कौन हैं युवराज लक्ष्यराज-विश्वराज?, जिनके कारण छावनी में तब्दील हुआ उदयपुर का सिटी पैलेस

उदयपुर: उदयपुर के पूर्व मेवाड़ राजपरिवार के भीतर संपत्ति और अधिकारों को लेकर विवाद अब खुलकर सामने आ गया है। हालात इतने गंभीर हो गए कि सिटी पैलेस के बाहर भारी हंगामा और पथराव हुआ। राजतिलक को लेकर विश्वराज सिंह एवं उनके चाचा के परिवार के बीच विवाद बढ़ गया है. महेंद्र सिंह मेवाड़ के भाई अरविंद सिंह मेवाड़ के परिवार ने विश्वराज के राजतिलक पर नाखुशी व्यक्त की है. ऐसे में राज तिलक की परंपरा निभाने से रोकने के लिए उदयपुर के सिटी पैलेस के गेट बंद कर दिए गए थे. ऐसे में एक सवाल उठ रहा हैं आखिर दोनों परिवारों के बीच ऐसी क्या दुश्मनी है आइये आपको बताते हैं…

दरअसल, 1955 में भगवंत सिंह मेवाड़ महाराणा बने और उन्होंने मेवाड़ की राजगद्दी संभाली। हालांकि, उनके शासनकाल में ही पारिवारिक संपत्ति को लेकर विवाद शुरू हो गया था। भगवंत सिंह ने अपने कार्यकाल में मेवाड़ की कई पैतृक संपत्तियों को बेचने और लीज पर देने का निर्णय लिया। यह कदम उनके बड़े बेटे, महेंद्र सिंह मेवाड़ को नागवार गुजरा। महेंद्र सिंह ने इसे पैतृक विरासत का अपमान माना और इस फैसले के खिलाफ कड़ा विरोध जताया। महेंद्र सिंह ने अपने पिता के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया तथा संपत्तियों को हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत बांटने की मांग की। उनका तर्क था कि पैतृक संपत्तियों पर परिवार के हर सदस्य का समान अधिकार है। इस मुकदमे के कारण पिता-पुत्र के रिश्तों में दरार आ गई।

भगवंत सिंह की वसीयत और संपत्ति का प्रबंधन महेंद्र सिंह के कानूनी कदम से आहत होकर भगवंत सिंह ने 15 मई 1984 को अपनी वसीयत तैयार की। इस वसीयत में उन्होंने अपने छोटे बेटे, अरविंद सिंह मेवाड़ को संपत्तियों और ट्रस्टों का कार्यकारी प्रबंधक (Executor) नियुक्त किया। इसके साथ ही, उन्होंने महेंद्र सिंह को न केवल संपत्तियों के अधिकार से वंचित कर दिया, बल्कि उन्हें राजपरिवार द्वारा संचालित ट्रस्टों से भी बाहर कर दिया।

परिवार के लिए ट्रस्टों की स्थापना भगवंत सिंह ने मेवाड़ की पैतृक संपत्तियों और ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के लिए "महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउंडेशन" की स्थापना की। इस संस्था के तहत उदयपुर का सिटी पैलेस संग्रहालय और अन्य सांस्कृतिक धरोहरों का प्रबंधन किया जाता है। इसके अलावा, कुल नौ ट्रस्ट बनाए गए, जो राजपरिवार की संपत्तियों और आय का प्रबंधन करते हैं।

विवाद की जड़ 1984 में 3 नवंबर को भगवंत सिंह का निधन हो गया। उनकी वसीयत के अनुसार, संपत्तियों और ट्रस्टों का अधिकार छोटे बेटे अरविंद सिंह और उनके परिवार को मिला। महेंद्र सिंह और उनके परिवार को इससे अलग कर दिया गया। महेंद्र सिंह और उनके समर्थकों ने इस फैसले को चुनौती दी, लेकिन अरविंद सिंह ने वसीयत के आधार पर ट्रस्ट और संपत्तियों पर अपना नियंत्रण बनाए रखा।

इस संपत्ति विवाद ने धीरे-धीरे दोनों परिवारों को अलग-अलग गुटों में बांट दिया। महेंद्र सिंह के परिवार ने खुद को पारंपरिक उत्तराधिकारी घोषित करते हुए गद्दी और संपत्तियों पर दावा जताया। वहीं, अरविंद सिंह और उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह ने भगवंत सिंह की वसीयत का हवाला देते हुए ट्रस्ट और संपत्तियों पर अपना अधिकार सुनिश्चित किया।

वर्तमान विवाद का विस्तार आज की स्थिति यह है कि उदयपुर का सिटी पैलेस और मेवाड़ की अधिकांश संपत्तियों का प्रबंधन अरविंद सिंह और उनके बेटे करते हैं। वे इसे एक ट्रस्ट की संपत्ति मानते हैं और व्यक्तिगत अधिकारों को अस्वीकार करते हैं। दूसरी ओर, महेंद्र सिंह के बेटे विश्वराज सिंह और उनके परिवार ने राजपरिवार की परंपराओं और अधिकारों को आधार बनाकर अपनी दावेदारी पेश की है।

विश्वराज सिंह का हालिया राजतिलक इसी विवाद का केंद्र बन गया। अरविंद सिंह ने इसे "अवैध और गैरकानूनी" करार दिया और राजतिलक के बाद धूणी माता और एकलिंगनाथ मंदिर की परंपरा निभाने के प्रयास का विरोध किया। उनका दावा है कि राजगद्दी और संपत्ति पर केवल उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह का अधिकार है।

संपत्ति विवाद का असर इस विवाद का प्रभाव सिर्फ परिवार तक सीमित नहीं है। मेवाड़ राजवंश की सांस्कृतिक धरोहरें और ऐतिहासिक संपत्तियां इस संघर्ष के केंद्र में आ गई हैं। इन संपत्तियों का महत्व न केवल पारिवारिक है, बल्कि ऐतिहासिक और पर्यटन दृष्टिकोण से भी अत्यधिक है। दोनों पक्ष अपनी-अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कानूनी और पारंपरिक दावों का सहारा ले रहे हैं, जिससे समाधान की संभावना कम नजर आ रही है।

यह विवाद न केवल मेवाड़ के इतिहास और विरासत को प्रभावित कर रहा है, बल्कि उदयपुर और चित्तौड़गढ़ की जनता के बीच भी चर्चा का विषय बना हुआ है।

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