संघर्षविराम के पालन का ठेका सिर्फ भारत का ही क्यों ?

सरकार चाहे कितनी ही कड़ी निंदा कर ले, कितने ही ठोस कदम उठाने के दावे कर ले, लेकिन पाकिस्तान द्वारा सीमा पर किया जा रहा संघर्षविराम का उल्लंघन कम होने के बजाए उल्टा बढ़ता ही जा रहा है. सीमा पर चल रही गोलीबारी के कारण जान और माल की हानि तो होती ही है, साथ ही इस मुठभेड़ का फायदा उठाकर आतंकवादी भी सीमा से घुसपैठ कर जाते हैं, जो जम्मू कश्मीर के युवाओं के जेहन में जिहाद का ज़हर भरते हैं. संघर्षविराम का इस तरह बार- बार उल्लंघन भारत के गले की फांस बन चुका है.

अगर इस साल की बात करें तो 2018 के शुरुआती 4 माह में ही पाकिस्तान द्वारा 747 बार संघर्षविराम का उल्लंघन किया है, यह आंकड़ा पिछले 15 साल की तुलना में सबसे ज्यादा है. जबकि 2017 में पुरे साल भर में लगभग 720 बार संघर्षविराम का उल्लंघन किया गया था. 2016 की बात करें तो यह आंकड़ा और कम हो जाता है, वर्ष 2016 में यह संख्या 449 थी. हर साल सैकड़ों जानें पाकिस्तान की इस नापाक हरकत की वजह से जाती है. लेकिन सबकुछ जानते हुए भी सरकार अनभिज्ञ बनी हुई है.

हर संघर्षविराम के बाद, हमलों की कड़ी निंदा की जाती है, ठोस कदम उठाने की बात की जाती है, मीडिया में तीखे तेवर दिखाए जाते हैं, लेकिन घटनाएं कम होने के बजाए उल्टा बढ़ रहीं हैं. जब हमे पता ही है कि सीमा पार से आए दिन हमले होते रहते हैं, तो हमारी सरकार क्यों मात्र उसके हमले रोकने का प्रयत्न करती है ? क्या हमारे जवान सिर्फ पाकिस्तान की गोलियों का जवाब देने के लिए है? क्या उन्हें एक भी बार ये सवाल करने का हक़ नहीं कि आखिर दुश्मन चाहता क्या है?  हमारी सेना को मात्र सीमा पर एक ढाल बना कर खड़ा कर रखा है, जबकि उसे तलवार बनाने की जरुरत है, जो दुश्मन के सीने के पार हो जाए. 

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