लखनऊ: उत्तर प्रदेश के बरेली जिले से एक और मंदिर पर अवैध कब्जे की चौंकाने वाली खबर सामने आई है। बताया जा रहा है कि लगभग 150 से 250 साल पुराना यह मंदिर धीरे-धीरे मुस्लिमों के कब्जे में चला गया। मामला बरेली के किला थाना क्षेत्र के कटघर इलाके का है, जहाँ राकेश सिंह नाम के व्यक्ति ने दावा किया है कि उनके पूर्वजों ने गंगा महारानी का एक भव्य मंदिर बनवाया था, जो वर्षों तक हिन्दुओं की आस्था का केंद्र रहा। राकेश सिंह के अनुसार, लगभग 50 साल पहले मंदिर के एक हिस्से को सहकारी समिति के लिए किराए पर दिया गया था। इसके बाद वहाँ एक चौकीदार के रूप में वाजिद अली नाम का व्यक्ति आया। लेकिन धीरे-धीरे उसने पूरे मंदिर पर कब्जा जमा लिया। न केवल उसने मूर्तियाँ गायब करवा दीं, बल्कि पूजा-पाठ भी बंद करवा दिया। फिर इस मंदिर को मकान में तब्दील कर इस्लामिक झंडा लगा दिया गया।जब इस मामले ने तूल पकड़ा, तो प्रशासन ने तुरंत जाँच शुरू की। हिन्दू संगठनों ने भी इस मुद्दे को उठाया और मकान पर लगे हरे झंडे को हटाकर भगवा ध्वज फहरा दिया। ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाए गए, जिसके बाद पुलिस और प्रशासन ने मौके पर पहुँचकर शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए फोर्स तैनात की। जाँच के बाद यह सामने आया कि वाजिद अली और उसके बेटे उस मकान में अवैध रूप से रह रहे थे और सहकारी समिति के सदस्य भी नहीं थे। प्रशासन ने उन्हें मकान खाली करने का निर्देश दिया, जिसके बाद उन्होंने मकान छोड़ दिया। फिलहाल, मकान को सील कर दिया गया है और राकेश सिंह के दावे की जाँच जारी है। यह मामला केवल एक मंदिर का नहीं है, बल्कि एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करता है। इतिहास गवाह है कि भारत में कई बार मंदिरों को तोड़ा गया और उनकी जगह मस्जिदें बनाई गईं। महमूद गज़नी, मोहम्मद गौरी, बाबर और औरंगज़ेब जैसे आक्रमणकारियों ने मंदिरों को ध्वस्त कर उनकी मूर्तियों को खंडित किया। बाबरी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। आधुनिक समय में भी यह सिलसिला जारी है। 2001 में तालिबान ने अफगानिस्तान के बामियान में विश्व प्रसिद्ध बुद्ध की मूर्तियों को विस्फोटकों से उड़ा दिया। बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी मंदिरों पर हमले किए जाते रहे हैं, जहाँ इस्लामी कट्टरपंथियों ने हिंदू धर्मस्थलों को नष्ट करने की कोशिशें जारी रखी हैं। बरेली की घटना सवाल खड़े करती है कि क्या भारत में भी मुस्लिम आबादी बढ़ने के बाद दूसरे धर्मों पर इसी तरह के हमले जारी रहेंगे? क्या यह सिलसिला सिर्फ एक संयोग है, या इसके पीछे कट्टर इस्लामी मानसिकता काम कर रही है, जो मूर्तियां तोड़ने को पुण्य का काम मानती हैं? हिंदू संगठन और स्थानीय लोग बार-बार यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या मुसलमानों की बढ़ती आबादी का सीधा संबंध धार्मिक स्थलों पर कब्जे और दूसरे धर्मों को दबाने की कोशिश से है? इस मामले में प्रशासन का हस्तक्षेप सराहनीय है, लेकिन यह भी सोचना जरूरी है कि ऐसी घटनाएँ बार-बार क्यों हो रही हैं? क्या यह इस्लामी कट्टरपंथियों की योजना का हिस्सा है, जो धीरे-धीरे हिंदू संस्कृति और सभ्यता को मिटाने की दिशा में काम कर रहे हैं? इतिहास बताता है कि जहाँ भी मुसलमान बहुसंख्यक हुए, वहाँ दूसरे धर्मों के लिए जगह कम हो गई। पाकिस्तान और बांग्लादेश इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं, जहाँ हिंदुओं की आबादी तेजी से घट गई। अफगानिस्तान में तो हिंदू और सिख लगभग खत्म ही हो गए। बरेली की घटना इसी कट्टरता की ओर इशारा करती है। क्या मुसलमान तादाद बढ़ने के बाद दूसरे समुदायों को शांति से नहीं रहने देते? क्या उनका मकसद धीरे-धीरे अन्य समुदायों को समाप्त करना ही है? यह सवाल हर भारतीय के मन में उठ रहा है कि अगर आज बरेली का यह मंदिर नहीं बचता, तो कल देश के बाकी मंदिरों का क्या होगा? क्या हम अपने इतिहास से कोई सबक लेंगे या फिर इसे भी नजरअंदाज कर देंगे? बरेली का यह मामला प्रशासन और न्याय प्रणाली के लिए एक परीक्षा है। क्या न्याय हिंदू पक्ष के साथ होगा? क्या मंदिर में फिर से पूजा शुरू होगी? या फिर यह मामला भी अन्य घटनाओं की तरह दबा दिया जाएगा? देश के जागरूक नागरिकों और प्रशासन को अब इस तरह की घटनाओं को लेकर सतर्क रहना होगा, ताकि धर्मस्थलों की रक्षा की जा सके और कट्टरता को जड़ से खत्म किया जा सके। अगर अभी कार्रवाई नहीं हुई, तो यह समस्या भविष्य में और विकराल रूप ले सकती है। तमिलनाडु में शान से निकला 'आतंकी' का जनाजा, हज़ारों मुस्लिम हुए शामिल, लेकिन विरोध करने वाले गिरफ्तार पिथौरागढ़ में दरके पहाड़..! दो दर्जन से अधिक वाहन भूस्खलन में फंसे, देखें खौफनाक Video आज 'विश्व ध्यान दिवस' मना रही दुनिया, भारत का दिया अनमोल तोहफा है 'ध्यान', जानिए इसके बारे में..