'ये हलाल सर्टिफाइड चाय क्या होती है..', ट्रेन में स्टाफ से पूछने लगा यात्री, नहीं दे पाए स्पष्ट जवाब, Video

नई दिल्ली: भारतीय रेलवे के एक अधिकारी और हलाल-प्रमाणित चाय परोसे जाने से नाराज एक यात्री के बीच तीखी नोकझोंक का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। वीडियो में यात्री ने रेलवे कर्मचारियों से पुछा कि हलाल-प्रमाणित चाय क्या है और इसे सावन के महीने में क्यों परोसा जा रहा है। जैसा कि वीडियो में देखा जा सकता है, कर्मचारियों ने नाराज यात्री को समझाया कि चाय वैसे भी शाकाहारी है।

 

हलाल चाय परोसे जाने से भड़के यात्री ने अधिकारी से पुछा कि, 'सावन का महीना चल रहा है। और आप हमें हलाल-सर्टिफाइड चाय पिला रहे हैं?.' चाय के पैकेट की जांच करते हुए अधिकारी ने पूछा, "क्या हुआ?" इस पर यात्री ने कहा कि, "आप जानते हैं, आप हमें समझाएं कि हलाल-प्रमाणित क्या होता है। हमें यह पता होना चाहिए। हम ISI सर्टिफिकेट जानते हैं, आप बताएं कि हलाल सर्टिफिकेट क्या है।" हालाँकि, रेलवे के अधिकारी हलाल सर्टिफिकेट पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे सके। एक रेलवे स्टाफ ने कहा कि, "यह मसाला चाय प्रीमिक्स है। मैं समझाता हूं। यह 100 फीसद शाकाहारी है।" यात्री ने फिर पुछा कि, "लेकिन हलाल प्रमाणित क्या है? मुझे इसके बाद पूजा करनी होगी?"

इस पर रेलवे कर्मचारी ने कहा कि, 'क्या आप वीडियो बना रहे हैं? यह 100% शाकाहारी है। चाय-सब्जी ही होती है सर।' यात्री ने कहा, "मुझे कोई धार्मिक प्रमाणपत्र नहीं चाहिए। कृपया इन भावनाओं को ध्यान में रखें। या फिर स्वास्तिक (हिन्दू धार्मिक चिन्ह) सर्टिफिकेट लगाएं।' इस पर स्टाफ ने कहा कि "ठीक है, इसे ध्यान में रखूंगा।'' एक रिपोर्ट के अनुसार, यह वीडियो वन्दे भारत एक्सप्रेस का बताया जा रहा है, लेकिन यह किस रुट का है, इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पाई है। 

क्या है हलाल सर्टिफिकेट :-

बता दें कि, वैसे तो हलाल शब्द अधिकतर मांसाहारी भोजन में ही इस्तेमाल किया जाता है। जैसे मुस्लिम समुदाय 'हलाल' (इस्लामी आयत पढ़ते हुए धीरे-धीरे पशु की गर्दन काटना) किया गया जानवर ही खाते हैं, वहीं हिन्दू-सिखों जैसे गैर-मुस्लिम समुदायों में 'झटका' (एक ही वार में पशु का सिर काटना) वाला मांस खाते हैं। इस कारण अधिकतर मांसाहारी वस्तुओं पर 'हलाल' का सर्टिफिकेट लगा होता है, ताकि मुस्लिम उस सर्टिफिकेट को देखकर उस वस्तु का उपभोग करें। हालाँकि 'झटके' का कोई सर्टिफिकेट नहीं है। यह भी गौर करने वाली बात है कि, हलाल की प्रक्रिया केवल कोई मुस्लिम ही कर सकता है, कोई गैर-मुस्लिम नहीं। ऐसे में इस सर्टिफिकेट से दलितों द्वारा किए जा रहे मांस के कारोबार में बाधा पैदा होती है और उनका धंधा मारा जाता है। लेकिन, आज के दौर में ये हलाल सर्टिफिकेट, माँसाहारी वस्तुओं से आगे निकलकर कास्मेटिक, गैर मांसाहारी खाद्य पदार्थों और चाय जैसे अन्य FMCG उत्पादों पर भी आने लगा है।

सीधे शब्दों में कहें तो, हलाल सर्टिफिकेट मिलने का मतलब है कि वह उत्‍पाद इस्‍लामी नियमों के हिसाब से उपभोग योग्य है। भारत में 5 या 6 संस्‍थाएं उत्पादों पर हलाल सर्टिफिकेट जारी करती हैं। जिसमे से सबसे अधिक मांग जमीयत-उलमा-ए-महाराष्‍ट्र और जमीयत-उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्‍ट के प्रमाणपत्र की है। हालाँकि, ये एक तरह से भेदभाव को बढ़ावा देने वाला भी है, क्योंकि भारत में सभी धर्मों के लोग रहते हैं, ऐसे में अगर जैन, बौद्ध, सिख, हिन्दू भी अपनी धार्मिक परंपराओं के हिसाब से प्रमाणपत्र मांगने लगे तो क्या होगा ? साथ ही ये हलाल सर्टिफिकेट दलितों के कारोबार पर भी प्रभाव डालता है, क्योंकि मांस का कारोबार करने वाले दलित समुदाय के लोग कंपनियों में अपना मांस नहीं बेच पाते, क्योंकि उनके पास हलाल सर्टिफिकेट नहीं होता।   

महंगी होंगी सरकारी सेवाएं, हर साल 5 फीसदी बढ़ेगा यूजर चार्ज

ससुराल जा रही नवविवाहिता के साथ रास्ते में हुई दरिंदगी, जाँच में जुटी पुलिस

पान बेचने वाले ने बनाया 'नौलखा मंदिर', जानिए पूरा किस्सा

Related News