सनातन धर्म में महालक्ष्मी व्रत की खास अहमियत है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, महालक्ष्मी व्रत को रखने से मां लक्ष्मी की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। प्रत्येक वर्ष भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से महालक्ष्मी व्रत आरंभ होते हैं। इन 16 दिनों में देवी लक्ष्मी की पूजा को खास लाभदायी माना गया है। इस वर्ष महालक्ष्मी व्रत 22 सितंबर से आरम्भ हो रहे हैं। विशेष तौर पर महाराष्ट्र में महालक्ष्‍मी की पूजा का प्रचलन है। हम अक्सर 2 नाम सुनते हैं लक्ष्मी और महालक्ष्मी। आखिर क्या यह दोनों एक ही हैं या दोनों में कोई अंतर या फर्क है? आइये आपको बताते है... 1. भृगु पुत्री लक्ष्मी: पुराणों में एक लक्ष्मी वह है जो समुद्र मंथन से जन्मीं थीं तथा दूसरी वह है जो भृगु की पुत्रीं थी। भृगु की पुत्री को श्रीदेवी भी बोलते थे। उनका विवाह प्रभु श्री विष्णु से हुआ था। 2. दो लक्ष्मी : लक्ष्मीजी की अभिव्यक्ति को दो रूपों में देखा जाता है- 1. श्रीरूप और 2. लक्ष्मी रूप। श्रीरूप में वे कमल पर विराजमान हैं तथा लक्ष्मी रूप में वे भगवान विष्णु के साथ हैं। महाभारत में लक्ष्मी के 'विष्णुपत्नी लक्ष्मी' एवं 'राज्यलक्ष्मी' दो प्रकार बताए गए हैं। 3. भूदेवी और श्रीदेवी : एक अन्य मान्यता के मुताबिक लक्ष्मी के दो रूप हैं- भूदेवी और श्रीदेवी। भूदेवी धरती की देवी हैं तथा श्रीदेवी स्वर्ग की देवी। पहली उर्वरा से जुड़ी हैं, दूसरी महिमा और शक्ति से। भूदेवी सरल और सहयोगी पत्नी हैं जबकि श्रीदेवी चंचल हैं। विष्णु को हमेशा उन्हें खुश रखने के लिए प्रयास करना पड़ता है। 4. लक्ष्मी एवं महालक्ष्मी में अंतर : शाक्त परंपरा में तीन रहस्यों का वर्णन है- प्राधानिक, वैकृतिक एवं मुक्ति। इस प्रश्न का, इस रहस्य का वर्णन प्राधानिक रहस्य में है। इस रहस्य के मुताबिक, महालक्ष्मी के द्वारा विष्णु और सरस्वती की उत्पत्ति हुई अर्थात विष्णु और सरस्वती बहन और भाई हैं। इन सरस्वती का विवाह ब्रह्माजी से तथा ब्रह्माजी की जो पुत्री सरस्वती है, उनका विवाह विष्णुजी से हुआ है। इससे यह पता चलता है कि महालक्ष्मीजी, विष्णु पत्नी लक्ष्मी जी से भिन्न हैं। महालक्ष्मी आदिदेवी हैं। 5. समुद्र मंथन की महालक्ष्मी : समुद्र मंथन की लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है। उनके हाथ में स्वर्ण से भरा कलश है। इस कलश द्वारा लक्ष्मीजी धन की वर्षा करती रहती हैं। उनके वाहन को सफेद हाथी माना गया है। दरअसल, महालक्ष्मीजी के 4 हाथ बताए गए हैं। वे 1 लक्ष्य तथा 4 प्रकृतियों (दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता एवं व्यवस्था शक्ति) के प्रतीक हैं और मां महालक्ष्मीजी सभी हाथों से अपने भक्तों पर आशीर्वाद की वर्षा करती हैं। समुद्र मंथन से उत्पन्न लक्ष्मी को कमला कहते हैं जो 10 महाविद्याओं में से अंतीम महाविद्या है। 6. विष्णुप्रिया लक्ष्मी : ऋषि भृगु की पुत्री माता लक्ष्मी थीं। उनकी माता का नाम ख्याति था। म‍हर्षि भृगु विष्णु के श्वसुर और शिव के साढू थे। महर्षि भृगु को भी सप्तर्षियों में स्थान प्राप्त हुआ है। राजा दक्ष के भाई भृगु ऋषि थे। इसका अर्थ वे राजा द‍क्ष की भतीजी थीं। माता लक्ष्मी के दो भाई दाता और विधाता थे। भगवान महादेव की पहली पत्नी माता सती उनकी (लक्ष्मीजी की) सौतेली बहन थीं। सती राजा दक्ष की पुत्री थी। 7. धन की देवी : देवी लक्ष्मी का घनिष्ठ संबंध देवराज इन्द्र तथा कुबेर से है। इन्द्र देवताओं तथा स्वर्ग के राजा हैं तथा कुबेर देवताओं के खजाने के रक्षक के पद पर आसीन हैं। देवी लक्ष्मी ही इन्द्र तथा कुबेर को इस प्रकार का वैभव, राजसी सत्ता प्रदान करती हैं। देवी लक्ष्मी कमलवन में निवास करती हैं, कमल पर बैठती हैं तथा हाथ में कमल ही धारण करती हैं। 8. इसके अतिरिक्त 8 अवतार बताए गए हैं:- महालक्ष्मी, जो वैकुंठ में निवास करती हैं। स्वर्गलक्ष्मी, जो स्वर्ग में निवास करती हैं। राधाजी, जो गोलोक में निवास करती हैं। दक्षिणा, जो यज्ञ में निवास करती हैं। गृहलक्ष्मी, जो गृह में निवास करती हैं। शोभा, जो हर वस्तु में निवास करती हैं। सुरभि (रुक्मणी), जो गोलोक में निवास करती हैं और राजलक्ष्मी (सीता) जी, जो पाताल और भूलोक में निवास करती हैं। 9. अष्टलक्ष्मी : आदि लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी या जायालक्ष्मी और विद्यालक्ष्मी। ये सभी माता लक्ष्मी के विभिन्न रूप हैं। राधा अष्टमी पर जरूर करें श्री राधा चालीसा का पाठ, ख़त्म होगी हर बाधा पहली बार रखने जा रहे हैं राधा अष्टमी का व्रत तो इन चीजों का रखें ध्यान महालक्ष्मी व्रत के दौरान करें इन मंत्रों का जाप, पूरी होगी हर मनोकामना