नई दिल्ली: कार्तिक पूर्णिमा का दिन सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे शिव भक्ति और साधना के लिए महाशिवरात्रि के बाद सबसे पवित्र तिथि कहा गया है। विशेष रूप से शैव संप्रदाय में यह तिथि "त्रिपुरारी पूर्णिमा" के नाम से विख्यात है। महाभारत के "कर्ण पर्व" में इस तिथि से जुड़ी कथा का वर्णन मिलता है। कथा के अनुसार, महाअसुर तारकासुर के वध के बाद उसके तीन पुत्रों—तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली—ने बदला लेने के लिए घोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया। इस वरदान के तहत मय दानव ने तीन जादुई नगरियां बनाई: स्वर्णपुरी, रजतपुरी, और लौहपुरी। इन नगरियों को नष्ट करना तभी संभव था, जब वे अभिजित नक्षत्र में एक सीधी रेखा में आएं और एक शांत योगी असंभव रथ पर सवार होकर विशेष बाण से उनका विनाश करे। जब ये असुर अत्याचार करने लगे, तब देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की। शिव ने एक दिव्य रथ का निर्माण किया, जिसमें पृथ्वी रथ बनी, सूर्य-चंद्रमा पहिए, ब्रह्मा सारथी, विष्णु बाण, मेरु पर्वत धनुष और वासुकी नाग प्रत्यंचा बने। कार्तिक पूर्णिमा के दिन, जब तीनों नगरियां एक सीध में आईं, तो शिव ने एक ही बाण से उन्हें नष्ट कर दिया। इस विजय के बाद महादेव को "त्रिपुरारी" और "त्रिपुरांतक" के नाम से पूजित किया गया। माना जाता है कि इसी दिन पहली बार काशी में देव दीपावली मनाई गई। त्रिपुरासुर की कथा में तीन असुरीय नगरियां प्रतीक हैं हमारे तीन शरीरों—स्थूल, सूक्ष्म और कारण—का। इन तीनों शरीरों में संतुलन बनाना हमारे आत्मविकास के लिए आवश्यक है। शिव को आदियोगी माना जाता है, और उनकी साधना—जप, ध्यान और प्राणायाम—इन तीनों शरीरों के शत्रुओं को हराने में मदद करती है। काशी में गंगा तट पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन लाखों दीप जलाए जाते हैं। वैदिक मंत्रों के साथ महाआरती का आयोजन होता है, जिससे गंगा घाट अद्भुत दिव्य आभा से आलोकित हो उठते हैं। कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इसे शीत ऋतु से पहले का अंतिम स्नान माना जाता है। इस दिन हरिद्वार, प्रयाग, काशी, उज्जैन और राजस्थान के पुष्कर तीर्थ में स्नान पर्व आयोजित होते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर अन्य पौराणिक घटनाएं:- - इस दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। - पुष्कर में ब्रह्मसरोवर का निर्माण भी इसी दिन हुआ। - महाभारत काल में पांडवों ने अपने दिवंगत परिजनों की स्मृति में गंगा स्नान और दीपदान किया। सिख धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का महत्व:- सिख समुदाय में कार्तिक पूर्णिमा "गुरुपर्व" के रूप में मनाई जाती है। यह गुरु नानक देव जी की जयंती का दिन है। गुरुद्वारों में कीर्तन, गुरु पाठ और लंगर का आयोजन होता है। कार्तिक पूर्णिमा ऋतु परिवर्तन का संकेत देती है। आयुर्वेद के अनुसार, इस समय जठराग्नि प्रबल होती है, जिससे शरीर बलिष्ठ और ऊर्जावान बनता है। इस समय ऊष्ण प्रकृति के खाद्य पदार्थ—जैसे तिल, गुड़, सूखे मेवे, और बाजरा—का सेवन लाभकारी माना गया है। इस प्रकार, कार्तिक पूर्णिमा आध्यात्मिक और लौकिक दोनों दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका पर्व धर्म, विज्ञान और संस्कृति का सुंदर संगम है। वैकुंठ चतुर्दशी पर इस विधि से करें दीपदान, प्रसन्न होंगे पितृ भगवान की मूर्ति से फूलों का गिरना शुभ या अशुभ? यहाँ जानिए ये 4 राशियां है भगवान विष्णु की प्रिय, आज चमकेगी किस्मत