विवाहित महिला की संपत्ति पर उसके माता-पिता का अधिकार क्यों नहीं ? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से माँगा जवाब

नई दिल्ली: हिंदू उत्तराधिकार कानून में लैंगिक आधार पर पक्षपात खत्म करने के लिए कमल अनंत खोपकर की याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं. अदालत ने पूछा है कि जैसे किसी हिंदू विवाहित पुरुष की निजी यानी खुद की अर्जित संपत्ति में उसके देहांत के बाद उसकी पत्नी और माता-पिता भी हिस्सेदार हो सकते हैं, तो किसी विवाहित महिला की निजी अर्जित संपत्ति में उसके माता-पिता हिस्सेदार क्यों नहीं हो सकते? केवल पति ही क्यों हिस्सेदार होता है? 

याचिका में उत्तराधिकार निर्धारित करने में महिलाओं की गरिमा और लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए अदालत से निर्देशिका जारी करने की गुहार लगाई गई है. सर्वोच्च न्यायालय में इस जनहित याचिका पर न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ के नेतृत्व में न्यायमूर्ति सूर्यकुमार और न्यायमूर्ति बेला माधुर्य त्रिवेदी की बेंच ने केंद्र को अपना रुख स्पष्ट करने के साथ साथ अगली सुनवाई अगले महीने तक के लिए टाल दी. याचिकाकर्ता की तरफ से मृणाल दत्तात्रेय बुवा और धैर्यशील सालुंखे ने कोर्ट में दलील दी कि हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 की धारा 15 के अनुसार, केवल पति के परिजनों को ही पति की निजी संपत्ति पर उत्तराधिकार मिलता है. उसकी पत्नी के परिजनों यानी माता पिता को नहीं. 

उन्होंने कहा कि इस कानून के तहत यदि कोई हिंदू महिला का देहांत, बगैर वसीयत लिखे ही हो जाता है तो उसका पति ही सारी अर्जित संपत्ति का सारा हकदार हो जाता है. फिर वो चाहे तो मृतक महिला के माता पिता को एक पैसा भी ना दे. क्योंकि कानून में किसी महिला की व्यक्तिगत संपत्ति में उसके माता पिता का कोई हक नहीं, मगर पुरुष की संपत्ति में उसके माता पिता का हक होता है.

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