पीएम मोदी को दिए गए बधाई सन्देश पर क्यों आपस में भिड़ गए चीन और ताइवान ?

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के लिए नरेंद्र मोदी को ताइवान की ओर से महज बधाई संदेश के रूप में शुरू हुआ मामला अब ऑनलाइन झड़प में बदल गया है। प्रधानमंत्री मोदी की इस टिप्पणी पर आपत्ति जताने के कुछ घंटों बाद कि वह ताइवान के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के लिए उत्सुक हैं, चीन ने अब कहा है कि ताइवान क्षेत्र में 'राष्ट्रपति' जैसी कोई चीज नहीं है।

भारत में चीन के दूतावास के प्रवक्ता ने एक एक्स पोस्ट में लिखा है कि, "ताइवान क्षेत्र के "राष्ट्रपति" जैसी कोई चीज़ नहीं है। ताइवान चीन के क्षेत्र का एक अविभाज्य हिस्सा है।" दूतावास ने ट्वीट किया कि, "पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार पूरे चीन का प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र कानूनी सरकार है। यह एक निर्विवाद तथ्य है, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सार्वभौमिक सहमति है और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में एक बुनियादी मानदंड है।" इससे पहले गुरुवार को ताइवान के विदेश मंत्रालय ने भारत और ताइवान के बीच सौहार्दपूर्ण आदान-प्रदान पर नाराजगी जताते हुए चीन की आलोचना की थी।

ताइवान के विदेश मंत्रालय ने ट्वीट किया था कि, "दो लोकतंत्रों के नेताओं के बीच सौहार्दपूर्ण आदान-प्रदान पर चीन की नाराजगी पूरी तरह से अनुचित है। धमकी और भय से कभी दोस्ती नहीं बढ़ती। ताइवान आपसी लाभ और साझा मूल्यों के आधार पर भारत के साथ साझेदारी बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।"

कैसे शुरू हुआ ये सब ?

दरअसल, भारत में चुनावी नतीजे जारी होने के बाद, ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने प्रधानमंत्री मोदी को आम चुनावों में जीत के लिए बधाई दी। एक्स पर पोस्ट किए गए संदेश में लाई ने लिखा कि , "प्रधानमंत्री को उनकी चुनावी जीत पर मेरी हार्दिक बधाई। हम तेजी से बढ़ती ताइवान-भारत साझेदारी को बढ़ाने, व्यापार, प्रौद्योगिकी और अन्य क्षेत्रों में अपने सहयोग का विस्तार करने के लिए तत्पर हैं, ताकि इंडो-पैसिफिक में शांति और समृद्धि में योगदान दिया जा सके।"

लाई के जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया कि, "लाई चिंग-ते, आपके गर्मजोशी भरे संदेश के लिए धन्यवाद। मैं और घनिष्ठ संबंधों की आशा करता हूं, क्योंकि हम पारस्परिक रूप से लाभकारी आर्थिक और तकनीकी साझेदारी की दिशा में काम कर रहे हैं।"  इसके बाद में, चीन ने भारत और ताइवान के बीच आदान-प्रदान पर विरोध जताया और इस बात पर जोर दिया कि नई दिल्ली को ताइवान के अधिकारियों की "राजनीतिक गणना" का विरोध करना चाहिए। मीडिया ब्रीफिंग के दौरान चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने कहा, "सबसे पहले, ताइवान क्षेत्र के 'राष्ट्रपति' जैसी कोई चीज नहीं है।

इस बातचीत पर टिप्पणी करने के लिए कहे जाने पर चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि, "जहां तक ​​आपके प्रश्न का सवाल है, चीन ताइवान के अधिकारियों और चीन के साथ राजनयिक संबंध रखने वाले देशों के बीच सभी प्रकार की आधिकारिक बातचीत का विरोध करता है। दुनिया में केवल एक चीन है। ताइवान पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के क्षेत्र का एक अविभाज्य हिस्सा है।" माओ ने कहा कि, "एक-चीन सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में एक सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त मानदंड है और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में इस पर आम सहमति है।" उन्होंने आगे कहा, "भारत ने इस पर गंभीर राजनीतिक प्रतिबद्धताएं व्यक्त की हैं और उससे अपेक्षा की जाती है कि वह ताइवान के अधिकारियों की राजनीतिक गणनाओं को पहचाने, चिंतित हो तथा उनका विरोध करे। चीन ने इस बारे में भारत के समक्ष विरोध जताया है।"

ताइवान के राष्ट्रपति लाई ने 20 मई को अपने उद्घाटन भाषण में बीजिंग से स्व-शासित द्वीप को डराना-धमकाना बंद करने का आह्वान किया था, क्योंकि उनकी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (DPP) ने जीत हासिल की है, जिसने वर्षों से चीन से बढ़ते खतरों के बावजूद लोकतंत्र की वकालत की है। चीन ताइवान को एक विद्रोही प्रांत मानता है जिसे मुख्य भूमि के साथ पुनः एकीकृत किया जाना चाहिए, भले ही बलपूर्वक ही क्यों न किया जाए।

चीन की आपत्ति पर अमेरिका की प्रतिक्रिया :- इस आदान-प्रदान पर चीन के विरोध के बीच, अमेरिका ने कहा है कि दो विदेशी नेताओं के बीच इस तरह के बधाई संदेश "कूटनीतिक कामकाज के सामान्य क्रम" का हिस्सा हैं। विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने गुरुवार को अपने दैनिक संवाददाता सम्मेलन में संवाददाताओं से कहा, "मैं कहूंगा कि इस तरह के बधाई संदेश कूटनीतिक कामकाज का सामान्य तरीका है।"

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