आज जन्माष्टमी का पावन पर्व सभी जगह मनाया जा रहा है. ऐसे में राधा की बात हो कृष्ण का जिक्र ना हो भला ऐसा कैसे संभव हो सकता है. दोनों का नाम एक साथ लिया जाता है और दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर क्यों श्रीकृष्ण अपनी प्रिय राधा को छोड़कर मथुरा क्यों चले गए? आइए जानते हैं इससे जुडी कथा. कृष्ण ने क्यों छोड़ा राधा को?- कहते हैं श्रीकृष्ण का बचपन वृंदावन की गलियों में बीता. नटखट नंदलाल अपनी लीलाओं से सभी को प्रसन्न करते थे. कुछ को परेशान भी करते, लेकिन कृष्ण के साथ ही तो वृंदावन में खुशियां थीं. बड़े होकर कृष्ण ने अपनी बांसुरी की मधुर ध्वनि से अनेकों गोपियों का दिल जीता. सबसे अधिक यदि कोई उनकी बांसुरी से मोहित होता तो वो राधा थीं. परंतु राधा से कहीं अधिक स्वयं कृष्ण,राधा के दीवाने थे. वहीं राधा कृष्ण से उम्र में 5साल बड़ी थीं. वृंदावन से कुछ दूर रेपल्ली नामक गांव में रहती थीं, लेकिन रोज कृष्ण की मधुर बांसुरी की धुन उन्हें वृंदावन खींच लाती थी. जब भी कृष्ण बांसुरी बजाते तो सभी गोपियां उनके आसपास मंडराने लगती , उन्हें रिझाने लगती, लेकिन संगीत को सुनते ही सभी मग्न हो जाती. फिर कृष्ण गोपियों को अपनी धुन पर छोड़कर चुपके से राधा से मिलने उनके गांव पहुंच जाते. धीरे-धीरे वह समय बीता तो कृष्ण को वृंदावन को छोड़ मथुरा जाना था. वृंदावन में शोक का माहौल हो गया. इधर कान्हा के घर में मां यशोदा तो परेशान थी, लेकिन कृष्ण की गोपियां भी कुछ कम उदास नहीं थीं. कृष्ण को लेने के लिए कंस ने रथ भेजा था. जिसके आते ही सभी ने उस रथ के आसपास घेरा बना लिया. ये सोचकर कि वे कृष्ण को जाने नहीं देंगे. उधर कृष्ण को राधा की चिंता सताने लगी. वे सोचने लगे कि जाने से पहले एक बार राधा से मिल लें. इसलिए मौका पाते ही वे छिपकर वहां से निकल गए. उसके बाद उन्हें राधा मिली, जिसे देखते ही वे कुछ कह ना सके. राधा-कृष्ण के इस मिलन की कहानी अद्भुत है. दोनों ना तो कुछ बोल रहे थे, ना कुछ महसूस कर रहे थे, बस चुप थे. राधाकृष्ण को ना केवल जानती थी, वरन् मन और मस्तिष्क से समझती भी थीं. कृष्ण के मन में क्या चल रहा है, वे पहले से ही भांप लेती थीं. इसलिए शायद दोनों को उस समय कुछ भी बोलने की आवश्यकता नहीं पड़ी. अतत: कृष्ण, राधा को अलविदा कह वहां से लौट आए. उन्होंने गोपियों को भी मना लिया. उसके बाद कृष्ण के बिना वृंदावन सूना हो गया. ना कोई चहल थी ना पहल थी और ना ही कृष्ण की लीलाओं की कोई झलक. बस सभी कृष्ण के जाने के ग़म में डूबे हुए थे. परंतु दूसरी ओर राधा को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. क्योंकि उनकी दृष्टि में कृष्ण कभी उनसे अलग हुए ही नहीं थे. शारीरिक रूप से जुदाई उनके लिए कोई महत्व नहीं रखती थी. यदि कुछ महत्वपूर्ण था तो राधा-कृष्ण का भावनात्मक रूप से हमेशा जुड़े रहना. वहीं कृष्ण के जाने के बाद राधा पूरा दिन उन्हीं के बारे में सोचती रहती. वे कृष्ण प्रेम में अपनी शुद्ध खो चुकी थी