नेहरू-एडविना की चिट्ठियां सोनिया गांधी के पास क्यों? संग्रहालय ने राहुल को चिट्ठी लिख मांगी वापस

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय (PMML) ने एक बार फिर कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी से भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से संबंधित ऐतिहासिक दस्तावेजों के 51 बक्से वापस करने का आग्रह किया है। ये दस्तावेज कथित तौर पर सोनिया गांधी द्वारा 2008 में UPA सरकार के दौरान नेहरू स्मारक संग्रहालय से लिए गए थे। अहमदाबाद स्थित इतिहासकार और PMML के सदस्य रिजवान कादरी ने 10 दिसंबर, 2024 को राहुल गांधी को एक नया पत्र लिखकर इन दस्तावेजों को वापस करने की मांग दोहराई है।

जिन दस्तावेजों पर सवाल उठाए जा रहे हैं, उनमें नेहरू और जयप्रकाश नारायण, एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टीन, अरुणा आसफ अली, विजया लक्ष्मी पंडित और बाबू जगजीवन राम जैसी कई उल्लेखनीय हस्तियों के बीच पत्राचार शामिल हैं। कादरी के अनुसार, इन पत्रों का ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक है, जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम, नेहरू के राजनीतिक विचारों और देश के राष्ट्र निर्माण के शुरुआती वर्षों के बारे में जानकारी देते हैं। उनका कहना है कि इन सामग्रियों को शोध और अध्ययन के लिए जनता के लिए सुलभ बनाया जाना चाहिए।

हालाँकि, यह पहली मर्तबा नहीं है जब PMML ने ये मांग उठाई है। सितंबर 2024 में सोनिया गांधी से भी यही आग्रह किया गया था, लेकिन उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी। कादरी के पत्र में ये सुझाव भी दिया गया है कि यदि मूल दस्तावेज वापस नहीं किए जा सकते हैं, तो उनकी प्रतियां या डिजिटल संस्करण उपलब्ध कराए जाने चाहिए। उन्होंने खुद डिजिटलीकरण प्रक्रिया शुरू करने की भी पेशकश की थी, लेकिन कांग्रेस की तरफ से जवाब की कमी के कारण प्रक्रिया ठंडे बास्ते में चली गई।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इन दस्तावेजों में नेहरू और एडविना माउंटबेटन के बीच के पत्र भी शामिल हैं, जो लंबे समय से अटकलों और विवादों का विषय रहे हैं। कई लोगों के मन में ये सवाल भी है कि इन पत्रों में क्या रहस्य हो सकते हैं, खासकर जब से उन्हें एक सार्वजनिक संस्थान से हटा दिया गया और गांधी परिवार द्वारा निजी रखा गया। कादरी ने अपने पत्र में कहा है कि देश के इतिहास और उसकी मूल समस्याओं को भली-भांति समझने के लिए दस्तावेज बहुत महत्वपूर्ण हैं। महात्मा गांधी के लेखन को व्यवस्थित रूप से दर्ज किया गया है, जबकि सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे नेताओं के लिए ऐसा प्रयास नहीं किया गया। नेहरू और उनके पिता मोतीलाल नेहरू के पत्र ऐतिहासिक शोध में इस महत्वपूर्ण अंतराल को भर सकते हैं, जो भारत के स्वतंत्रता आंदोलन, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कामकाज और देश के प्रारंभिक वर्षों के बारे में जानकारी देते हैं।

उन्होंने एक नैतिक प्रश्न भी उठाया कि क्या ऐसे मूल्यवान ऐतिहासिक अभिलेखों को किसी परिवार की निजी संपत्ति ही रहना चाहिए या राष्ट्र की विरासत के हिस्से के रूप में संरक्षित किया जाना चाहिए ? PMML का दृढ़ विश्वास है कि भारत के अतीत की व्यापक समझ के लिए इन दस्तावेजों तक सार्वजनिक पहुँच आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि, इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में फरवरी 2023 में PMML  की वार्षिक बैठक के दौरान इन दस्तावेजों का मुद्दा उठाया गया था। 

उस वक़्त, चर्चा के दौरान, सदस्यों ने अभिलेखों की प्रामाणिकता की पुष्टि करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब नहीं है, फोरेंसिक ऑडिट का प्रस्ताव रखा गया था। कादरी ने अपने पत्र में स्वीकार किया कि सोनिया गांधी ने दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के लिए अच्छे इरादे से उन्हें अपने पास रखा होगा। हालांकि, कादरी ये भी कहते हैं कि इन सामग्रियों को सार्वजनिक डोमेन में उनके सही स्थान पर वापस करने का समय आ गया है। कांग्रेस क्या छिपा रही है? बार-बार मांग के बावजूद, कांग्रेस पार्टी ने इस मामले पर पूरी तरह से चुप्पी साध रखी है। इन पत्रों में कौन से रहस्य छिपे हैं कि गांधी परिवार ने उन्हें इतने लंबे समय तक निजी क्यों रख रखा है? अगर इन दस्तावेजों में कुछ भी विवादास्पद या संवेदनशील नहीं है, तो उन्हें संग्रहालय को वापस क्यों नहीं किया जा रहा है? 

अभी तक, राहुल गांधी ने PMML के हालिया पत्र का जवाब नहीं दिया है। कांग्रेस पार्टी की तरफ से पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी इन पत्रों की सामग्री और भारत के ऐतिहासिक आख्यान पर उनके संभावित प्रभाव के बारे में अटकलों को और बढ़ाती है। यह अनसुलझा मुद्दा ऐतिहासिक सामग्रियों के स्वामित्व और पहुंच के बारे में एक बड़ी बहस खड़ी कर सकता है, अगर गांधी परिवार या कांग्रेस इसका जवाब देने में और देर करेंगे।

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