इसे एक विडंबना ही कहेंगे कि खेलों पर हमारे देश की सरकार करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन जब उन्हें समय पर किसी मदद की जरूरत महसूस होती है , तब उन्हें वह मुहैया नहीं हो पाती है .ऐसा ही मामला कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय वेटलिफ्टर्स का सामने आया है , जिन्होंने अपने दर्द और चोटों की परवाह किए बगैर स्वर्णिम सफलता हासिल की,जरूरत के समय इन्हें फिजियो थेरेपिस्ट की सेवाएं नहीं मिल पाई. बता दें कि आॅस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में चल रहे 21वें राष्ट्रमंडल खेलों (कॉमनवेल्थ गेम्स) में भारतीय वेटलिफ्टर्स ने पांच मैडल भारत की झोली में डाले हैं. महिलाओं में मीराबाई चानू (48 किग्रा) और संजीता चानू (53 किग्रा) ने गोल्ड मेडल दिलाया, वहीं, पुरुषों में सतीश कुमार शिवालिंगम (77 किग्रा) ने गोल्ड, पी गुरुराजा (56 किग्रा) ने रजत और दीपक लाथेर (69 किग्रा) ने कांस्य पदक दिलाया है. इस बारे में चानू ने बताया कि मेरे साथ यहां प्रतियोगिता के लिए कोई फिजियो नहीं था. उन्हें यहां आने की अनुमति नहीं मिली. पर्याप्त उपचार नहीं मिला. इसी तरह कर्नाटक के गुरुराजा ने भी कहा कि मुझे कई जगह चोट लगी है. मेरा फिजियो मेरे साथ नहीं है. इसलिए मैं घुटने और सियेटिक नर्व का इलाज नहीं करा पाया. सबसे ज्यादा संघर्ष सतीश शिवालिंगम ने किया . जांघ की मांसपेशियों में भयंकर चोट थी, फिर भी चोट के बावजूद उन्होंने अपना गेम पूरा किया और स्वर्ण पदक अपने नाम किया. फिजियो के नहीं जाने के बारे में खुलासा हुआ कि खेल मंत्रालय और आईओए ने वेटलिफ्टिंग के मैनेजर चंद्रहंस राय की जगह पर फिजियो को भेजे जाने की मंजूरी दे दी थी और उनका एक्रिडिटेशन कार्ड भी बन गया था, लेकिन गेम्स विलेज के अधिकारियों ने भारतीय ओलंपिक संघ की ओर से कागजी कार्रवाई पूरा करने में देर कर दी इसलिए फिजियो को प्रवेश नहीं मिला.गेम्स विलेज से 10 किलोमीटर दूर ठहराया गया. यह भी देखें सतीश शिवलिंगम को 50 लाख का ईनाम CWG2018: वेटलिफ्टिंग में भारत के सतीश शिवलिंगम ने जीता गोल्ड