फिल्म "आनंद" में राजेश खन्ना ने एक ऐसा किरदार निभाया जो कैंसर से जूझते हुए भी जीवन को पूरे उत्साह और मुस्कान के साथ जीता है। यह किरदार हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि कठिनाइयों के बावजूद खुशी कैसे संभव है। बहुत से लोग इसे एक फिल्मी कहानी मान सकते हैं, लेकिन असल जिंदगी में भी कई ऐसे उदाहरण हैं जो इस सच्चाई को उजागर करते हैं, जहां मुसीबतों के बीच भी उम्मीद और सकारात्मकता का प्रकाश चमकता है। साइमन बोआस का उदाहरण साइमन बोआस, जो कैंसर से जूझते हुए अपने जीवन के अंतिम चरण में थे, ने 15 जुलाई को 47 वर्ष की आयु में निधन लिया। उनके बीबीसी के एक इंटरव्यू में दिए गए बयान ने सबको चौंका दिया। उन्होंने कहा, "मेरा दर्द नियंत्रित है और मैं बेहद खुश हूं।" इस अजीब बयान ने यह स्पष्ट किया कि मृत्यु के निकटता भी व्यक्ति को खुशी की भावना से दूर नहीं कर सकती। वास्तव में, उन्होंने अपनी जिंदगी में पहले से कहीं ज्यादा खुशी का अनुभव किया। मृत्यु के करीब खुशी का अनुभव यह बात अजीब लग सकती है कि कोई व्यक्ति मौत के करीब होते हुए भी खुश रह सकता है। हालांकि, एक क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में, मैंने पाया है कि यह अनोखा नहीं है। शोध के अनुसार, जब लोग मौत के डर का सामना करते हैं, तो वे अपने अंतिम समय में सकारात्मक भाषा का उपयोग करते हैं। ऐसे समय में, जीवन के प्रति एक नई दृष्टि विकसित होती है, और लोग जीवन के हर पल को महत्व देने लगते हैं। मौत से पहले जीवन का अर्थ समझना साइमन बोआस ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उन्होंने अपनी स्थिति को स्वीकार किया और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने रोम के दार्शनिक सेनेका के इस कथन को दोहराया कि "जीवन कितना लंबा है, यह हमारी सोच पर निर्भर करता है, न कि सालों पर।" मनोवैज्ञानिक विक्टर फ्रैंकल ने भी अपने अनुभवों से यह सिद्ध किया है कि किसी भी परिस्थिति में जीवन में अर्थ खोजना आवश्यक है। सामाजिक रिश्तों और साधारण खुशियों की अहमियत एक अध्ययन में पाया गया कि मृत्यु के करीब पहुंचते हुए लोग सामाजिक रिश्तों, प्रकृति की सुंदरता और साधारण खुशियों से अपनी खुशी प्राप्त करते हैं। जब उनका स्वास्थ्य बिगड़ता है, तो उनका ध्यान सुख से हटकर जीवन के अर्थ और संतोष की ओर केंद्रित हो जाता है। सामाजिक रिश्ते, जैसे परिवार और मित्रों के साथ समय बिताना, उनकी खुशी का मुख्य स्रोत बन जाता है। मौत के दर पर इमोशन मौत के करीब होते हुए, लोग खुशी के साथ-साथ दुख, गुस्सा, पछतावा और संतोष जैसी कई भावनाओं का अनुभव करते हैं। ये भावनाएँ जीवन के प्रति एक नई समझ और दृष्टिकोण का संकेत देती हैं, जो उन्हें अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी खुशी का अनुभव करने की शक्ति प्रदान करती हैं। यह स्थिति उनके लिए एक आत्म-परिवर्तन का अवसर बन जाती है, जहां वे अपने जीवन की वास्तविकता को समझते हैं और अपने कार्यों के परिणामों का मूल्यांकन करते हैं। शांति और संतोष का अनुभव यह समझ कि जीवन के अंत के साथ भी शांति और संतोष पाया जा सकता है, लोगों को अपने जीवन के आखिरी पल तक खुशी से जीने की प्रेरणा देती है। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां लोग अपने अंतिम क्षणों में जीवन की गहरी सच्चाइयों को समझते हैं और अपने प्रियजनों के साथ बिताए गए समय की कद्र करते हैं। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि जीवन के अंत की स्थिति में भी खुशी और संतोष का अनुभव संभव है। चाहे वह फिल्म "आनंद" का किरदार हो या वास्तविक जीवन के उदाहरण, यह दर्शाता है कि कठिनाइयों के बावजूद जीवन का आनंद लेना और हर पल को जीना संभव है। हमें यह समझना चाहिए कि जीवन की वास्तविकता का सामना करते हुए, हम सकारात्मकता और खुशी की ओर बढ़ सकते हैं, चाहे हालात कितने भी कठिन क्यों न हों। गिरफ्तार हुआ मशहूर साउथ फिल्म डायरेक्टर, ‘पलानी मंदिर के पंचामृत पर की थी विवादित टिप्पणी ‘मुस्लिम आक्रांताओं की तरह हिंदू-विरोधी-सरकारें भी लूट रही मंदिर’, मुक्ति के लिए आंदोलन करेगी VHP 'मोदी जी मुसलमानों की मस्जिद, कब्रिस्तान हड़पना चाहते हैं...', बोले असदुद्दीन ओवैसी