नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट को मदरसा तालीम से जुड़े कई चौंकाने वाले तथ्य प्रस्तुत किए हैं। आयोग ने बताया है कि मदरसे भारत के संविधान द्वारा निर्धारित बच्चों के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन कर रहे हैं। NCPCR ने कहा है कि मदरसों में बच्चों को शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम और संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत मिलने वाले अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। NCPCR ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि दारुल उलूम देवबंद, जो एक प्रमुख इस्लामी शिक्षण संस्थान है, का मदरसों पर गहरा प्रभाव है। दारुल उलूम देवबंद को ‘शरिया की सख्त और रूढ़िवादी व्याख्या’ का प्रचारक बताया गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तालिबान जैसे कट्टरपंथी समूह दारुल उलूम देवबंद की विचारधारा से प्रेरित रहे हैं। NCPCR ने चिंता जताई है कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को इस्लामी कट्टरपंथ की तरफ झुकाया जा सकता है। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मदरसा तालीम के तहत पढ़ने वाले बच्चे RTE अधिनियम के तहत मिलने वाली उच्च मानक वाली शिक्षा, मिड डे मील और अच्छे शिक्षकों से वंचित रहते हैं। NCPCR ने इस बात पर भी चिंता जताई कि मदरसों में बच्चों को शारीरिक दंड दिया जाता है और उन्हें इस्लाम को सर्वोच्च मानने के लिए मजबूर किया जाता है। NCPCR ने यह भी खुलासा किया कि मदरसों में बड़ी संख्या में गैर-मुस्लिम छात्र भी पढ़ते हैं, जो कि संविधान के अनुच्छेद 28(3) का उल्लंघन है। इसके अलावा, इन मदरसों के पाठ्यक्रम में ऐसी किताबें शामिल हैं जिनमें इस्लामी कट्टरपंथी विचारधारा को बढ़ावा दिया जाता है और नाबालिगों के साथ अवैध संबंधों के बारे में भी बातें की जाती हैं। आयोग ने कहा कि दारुल उलूम देवबंद द्वारा जारी किए गए फतवों में भी आपत्तिजनक सामग्री शामिल है, जैसे कि ‘बहिश्ती ज़ेवर’ नामक पुस्तक में नाबालिगों के साथ यौन संबंध बनाने की बात की गई है। NCPCR ने यह भी बताया कि मदरसों द्वारा संविधान के अनुच्छेद 29(2) का दुरुपयोग किया जा रहा है, जो कि धार्मिक शिक्षण संस्थानों को विशेष छूट प्रदान करता है। आयोग ने तर्क किया कि मदरसे संविधान में दी गई छूट का नाजायज फायदा उठा रहे हैं और बच्चों को संतुलित और औपचारिक शिक्षा प्रदान करने के व्यापक संवैधानिक दायित्व को पूरा नहीं कर रहे हैं। अंत में, NCPCR ने अंजुम कादरी की याचिका को चुनौती दी है, जिसमें कादरी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को रद्द कर दिया गया था। आयोग ने कहा कि यह अधिनियम धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों और संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 21A के संवैधानिक जनादेश के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय पर रोक लगा दी थी और कहा था कि बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलनी चाहिए, लेकिन अधिनियम को रद्द करना इसका उपाय नहीं है। ईद का जुलुस निकला, रास्ते में हनुमान मंदिर पर पथराव करने लगे कट्टरपंथी, Video 100 दिनों में 15 लाख करोड़ के प्रोजेक्ट्स मंजूर! देखें सरकार का रिपोर्ट कार्ड केजरीवाल ने LG से माँगा समय, कल देंगे इस्तीफा, पर कौन होगा नया CM ?