उन्हें इतना भी होश नहीं था कि आने वाले समय में राधा की जिंदगी क्या मोड़ लेने वाली थी. उन्हें इसका अंदाज़ा भी नहीं था. माता-पिता के दबाव में आकार राधा को विवाह करना पड़ा. विवाह के बाद अपना जीवन, संतान तथा घर-गृहस्थी के नाम करना पड़ा, लेकिन दिल के किसी कोने में अब भी वे कृष्ण का ही नाम लेती थीं. उसके बाद दिन बीते साल बीत गए और समय आ गया था जब राधा काफी वृद्ध हो गई थी तो एक रात वे चुपके से घर से निकल गई, घूमते-घूमते कृष्ण की द्वारिका नगरी में जा पहुंची. वहां जाते ही उन्होंने कृष्ण से मिलने के लिए निवेदन किया, लेकिन पहली बार में उन्हें वो मौका नहीं मिला. परंतु फिर आखिरकार उन्होंने काफी सारे लोगों के बीच खड़े कृष्ण को खोज निकाला और राधा को देखते ही कृष्ण के खुशी का ठिकाना नहीं रहा, लेकिन दोनों में कोई बात नहीं हुई, क्योंकि वह मानसिक संकेत अभी भी वही थे. उन्हें उस वक्त भी शब्दों की आवश्यकता नहीं थी. कहा जाता है कृष्ण ने राधा के अनुरोध पर उन्हें महल में एक देविका के रूप में नियुक्त करा दिया और वह दिन भर महल में रहती, महल से संबंधित कार्यों को देखती. जब भी मौका मिलता दूर से ही कृष्ण के दर्शन कर लेती, लेकिन फिर भी ना जाने क्यों राधा में धीरे-धीरे एक भय पैदा हो रहा था. जो बीतते समय के साथ बढ़ता जा रहा था. उन्हें फिर से कृष्ण से दूर हो जाने का डर सताता रहता. उनकी यह भावनाएं उन्हें कृष्ण के पास रहने न देतीं और साथ ही बढ़ती उम्र ने भी उन्हें कृष्ण से दूर चले जाने को मजबूर कर दिया. उसके बाद एक शाम वे महल से चुपके से निकल गई और ना जाने किस ओर चल पड़ी. वे नहीं जानती थीं कि वे कहां जा रही हैं. आगे मार्ग पर क्या मिलेगा, बस चलती जा रही थी. परंतु कृष्ण तो भगवान हैं, वे सब जानते थे. वे अपने अंतर्मन से जानते थे कि राधा कहां जा रही है. अंत में वह समय आया जब राधा को कृष्ण की आवश्यकता पड़ी. वो अकेली थी और बस किसी भी तरह से कृष्ण को देखना चाहती थी. यह तमन्ना उत्पन्न होते ही कृष्ण उनके सामने आ गए. कृष्ण को अपने सामने देख राधा अति प्रसन्न हो गई लेकिन वह समय निकट था जब राधा अपने प्राण त्याग कर दुनिया को अलविदा कहना चाहती थी. उसके बाद कृष्ण ने राधा से कहा कि ''वे उनसे कुछ मांगे, लेकिन राधा ने मना कर दिया.'' कृष्ण ने फिर से कहा कि ''जीवन भर राधा ने कभी उनसे कुछ नहीं मांगा. इसलिए राधा ने एक ही मांग की कि 'वे आखिरी बार कृष्ण को बांसुरी बजाते देखना चाहती थी'.'' वहीं कृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद मधुर धुन में उसे बजाया. बांसुरी की धुन सुनते-सुनते राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया और उनके जाते ही कृष्ण ने अपनी बांसुरी तोड़ दी और कोसों दूर फेंक दी. VIDEO : कृष्ण भक्ति में डूबीं हेमा मालिनी, मंदिर में गाया हरे राम हरे कृष्णा इस वजह से श्रीकृष्ण को लगाया जाता है 56 भोग पश्चिम बंगाल: श्री कृष्ण जन्मोत्सव के दौरान मंदिर में मची भगदड़, चार लोगों की मौत