सुनहरे बचपन पर शायरियाँ

1. अब तक हमारी उम्र का बचपन नहीं गया, घर से चले थे जेब के पैसे गिरा दिए.

 

2. अपने बच्चों को मैं बातों में लगा लेता हूँ, जब भी आवाज़ लगाता है खिलौने वाला.

 

3. असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे, कहाँ गया मिरा बचपन ख़राब कर के मुझे.

 

4. बड़ी हसरत से इंसाँ बचपने को याद करता है, ये फल पक कर दोबारा चाहता है ख़ाम हो जाए.

 

5. बच्चा बोला देख कर मस्जिद आली-शान, अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान.

 

6. बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो, चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे.

 

7. बचपन में हम ही थे या था और कोई, वहशत सी होने लगती है यादों से.

 

8. भूक चेहरों पे लिए चाँद से प्यारे बच्चे, बेचते फिरते हैं गलियों में ग़ुबारे बच्चे.

 

9. चुप-चाप बैठे रहते हैं कुछ बोलते नहीं, बच्चे बिगड़ गए हैं बहुत देख-भाल से.

 

10. दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में, सो ज़ख़्म खाते रहे और दुआ दिए गए हम.

 

11. एक हाथी एक राजा एक रानी के बग़ैर, नींद बच्चों को नहीं आती कहानी के बग़ैर.

 

12. फ़क़त माल-ओ-ज़र-ए-दीवार-ओ-दर अच्छा नहीं लगता, जहाँ बच्चे नहीं होते वो घर अच्छा नहीं लगता.

 

13. इक खिलौना जोगी से खो गया था बचपन में, ढूँढता फिरा उस को वो नगर नगर तन्हा.

इन बूढ़े हाथो ने देखे हैं ज़माने

होली पर भस्म के साथ ये मन्त्र पढ़ना होता है शुभ

होली के कुछ रंग शबाना और जावेद के संग

Related News