जब राहुल गांधी की एक हरकत से बेहद नाराज़ हो गए थे मनमोहन सिंह, देने चले थे इस्तीफा..

नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर की रात दिल्ली के एम्स अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया। भारतीय राजनीति के इस महान व्यक्तित्व ने देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी और अपनी नीतियों से भारत को आर्थिक संकट से उबारने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन उनके सार्वजनिक जीवन से जुड़ी एक घटना ने राजनीतिक हलकों में खासा हड़कंप मचाया था। 

यह घटना थी, कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी द्वारा उनकी कैबिनेट से पारित एक कानून के ड्राफ्ट की कॉपी को फाड़ने की, जिसने डॉ. मनमोहन सिंह को इतना आहत कर दिया कि उन्होंने इस्तीफा देने तक का मन बना लिया था। डॉ. मनमोहन सिंह, जो अपनी विनम्रता और मृदुभाषिता के लिए मशहूर थे, राजनीति में एक सज्जन नेता के तौर पर पहचाने जाते हैं। लेकिन 27 सितंबर 2013 को जब कांग्रेस के तत्कालीन उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी ही सरकार के एक अध्यादेश को बकवास करार दिया और सार्वजनिक रूप से उसकी प्रति फाड़ दी, तब यह घटना मनमोहन सिंह के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाली साबित हुई।

यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को निष्क्रिय करने के लिए लाया गया था, जिसमें सजायाफ्ता नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने का प्रावधान किया गया था। यूपीए सरकार ने इस फैसले को पलटने के लिए अध्यादेश का सहारा लिया था, ताकि भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे नेताओं को राहत दी जा सके। लेकिन राहुल गांधी ने इसे नैतिक रूप से गलत बताते हुए इस पर खुला विरोध जताया और इसे कूड़ेदान में डालने लायक करार दिया।

 

इस घटना के बाद राजनीतिक गलियारों में कयास लगाए जाने लगे कि डॉ. मनमोहन सिंह इस्तीफा दे सकते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस अपमानजनक स्थिति के बाद डॉ. सिंह ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात भी की थी और अपने पद से इस्तीफा देने का इरादा जाहिर किया था। हालांकि, कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं और सोनिया गांधी के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने अपना फैसला बदल लिया। मनमोहन सिंह के लिए यह क्षण बेहद चुनौतीपूर्ण था। एक तरफ वे अपनी सरकार और उसकी नीतियों के साथ खड़े थे, तो दूसरी ओर पार्टी के भीतर से ही उनके नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे थे। इस घटना ने पार्टी में नेतृत्व के मतभेदों को उजागर कर दिया और मनमोहन सिंह के धैर्य की भी परीक्षा ली।

डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी पूरी जिंदगी सादगी और ईमानदारी के साथ देश की सेवा की। 1991 में जब भारत आर्थिक संकट से जूझ रहा था, तब उन्होंने वित्त मंत्री के रूप में उदारीकरण की नीतियां लागू करके देश को आर्थिक रूप से मजबूत किया। उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान भी उन्होंने आर्थिक नीतियों और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मजबूती देने पर जोर दिया। हालांकि, उनके दूसरे कार्यकाल में भ्रष्टाचार के कई आरोपों ने उनकी सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाया, लेकिन मनमोहन सिंह ने कभी अपने व्यक्तिगत ईमानदार चरित्र से समझौता नहीं किया। उनके नेतृत्व में भारत ने वैश्विक मंच पर नई ऊंचाइयों को छुआ और आर्थिक विकास दर को मजबूत बनाए रखा।

डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद उनके जीवन के ऐसे कई किस्से याद किए जा रहे हैं, जो उनकी विनम्रता, दूरदर्शिता और नीतिगत कौशल को उजागर करते हैं। राहुल गांधी और अध्यादेश फाड़ने की घटना ने उनके नेतृत्व की मजबूती को तो उजागर किया ही, साथ ही यह भी साबित किया कि वे परिस्थितियों का सामना करने में कितने धैर्यवान थे। मनमोहन सिंह का जाना भारतीय राजनीति के लिए एक बड़ी क्षति है। उनकी सादगी, नीतिगत विशेषज्ञता और समर्पण को हमेशा याद किया जाएगा।

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