वाराणसी: 48 में से 38 मिनिट तक पीएम मोदी ने अलापा 'राग बीजेपी'

वाराणसी: 2019 के लोक सभा चुनाव की तारीखें नज़दीक आती जा रही हैं, ऐसे में हर राजनितिक पार्टी अपना गुणगान और विपक्ष की गलतियां गिनवाकर जनता को अपने हक़ में करना चाहती है. फिर चाहे वो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी हो या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. दोनों के पास जनता से बात करते समय मात्र दो ही विषय रहते हैं, अपनी पार्टी की उपलब्धियां गिनवाना और विपक्ष पर चुन चुनकर इल्जाम लगाना फिर चाहे वो झूठे या बेबुनियाद ही क्यों न हो ? वर्तमान में पीएम मोदी वाराणसी के दो दिवसीय दौरे पर है, जहां सोमवार को उन्होंने स्कूली बच्चों के साथ अपना 68वां जन्मदिन भी मनाया.

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इसके अगले दिन आज अपने दौरे के अंतिम दिन उन्होंने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में एक सभा को भी सम्बोधित किया. वैसे तो पीएम मोदी अपना लम्बे -लम्बे भाषणों के लिए जाने जाते हैं, लेकिन आज उनके भाषण में एक दिलचस्प बात देखने को मिली. पीएम मोदी ने 48 मिनिट के अपने भाषण में 38 मिनिट तक मात्र भाजपा सरकार की उपलब्धियां ही गिनाई. बाकि के 10 मिनिट उनके 'भाइयों, बहनों और मित्रों' वाली पंक्तियों ने खा लिए. अब इस पर सवाल ये उठता है कि पीएम वहां जनता से संवाद स्थापित करने गए थे या उन्हें ये बताने की मोदी सरकार ने उनपर कितने अहसान किए हैं. 

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अक्सर हमारे साथ यही होता आया है, हमे लगता है कि कोई राजनेता हमारे क्षेत्र में आ रहा है तो वो हमारी समस्याएं सुनने के लिए आ रहा है, लेकिन वो हमारी सुनने नहीं बल्कि अपनी सुनाने आता है और सुनाकर चलते बनता है और हम भी आखिरी तक बस यही आस लगाए बैठे हैं कि शयद राजनेता अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते-बनते थक कर ही हमारे हक़ की कुछ बात कर लेंगे. लेकिन आज तक वो दिन नहीं आया, न वो थके और न हमारे हक़ की बात हुई.

सरकार का दोहरा मापदंड 

भारत की जनता पीएम से धारा 370, अनुच्छेद 35 A , एससी/एसटी एक्ट, आए दिन पाकिस्तान द्वारा किया जा रहा संघर्षविराम का उल्लंघन, शेल्टर होम्स में हो रहे घिनोने कृत्य, राम मंदिर आदि कई सारे मुद्दों पर जवाब मांगती है तो पीएम कह देते हैं कि इस मामले में शीर्ष अदालत फैसला करेगी. यहाँ भी भाजपा का दोहरा मापदंड देखने को मिलता है, एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी बीजेपी द्वारा संसद में लाकर पलट दिया गया था, वहीं जब बात देश की अखंडता (धारा 370) की आती है तो सरकार शीर्ष अदालत के प्रति ऐसा सम्मान प्रकट करती है, जैसे अगर अदालत आदेश दे दे, तो ये जगह से न हिलें. कुल मिलकर बात ये है कि आगे भी यही चलता रहेगा क्योंकि हमे सुनने की आज़ादी है और अब तो आदत भी, पर बोलने की न तो ताक़त है और न ही अधिकार. 

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