नई दिल्ली: इन दिनों म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमान का मुद्दा दुनिया भर में छाया हुआ हैं. म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमान जिस भी देश में भी शरण ले रहे हैं. वहाँ उन्हें हमदर्दी की बजाय आंतरिक सुरक्षा के मद्दे नजर शक की निगाह से देखा जा रहा हैं. क्योंकि बेहद गरीब. वंचित रोहिंग्या समुदाय पर आतंकवादियों से सम्बंध होने के भी आरोप लगते रहे हैं.समस्या की मूल जड़ यही हैं. म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिम उपेक्षित हैं. उल्लेखनीय हैं कि भारत में भी करीब 40. 000 रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं जिन्हे सरकार आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा मानती है.सरकार का शक करना भी वाजिब हैं. क्योंकि सरकार को खुफिया इनपुट मिले हैं कि पाकिस्तान से संचालित आतंकी समूह इन्हें अपने चंगुल में लेने की साजिश रच रहे हैं. ऐसे में सरकार भारत में शरण ले चुके 40 हजार रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने का मन बना रही हैं. सबसे अधिक चौंकाने वाली बात तो यह हैं कि रोहिंग्या सुन्नी मुस्लिम बांग्लादेश के चटगांव में प्रचलित बांग्ला बोलते हैं. अपने ही देश में बेगाने हो चुके इन रोहिंग्या मुस्लिमों को कोई भी देश अपनाने को तैयार नहीं. म्यांमार खुद उन्हें अपना नागरिक नहीं मानता.जबकि वहाँ इनकी संख्या 10 लाख के आसपास है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप सामने आये हैं. जबकि शांति के लिए नोबेल पुरस्कार पा चुकीं म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू की पर इन पर अत्याचार करने को लेकर आलोचना हुई हैं.रोहिंग्या बहुल रखाइन प्रांत में पत्रकारों के जाने पर प्रतिबंध हैं. जिसकी एम्नेस्टी इंटरनेशनल ने आपत्ति ले चुका है. यह भी देखें रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर जारी हिंसा पर मलाला ने आंग सान सू ची से किये सवाल म्यांमार को मिला भारत का साथ, आंग सान सू की- मोदी मुलाक़ात