नई दिल्ली: 6 सितंबर, शुक्रवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने वक्फ संशोधन विधेयक, 2024 की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के सामने अपनी प्रस्तुति दी और इस विधेयक का समर्थन किया। यह प्रस्तुति JPC की चौथी बैठक में दी गई थी। रिपोर्ट्स के अनुसार, ASI ने पूरे भारत में 120 ऐतिहासिक स्मारकों पर वक्फ बोर्डों के साथ चल रहे विवादों का जिक्र करते हुए विधेयक का समर्थन किया। JPC की बैठक के दौरान काफी गरमागर्म चर्चाएं हुईं, जहां संस्कृति मंत्रालय के अधिकारियों ने वक्फ बोर्डों की मनमानी शक्तियों की ओर इशारा किया, जबकि विपक्षी सदस्यों ने वक्फ बोर्डों का बचाव किया। सूत्रों के मुताबिक, ASI ने JPC के सामने संरक्षित स्मारकों और स्थलों में वक्फ से जुड़े मुद्दों पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कई ऐतिहासिक स्मारकों पर वक्फ बोर्डों के दावों से क्या समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं और वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक क्यों जरूरी है। 1995 के वक्फ अधिनियम के तहत, वक्फ बोर्ड को यह अधिकार है कि वह किसी भी संपत्ति या इमारत को दान के आधार पर वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है। इसी अधिकार के तहत वक्फ बोर्डों ने संरक्षित स्मारकों को वक्फ संपत्ति घोषित करने की अधिसूचनाएं जारी की हैं, जिससे 1958 के प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम के तहत दिए गए अधिकारों में टकराव हो रहा है। बैठक के बाद शिवसेना (शिंदे गुट) के नेता और JPC के पैनलिस्ट नरेश म्हास्के ने मीडिया को बताया कि वक्फ बोर्डों की संपत्तियों का उपयोग गरीबों के कल्याण के लिए नहीं किया जा रहा है, और इसी वजह से वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक लाया गया है। म्हास्के ने बताया कि ASI ने कहा कि कई संपत्तियों पर वक्फ ने बिना सबूत के दावा किया है, जो पहले भारत सरकार द्वारा संरक्षित थीं। विपक्ष के विरोध को लेकर म्हास्के ने कहा कि विपक्षी दल सिर्फ विरोध की प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं और यह देख रहे हैं कि कौन इस विधेयक के खिलाफ अधिक भाषण दे सकता है। वक्फ संशोधन विधेयक, जिसे राज्य वक्फ बोर्डों की शक्तियों, वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण, सर्वेक्षण और अतिक्रमण हटाने से जुड़े मुद्दों का समाधान करना है, 8 अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया था। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने इस विधेयक को पेश किया। विपक्षी दलों, जिनमें कांग्रेस, डीएमके, एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस और AIMIM शामिल हैं, ने इसका विरोध किया। उनका कहना था कि यह विधेयक संघवाद और संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है। कई विपक्षी सदस्यों ने इसे स्थायी समिति को भेजने की मांग की, जिसे रिजिजू ने स्वीकार किया। प्रस्तावित विधेयक के तहत, वक्फ अधिनियम (1995) का नाम बदलकर एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995 किया गया है। मसौदा में बोहरा और आगाखानियों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्डों की स्थापना और मुस्लिम समुदायों के विभिन्न वर्गों के साथ-साथ गैर-मुस्लिमों को भी प्रतिनिधित्व देने का प्रस्ताव है। क्या है वक्फ एक्ट और इसके पास कितने अधिकार :- वक्फ अधिनियम को पहली बार नेहरू सरकार द्वारा 1954 में संसद द्वारा पारित किया गया था। इसके बाद, इसे निरस्त कर दिया गया और 1995 में एक नया वक्फ अधिनियम पारित किया गया, जिसमें वक्फ बोर्डों को और अधिक अधिकार दिए गए। 2013 में, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इसे असीमित अधिकार दे दिए। जिसके बाद ये प्रावधान हो गया कि अगर वक्फ किसी संपत्ति पर दावा ठोंक दे, तो पीड़ित अदालत भी नहीं जा सकता, ना ही राज्य और केंद्र सरकारें उसमे दखल दे सकती हैं। पीड़ित को उसी वक्फ के ट्रिब्यूनल में जाना होगा, जिसने उसकी जमीन हड़पी है, फिर चाहे उसे जमीन वापस मिले या ना मिले। यही कारण है कि बीते कुछ सालों में वक्फ की संपत्ति दोगुनी हो गई है, जिसके शिकार अधिकतर दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के लोग ही होते हैं। वक्फ कई जगहों पर दावा ठोंककर उसे अपनी संपत्ति बना ले रहा है और आज देश का तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक है। रेलवे और सेना के बाद सबसे अधिक जमीन वक्फ के पास है, 9 लाख एकड़ से अधिक जमीन। हर साल वक्फ का सर्वे होता है और उसकी संपत्ति बढ़ जाती है, पूरे के पूरे गांव को वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया जाता है और कहीं सुनवाई भी नहीं होती। गौर करने वाली बात तो ये है कि, रेलवे और सेना की जमीन के मामले अदालतों में जा सकते हैं, सरकार दखल दे सकती है, लेकिन वक्फ अपने आप में सर्वेसर्वा है। उसमे किसी का दखल नहीं और ना ही उससे जमीन वापस ली जा सकती है। मोदी सरकार इसी असीमित ताकत पर अंकुश लगाने के लिए बिल लाइ है, ताकि पीड़ित कम से काम कोर्ट तो जा सके और वक्फ इस तरह हर किसी की संपत्ति पर अपना दावा न ठोक सके। इस बिल को विपक्ष, मुस्लिमों पर हमला बताकर विरोध कर रहा है। सरकार ने विपक्ष की मांग को मानते हुए इसे JPC के पास भेजा है, जहाँ लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सांसद मिलकर बिल पर चर्चा करेंगे और इसके नफा-नुकसान का पता लगाएंगे। JPC के कुछ सदस्यों ने जनता से भी उनका पक्ष रखने के लिए कहा है, देखा जाए तो हर भारतीय को इस पर अपने विचार रखने चाहिए, क्योंकि इस देश की जमीन पर सबका अधिकार है। सुझाव भेजने का पता जॉइंट सेक्रेटरी (JM), लोकसभा सचिवालय, रूम नंबर 440, पार्लियामेंट हाउस एनेक्सी, नई दिल्ली, पिन कोड 110001 है। फैक्स नंबर 011-23017709 और ईमेल jpcwaqf-lss@sansad.nic.in पर भी सुझाव भेजे जा सकते हैं। बांग्लादेश में किस 'जाति' के हिन्दू अधिक मारे जा रहे? मोहम्मद यूनुस का बेशर्म बयान क्या जूनियरों का हक मारकर विनेश-बजरंग ने चला सियासी दांव? कांग्रेस पर उठते गंभीर सवाल गिरिराज सिंह ने की देशव्यापी NRC की मांग, बढ़ते घुसपैठियों पर जताई चिन्ता