श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों में दलित वाल्मीकि समुदाय के लोगों ने पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जिसे उन्होंने ऐतिहासिक क्षण बताया। 1957 में इस समुदाय को पंजाब के गुरदासपुर से जम्मू-कश्मीर साफ-सफाई के काम के लिए लाया गया था। तब से लेकर आज तक इस समुदाय के लोगों को वोट देने का अधिकार नहीं मिला था, लेकिन अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद उन्हें यह अधिकार प्राप्त हुआ। पहले ये समुदाय जम्मू कश्मीर का नागरिक ही नहीं माना जाता था, यानी एक किस्म से गुलामों की तरह जीवन था। इस चुनाव में दलित समुदाय के कई लोगों ने पहली बार मतदान किया। जम्मू के एक मतदान केंद्र पर 45 वर्षीय घारू भाटी ने पहली बार वोट डाला और इसे अपने समुदाय के लिए एक "बड़ा त्योहार" करार दिया। घारू भाटी ने पिछले 15 सालों से समुदाय के लिए नागरिकता के अधिकार की लड़ाई लड़ी है और अनुच्छेद 370 के निरस्त होने को न्याय की जीत बताया। उनके अनुसार, दशकों से उनका समुदाय नागरिकता और अन्य बुनियादी अधिकारों से वंचित था, लेकिन अब यह बदलाव उनके लिए ऐतिहासिक साबित हुआ है। घारू भाटी ने बताया कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, दलित समुदाय के लोग अब जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीद सकते हैं, नौकरियों के लिए आवेदन कर सकते हैं और चुनावों में हिस्सा ले सकते हैं। इससे उनके समुदाय के लिए बेहतर आजीविका के अवसर भी खुल गए हैं। बता दें कि, दलित समुदाय के लगभग 1.5 लाख लोग जम्मू, सांबा, और कठुआ जिलों में रहते हैं, जो लंबे समय से शिक्षा, नौकरी के अवसरों और भूमि के अधिकारों से वंचित थे। गांधी नगर और डोगरा हॉल क्षेत्रों में लगभग 12,000 वाल्मीकि लोग, जो पहले स्टेट सब्जेक्ट सर्टिफिकेट न होने के कारण मतदान नहीं कर पाते थे, अब इस चुनाव में भाग लेने में सक्षम हैं। 19 साल की कोमल, जो पहली बार वोट डाल रही थी, ने खुशी जताई कि अब उनके परिवार और समुदाय को मतदान का अधिकार मिला है। उनके साथ 74 साल की उनकी दादी भी मतदान के लिए पहुंचीं। वहीं, 22 साल की ऐकता माथु ने अपने 53 वर्षीय पिता के साथ पहली बार वोट डाला और इसे अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण पल बताया। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद उनके पिता, जो सफाई कर्मचारी हैं, अब बेहतर अवसर प्राप्त कर सकते हैं और उनकी खुद की ख्वाहिश जज बनने की है। 370 हटने से पहले इस समुदाय को केवल सफाईकर्मी की नौकरी ही दी जाती थी, चाहे वो कितना भी पढ़ लें, उन्हें मुस्लिम बहुल राज्य में मैला ही उठाना होता था। लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है। इस चुनाव में वाल्मीकि समुदाय के लोगों को मतदान का अधिकार मिलने से उन्हें अब जम्मू-कश्मीर के पूर्ण नागरिक के रूप में मान्यता मिली है, और यह उनके लिए एक नए युग की शुरुआत है। हालाँकि, ये घटनाक्रम कई सवाल भी उठाता है कि इन दलितों को इतने दशकों तक अधिकारों से वंचित क्यों रखा गया? खुद को दलितों का सबसे बड़ा हितैषी बताने वाली कांग्रेस ने इस मुद्दे पर कभी कोई आवाज़ क्यों नहीं उठाई ? क्या दलितों का ये उत्पीड़न उसे संविधान के खिलाफ नहीं लगा ? उल्टा कांग्रेस ने तो आर्टिकल 370 हटाने का विरोध किया, जबकि इसी आर्टिकल को हटाने से ही इन दलितों को उनके अधिकार मिले हैं। दलितों की आवाज़ उठाने का दावा करने वाले भीम आर्मी के चंद्रशेखर ने भी कभी इस मुद्दे पर कोई बयान ही नहीं दिया, शायद मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति के चलते वे भी चुप रहे। मीम-भीम का नारा लगाने वाले असदुद्दीन ओवैसी से तो कोई उम्मीद भी नहीं की जा सकती, क्योंकि उनके समुदाय के लोग ही दलितों के अधिकार छीनने में शामिल थे, और इसमें कांग्रेस ने उनका साथ दिया। खुद को अंबेडकरवादी कहने वाले कितने नेताओं ने इन दलितों के लिए आवाज़ उठाई ? क्या जम्मू कश्मीर के दलित, दलित नहीं माने जाते थे ? अब, आर्टिकल 370 हटने के बाद, यह दलित समुदाय न सिर्फ अपने वोट का इस्तेमाल करके सरकार चुन सकता है, बल्कि सरकारी नौकरियों और अन्य अधिकारों का भी लाभ उठा सकता है। पहले इनके लिए केवल सफाईकर्मी की नौकरी तक सीमित रास्ते थे, लेकिन अब नए अवसर इनके लिए खुले हैं। यह दलित समुदाय के लिए सोचने का समय है कि उनका असली शुभचिंतक कौन है—वो जो केवल बातें करता है, या वो जो वास्तव में अधिकार दिलाने का काम करता है? खबरदार, अगर इजराइल पर हमला किया तो..! ईरान को अमेरिका की खुली धमकी अवैध निर्माणों पर चलकर ही रहेगा बुलडोज़र..! सुप्रीम कोर्ट ने कह दी बड़ी बात पीएम मोदी ने नेतान्याहू से की बात, मिडिल ईस्ट में मचे घमासान पर हुई चर्चा