आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वासुदेव द्वादशी मनाई जाती है, यह व्रत प्रभु श्री कृष्ण को समर्पित है. इस दिन प्रभु श्री कृष्ण एवं माता लक्ष्मी की पूजा करने का भी विधान है. मान्यता है कि अगर कोई मनुष्य सच्चे मन से इस व्रत को करता है तो उसके जीवन से समस्त पापों का नाश हो जाता है तथा संतान प्राप्ति की इच्छा भी जल्द पूरी हो जाती है. वैसे ये व्रत विशेष रूप पर संतान प्राप्ति के लिए ही किया जाता है. धार्मिक कथाओं के मुताबिक, यह व्रत नारद मुनि द्वारा वासुदेव एवं देवकी को बताया गया था तथा वासुदेव और माता देवकी ने पूरी आस्था के साथ द्वादशी तिथि को यह व्रत रखा था. इस व्रत के प्रभाव से प्रभु श्री कृष्ण उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त हुए थे. पंचांग के मुताबिक, आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 17 जुलाई दिन बुधवार को रात 09 बजकर 03 मिनट से आरम्भ होगी तथा 18 जुलाई दिन बुधवार को रात 08 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगी. उदया तिथि के मुताबिक, वासुदेव द्वादशी का व्रत 18 जुलाई को ही रखा जाएगा. वासुदेव द्वादशी पूजा विधि वासुदेव द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें तथा व्रत का संकल्प लें. अब भगवान वासुदेव एवं माता लक्ष्मी की प्रतिमा पर थोड़ा सा गंगाजल छिड़क कर उसे शुद्ध करें. एक लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान वासुदेव तथा माता लक्ष्मी की प्रतिमा की स्थापना करें. भगवान वासुदेव को हाथ का पंखा तथा फूल चढ़ाएं. वासुदेव एवं माता लक्ष्मी की प्रतिमा के सामने धूप और दीप जलाएं. भगवान वासुदेव को भोग के लिए पंचामृत के साथ-साथ चावल की खीर या अन्य कोई भी मिठाई चढ़ाएं. पूजा संपन्न होने के पश्चात विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. वासुदेव द्वादशी के दिन प्रभु श्री कृष्ण की स्वर्ण की प्रतिमा का दान करना बहुत ही पुण्य दाई माना जाता है. ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें. कब है जया पार्वती व्रत? जानिए शुभ मुहूर्त मासिक दुर्गाष्टमी पर बन रहे है ये खास संयोग, भक्तों पर बरसेगी मातारानी की कृपा सपने में दिखे ये चीजें तो समझ जाइये भाग्यवान है आप, भविष्य पुराण में वर्णित