रालय ने कहा है कि जिन भी लोगों के खिलाफ धारा 377 के अंतर्गत मामला दर्ज हुआ है, वे 6 सितम्बर के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का लाभ ले सकते हैं. खबरें और भी:- केरल नन रेप केस: विधायक ने बताया नन को वेश्या, एनसीडब्ल्यू ने की कार्यवाही की मांग म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों की मुश्किलें बढ़ी, सरकार ने अंतरराष्ट्रीय कोर्ट का भी आदेश किया खारिज दागी नेताओं पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, पूछा किस पार्टी में कितने बदमाश