कौन थे हरबिलास सारदा? 115 साल पहले लिख गए अजमेर दरगाह की सच्चाई..!

अजमेर: राजस्थान के अजमेर में स्थित अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर विवाद सामने आया है। एक स्थानीय अदालत ने दरगाह के सर्वेक्षण के आदेश दिए हैं। हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि दरगाह की जमीन के नीचे शिव मंदिर के अवशेष हैं। यह याचिका हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दायर की थी। याचिका में दीवान बहादुर हरबिलास सारदा की 1911 में लिखी किताब **"अजमेर: ए हिस्टोरिकल नैरेटिव"** का हवाला दिया गया है, जिसमें मंदिर के अवशेषों का जिक्र है। अदालत ने इस मामले में अल्पसंख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को नोटिस जारी किया है।  

हरबिलास सारदा अजमेर के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे। उनका जन्म 3 जून 1867 को हुआ था। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने अजमेर के सरकारी कॉलेज में शिक्षक के रूप में करियर शुरू किया। वे महर्षि दयानंद सरस्वती से प्रभावित होकर आर्य समाज से जुड़े और 21 साल की उम्र में अजमेर आर्य समाज के प्रमुख बने। उन्होंने अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत में जज और बाद में विधायक के रूप में कार्य किया। 1929 में बाल विवाह निषेध अधिनियम (शारदा ऐक्ट) पारित करवाने का श्रेय उन्हें जाता है।  

हरबिलास सारदा ने कई किताबें लिखीं, जिनमें "अजमेर: ए हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव" एक प्रमुख कृति है। इसमें उन्होंने दरगाह के परिसर में मंदिर के अवशेष होने का दावा किया है। उनकी किताब के अनुसार, दरगाह के मुख्य द्वार और तहखाने में मंदिर से जुड़े चिह्न दिखाई देते हैं। उन्होंने यह भी लिखा कि वहां शिवलिंग हुआ करता था, जहां ब्राह्मण परिवार पूजा करते थे।  

अब इसी किताब के आधार पर कोर्ट में दावा किया गया है कि दरगाह का निर्माण एक मंदिर के अवशेषों पर किया गया था। कोर्ट के आदेश के बाद यह मामला चर्चा में आ गया है। दरगाह कमेटी और अन्य संबंधित पक्षों से इस मुद्दे पर जवाब मांगा गया है।

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