नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ आज एक बेहद महत्वपूर्ण मामले पर अपना फैसला सुनाने वाली है। दरअसल, भारत में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर आज मंगलवार (17 अक्टूबर) को अपना फैसला सुनाएगी। 10 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद मई में फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। इस मामले को देश में LGBT अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है, खासकर सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले के बाद जिसने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्र, कुछ राज्यों और कई याचिकाकर्ताओं और संगठनों को 10 दिनों तक सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने मई में लगातार 10 दिनों तक 40 शीर्ष वकीलों की दलीलें सुनीं। शीर्ष अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि उन्हें केवल समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता की आवश्यकता है और अदालत से विशेष विवाह अधिनियम 1954 के प्रावधानों की फिर से व्याख्या करने का आग्रह किया। दूसरी तरफ, कई याचिकाओं का विरोध करते हुए, केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि समलैंगिक विवाह को वैध बनाना अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं है और यह संसद का काम है कि वह राज्यों के साथ परामर्श के बाद इस पर कानून बनाए। केंद्र ने शीर्ष अदालत से यह भी कहा कि अगर इसे मान्यता दी गई तो कई कानूनों में संशोधन करना होगा। अदालती सत्र में, सरकार ने कैबिनेट सचिव के नेतृत्व में एक समिति बनाने की अपनी इच्छा व्यक्त की। यह समिति बैंकिंग और बीमा जैसे पहलुओं में समलैंगिक जोड़ों के सामने आने वाली रोजमर्रा की चुनौतियों पर गौर करेगी। हालाँकि, यह समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता के उनके अनुरोध को संबोधित नहीं करेगा। केंद्र ने अदालत को यह भी बताया कि उसे इस मुद्दे पर सात राज्यों से प्रतिक्रियाएं मिली हैं और राजस्थान, आंध्र प्रदेश और असम की सरकारों ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का विरोध किया है। हालाँकि, सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह इस मुद्दे को केवल विशेष विवाह अधिनियम तक ही सीमित रखेगी और व्यक्तिगत कानूनों के क्षेत्र में प्रवेश नहीं करेगी। याचिकाकर्ताओं ने हवाला दिया है कि केवल यौन रुझान के आधार पर लोगों के एक वर्ग से शादी करने का अधिकार नहीं रोका जा सकता है। याचिकाओं के समूह ने हिंदू विवाह अधिनियम, विदेशी विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों को इस हद तक चुनौती दी है कि वे समान-लिंग विवाह को मान्यता नहीं देते हैं। फिलिस्तीनी दूत से मिले विपक्षी दलों के कई नेता, गाज़ा की पीड़ा पर जताई चिंता, आतंकियों द्वारा नग्न घुमाई गईं महिलाओं पर एक शब्द नहीं ! 'अगर कांग्रेस सत्ता में लौटी तो तुष्टिकरण ही करती रहेगी..', छत्तीसगढ़ में सरकार पर अमित शाह का हमला 1974 से 1998 तक 'परमाणु परिक्षण' क्यों नहीं कर पाया भारत ? कमलनाथ ने लीक की थी जानकारी - Wikileaks की रिपोर्ट में दावा