क्या है डिलिस्टिंग ? जिसके लिए पीएम मोदी से मांग कर रहा आदिवासी समुदाय

रांची: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर को झारखंड के हजारीबाग में आयोजित परिवर्तन यात्रा के समापन समारोह में भाग लिया। मटवारी मैदान में सभा को संबोधित करने से पहले उन्होंने आदिवासी समुदाय के लोगों से मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान आदिवासी समुदाय ने प्रधानमंत्री से अपनी धर्म और संस्कृति की सुरक्षा की मांग की और घुसपैठ से जुड़ी चिंताओं को उनके सामने रखा।

आदिवासी मुखिया सोमा उरांव ने प्रधानमंत्री से हुई बातचीत के बाद कहा कि उन्होंने पीएम मोदी से पहले भी स्पीड पोस्ट के जरिए बिहार के कैमूर जिले में स्थित रोहतासगढ़ किले को गोद लेने की मांग की थी। प्रधानमंत्री ने इस पर संज्ञान लिया और 139 करोड़ रुपये का टेंडर जारी कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप अब किले तक गाड़ी से पहुंचना संभव हो गया है। इसके लिए आदिवासी समुदाय ने पीएम मोदी का धन्यवाद किया। इसके बाद, सोमा उरांव ने प्रधानमंत्री से डीलिस्टिंग बिल पास करने की विशेष मांग की, जिसके लिए आदिवासी समाज लंबे समय से आंदोलन कर रहा है। यह आंदोलन 1967 में शुरू हुआ था, जब स्वर्गीय कार्तिक उरांव ने संसद में 348 सांसदों के ट्रांसफर बिल को पेश किया था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे पास नहीं होने दिया। डीलिस्टिंग का मतलब है कि जो जनजातियां अपने पारंपरिक धर्म और रीति-रिवाजों को छोड़कर ईसाई, इस्लाम या किसी अन्य धर्म को अपना रही हैं, उन्हें अनुसूचित जनजाति के लाभ से बाहर किया जाए। आदिवासी समाज का मानना है कि ऐसे लोगों को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटा दिया जाना चाहिए और उन्हें इन लाभों का हकदार नहीं माना जाना चाहिए।

दूसरी मांग यह थी कि झारखंड में 2013 में एक कैबिनेट प्रस्ताव पारित किया गया था, जिसमें कहा गया था कि अगर कोई आदिवासी लड़की किसी गैर-आदिवासी व्यक्ति से शादी करती है, तो उसका जाति प्रमाण पत्र उसके मायके से जारी किया जाएगा। लेकिन अब इसके दुष्परिणाम देखे जा रहे हैं, जहां दूसरे धर्म के लोग इसका फायदा उठाकर नौकरी, जमीन और अन्य लाभ प्राप्त कर रहे हैं। आदिवासी प्रतिनिधियों ने पीएम मोदी से इस समस्या पर ध्यान देने और झारखंड के आदिवासियों की सुरक्षा की मांग की। प्रधानमंत्री मोदी ने आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों की बातों को सुना और झारखंड के उत्थान के लिए कई मुद्दों पर चर्चा की। आदिवासी समाज के नेताओं का मानना है कि झारखंड का विकास सिर्फ भाजपा सरकार ही कर सकती है।

गौरतलब है कि झारखंड प्रदेश के मीडिया प्रभारी सोमा उरांव ने कुछ महीने पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर डीलिस्टिंग बिल पास करने की मांग की थी, ताकि आदिवासी समाज की पहचान और अधिकारों की सुरक्षा हो सके।

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