इम्फाल: पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की कुकी-ज़ो जनजातियों के एक संयुक्त निकाय, इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फ़ोरम (ITLF) ने दावा किया कि अगर राज्य सरकार ने उनकी मांग नहीं सुनी, तो वह कुकी-ज़ो बसे हुए क्षेत्रों में अगले कुछ हफ़्तों में एक "स्वशासित अलग प्रशासन" स्थापित करेगी। मंच ने कहा कि मणिपुर में छह महीने से अधिक समय से चले आ रहे जातीय संघर्ष के बाद भी केंद्र सरकार ने अभी तक अलग प्रशासन की उनकी मांग को स्वीकार नहीं किया है। बुधवार को चुराचांदपुर जिले में एक विरोध रैली के दौरान ITLF के महासचिव मौन टॉम्बिंग ने आरोप लगाया कि सरकार आदिवासियों की आवाज नहीं सुन रही है। टॉम्बिंग ने कहा कि, "छह महीने से अधिक समय हो गया है और मणिपुर सरकार से अलग प्रशासन की हमारी मांग के संबंध में कुछ भी नहीं किया गया है। अगर कुछ हफ्तों के भीतर हमारी आवाज नहीं सुनी गई, तो हम अपनी स्वशासन स्थापित करेंगे। केंद्र की परवाह किए बिना इसे पहचानें या नहीं, हम आगे बढ़ेंगे।" टॉम्बिंग ने कहा कि, "एक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की तरह, हम एक स्वशासन स्थापित करेंगे जो कुकी-ज़ो क्षेत्रों में सभी मामलों को देखेगी। हमें ऐसा करना होगा क्योंकि हमारी आवाज़ नहीं सुनी गई है।" आदिवासी समूह ने चुराचांदपुर जिले में विरोध रैली आयोजित की, मणिपुर सरकार के खिलाफ नारे लगाए और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामलों की जांच एजेंसियों से कराने की मांग की। बता दें कि, मई में पहली बार जातीय संघर्ष भड़कने के बाद से मणिपुर बार-बार होने वाली हिंसा की चपेट में है। तब से अब तक 180 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। झड़पें कई शिकायतों को लेकर हुई हैं, जो दोनों पक्षों के पास एक दूसरे के खिलाफ हैं। हालाँकि, संकट का मुख्य बिंदु मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने का कदम रहा है, जिसे बाद में वापस ले लिया गया है, और संरक्षित वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों को बाहर करने का प्रयास किया गया है। क्या है मणिपुर में हिंसा का मूल कारण ? बता दें कि, मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जो कि पूरे मणिपुर का लगभग 10 फीसद क्षेत्र है। वहीं, जबकि आदिवासी, जिनमें नागा और कुकी शामिल हैं, की आबादी 40 प्रतिशत हैं और मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं। मणिपुर का 90 फीसद हिस्सा पहाड़ी है, जिसमे केवल कुकी-नागा जैसे आदिवासियों को ही रहने और संपत्ति खरीदने की अनुमति है, ऐसे में मेइती समुदाय के लोग महज 10 फीसद इलाके में रहने को मजबूर हैं। उन्होंने ST का दर्जा माँगा था, जिसे हाई कोर्ट ने मंजूरी भी दे दी थी, लेकिन इससे कुकी समुदाय भड़क उठा और विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। यही हिंसा की जड़ रही। बताया जाता है कि, कुकी समुदाय के अधिकतर लोग धर्मान्तरित होकर ईसाई बन चुके हैं और वे घाटी पर अफीम की खेती करते हैं, इसलिए वे घाटी में अपना एकाधिकार रखना चाहते हैं और किसी को आने नहीं देना चाहते। कुकी को खालिस्तानियों का भी साथ मिल रहा है, कुकी समुदाय का एक नेता कनाडा जाकर खालिस्तानी आतंकियों से मिल भी चुका है, जहाँ से उन्हें फंडिंग और हथियार मिले थे। वहीं, म्यांमार और चीन भी कुकी लोगों को मेइती से लड़ने के लिए हथियार दे रहे हैं। दिल्ली के मुख्य सचिव पर 850 करोड़ के घोटाले का आरोप, केजरीवाल सरकार ने CBI को सौंपा मामला 'अगर भाजपा नहीं भी जीती तो..', तेलंगाना चुनाव में पार्टी उम्मीदवार टी राजा सिंह का बड़ा बयान खुलेगा 'ज्ञानवापी' का एक-एक राज़ ! ASI की वैज्ञानिक सर्वे रिपोर्ट तैयार, कल कोर्ट में जमा होगी