बहुत ही कम लोग महाभारत युद्ध के इस सत्य को जानते है

महाकाव्य कहे जाने वाले महाभारत के विषय में तो सभी लोग परिचित होंगे. लेकिन कुछ बातें ऐसी भी है, जिनसे अब तक पर्दा नहीं उठा है. उन्ही में से एक बात ऐसी है, जिसके बारे में बहुत कम ही लोग जानते है. दरअसल महाभारत युद्ध में एक ऐसा वीर था, जिसे हरा पाना अर्जुन के लिए भी बहुत कठिन था. लेकिन भगवान कृष्ण और इन्द्रदेव कि सहायता से अर्जुन ने आसानी से उस वीर को पराजित कर दिया. वह वीर योद्धा और कोई नहीं बल्कि कुंती पुत्र कर्ण था. आइये जानते है, कि किस कारण से कर्ण को हराना अर्जुन के लिए मुश्किल था? और किस प्रकार इंद्र व कृष्ण ने कर्ण को मारने में अर्जुन कि सहायता कि थी?

विवाह से पुर्व कुंती को सूर्यदेव से एक वरदान प्राप्त था, जिसकी सहायता से उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया. किन्तु अपनी बदनामी के डर से कुंती ने अपने पुत्र को एक टोकरी में रखकर नदी में छोड़ दिया था. जिसका नाम कर्ण था, जिसके शरीर पर जन्म के साथ ही दिव्य कवच व कुंडल थे, जो किसी भी अस्त्र शास्त्र से कर्ण कि रक्षा करने में सक्षम थे.

महाभारत के युद्ध में जब कर्ण को सेनापति बनाया गया, तब भगवान कृष्ण को ज्ञात था, कि उसे पराजित कर पाना या उसका वध करना किसी के लिए भी संभव नहीं है. और वह यह भी जानते थे, कि यदि कोई कर्ण से उनकी संध्या पूजा समाप्त हो जाने के बाद कुछ भी दान में मांगते तो वह किसी को मना नहीं करता था. इसलिए भगवान कृष्ण कि आज्ञा से इंद्रदेव ने एक ब्राम्हण का रूप धारण कर कर्ण से उनकी संध्या पूजा समाप्त होने के बाद दिव्य कवच व कुंडल दान में मांग लिए जिसे सहर्ष ही कर्ण ने दान कर दिया. 

जब इन्द्रदेव वह कवच व कुंडल लेकर स्वर्ग के लिए निकले तो उनके रथ का पहिया जमीन में धंस गया और एक आकाशवाणी हुई कि तुमने कर्ण के साथ छल किया है और यदि तुम उसे इस दिव्य कवच व कुंडल के बराबर कोई अन्य वस्तु नहीं देते तो तुम इस समस्या से बाहर नहीं निकल पाओगे. तब इंद्रदेव ने कर्ण को अपना वज्र दिया और कहा कि तुम इसका प्रयोग केवल एक बार ही कर पाओगे. और कर्ण ने वज्र का प्रयोग घतोत्कच पर किया था. तथा कवच व कुंडल नहीं होने के कारण अर्जुन ने भी कर्ण का वध कर दिया.

 

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