नई दिल्ली: कर्नाटक चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद कर्नाटक की विधानसभा त्रिशंकु में फंस गई है, वहीं सत्ता की चाबी अब राज्यपाल के हाथों में आ गई है. ऐसे में सबको इंतज़ार है कि राज्यपाल किसे बहुमत सिद्ध करने का पहला निमंत्रण देंगे. ऐसी स्थितियां भारतीय राजनीति में पहले भी हुई हैं, जब राज्यपाल ने अपने एक फैसले से सत्ता की बाज़ी पलट दी है. जिनमे से 1982 में हुआ देवीलाल-तपासे विवाद सबसे चर्चित और विवादित रहा था. उस समय हरियाणा की 90 सीटों में से 35 सीटों पर कांग्रेस का कब्ज़ा था, जबकि भाजपा ने चौधरी देवीलाल के नेतृत्व वाली पार्टी लोकदल से गठबंधन कर 37 सीटें हासिल की थी. हलांकि विधानसभा उस समय भी त्रिशंकु स्तिथि में थी, इसलिए फैसला राज्यपाल के हाथों में था, लेकिन तत्कालीन राज्यपाल गणपतराव देवजी तपासे ने भजनलाल के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार की शपथ दिला दी. जबकि चुनाव नतीजे आने पर देवीलाल अपने गठबंधन सहयोगी बीजेपी के नेता डॉ मंगलसेन आदि नेताओं के साथ तपासे के सामने बहुमत वाले गठबंधन के रूप में सरकार बनाने का दावा कांग्रेस से पहले ही कर चुके थे. पर तपासे की इस हरकत का पता लगते ही तमतमाए देवीलाल अपने पुरे दल के साथ राजभवन जा धमके. और जब उन्होंने राज्यपाल तपासे की इस हरकत पर उनकी ठुड्डी पकड़ कर इसका कारण पूछा तो राज्यपाल ने उनका हाथ झटक दिया. इससे भन्नाए देवीलाल ने आव देखा न ताव और झन्नाटेदार झापड़ राज्यपाल तपासे के गाल पर रसीद कर दिया, सवा 6 फुट के हट्टे-कट्टे देवीलाल का थप्पड़ औसत कदकाठी के तपासे सहन नहीं कर सके और दूर जा गिरे. दरअसल, देवीलाल को गुस्सा इसलिए आया कि बीजेपी से उनकी पार्टी लोकदल का गठबंधन चुनाव से पहले ही हो गया था. उसके तहत ही दोनों दल मिलकर, आपस में सीटें बांटकर चुनाव लड़े थे और सत्तारूढ़ कांग्रेस से अधिक सीट जीत गए थे और कुछ विधायकों का समर्थन प्राप्त कर उन्होंने बहुमत का दावा भी किया था. पर राज्यपाल की राजनीति ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. कर्नाटक में जेडीएस के दो विधायक लापता... येदुरप्पा के सीएम पद की शपथ लेने की संभावना कर्नाटक में ये भी कर सकते है राज्यपाल !