मुंबई: महाराष्ट्र के लातूर जिले में 100 से अधिक किसान गहरी चिंता और आक्रोश में हैं, क्योंकि वक्फ बोर्ड उनकी पुश्तैनी जमीनों पर दावा कर रहा है। ये जमीनें, जो लगभग 300 एकड़ की हैं, पीढ़ियों से इन किसानों की आजीविका का आधार रही हैं। अब इन किसानों को वक्फ अधिकरण द्वारा नोटिस जारी किए गए हैं, और वे अपनी जमीनें बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। तुकाराम कनवटे जैसे किसान कहते हैं कि यह जमीनें उनकी विरासत हैं, वक्फ की संपत्ति नहीं। किसानों ने महाराष्ट्र सरकार से न्याय की गुहार लगाई है, लेकिन सवाल यह भी उठता है कि क्या विपक्ष के नेता इन किसानों की मदद के लिए आगे आएंगे? देश की राजनीति में विपक्षी दल अक्सर किसानों के समर्थन में बड़े-बड़े दावे करते हैं। खासतौर पर राहुल गांधी, जो लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं, और उनकी बहन प्रियंका गांधी, जो खुद को किसानों की मसीहा के रूप में पेश करती हैं, क्या वे इन परेशान किसानों से मिलने लातूर जाएंगी? क्या वे वक्फ बोर्ड की कथित मनमानी के खिलाफ आवाज उठाएंगी? या फिर यह मामला भी उन मामलों में से एक बन जाएगा, जिन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है? यह भी गौरतलब है कि जब मुस्लिम वोट बैंक से जुड़े मुद्दे सामने आते हैं, तो विपक्षी दलों में उन तक पहुँचने के लिए होड़ मच जाती है, हाल ही में संभल में ऐसा ही हुआ था। जहाँ 144 लागू होने के बावजूद सपा और कांग्रेस के नेता दौरा करने के लिए अड़े हुए थे। सपा नेता तो जेल में जाकर पुलिस पर पथराव करने वाले आरोपियों से भी मिले थे। ऐसे में क्या अब, जब मामला वक्फ संपत्ति से जुड़ा है, विपक्ष का कोई नेता इन किसानों की जमीनें बचाने के लिए खड़ा होगा? क्या वक्फ की मनमानी पर सवाल उठाए जाएंगे, या फिर इस मुद्दे को सिर्फ धार्मिक राजनीति का हिस्सा मानकर टाल दिया जाएगा? यह सवाल भी अहम है कि क्या विपक्ष का किसान प्रेम असली है, या सिर्फ दिखावा है? देशभर में किसानों के नाम पर आंदोलन करने वाले विपक्षी दल क्या इन किसानों की पीड़ा को समझेंगे? यह घटना सिर्फ एक कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि उन किसानों के अस्तित्व और सम्मान की लड़ाई है, जो अपनी पुश्तैनी जमीनों को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सरकार ने वक्फ बोर्ड के कामकाज को सुधारने के लिए वक्फ (संशोधन) विधेयक पेश किया है, जिसे फिलहाल संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया है। लेकिन यह देखना बाकी है कि यह विधेयक किसानों की इन जमीनों के मामले में कितना प्रभावी साबित होगा। इन घटनाओं ने देश में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और उनके दुरुपयोग पर एक नई बहस छेड़ दी है। सवाल यह है कि क्या विपक्ष इस मुद्दे पर राजनीति से परे जाकर किसानों के हक के लिए आवाज उठाएगा, या फिर उनकी चुप्पी यह साबित करेगी कि उनका किसान प्रेम महज एक राजनीतिक चाल है? सीरिया में असद सरकार का अंत..! दमिश्क से लेकर अलेप्पो तक आतंकियों का कब्जा जम्मू-कश्मीर में दो पुलिस जवानों के शव मिले, एक-दूसरे को मारी थी गोली अजमेर से पीएम मोदी को मिली बम से उड़ाने की धमकी, जांच में जुटी पुलिस