रांची: धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाने की मांग को लेकर फरवरी में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बड़े पैमाने पर आदिवासी विरोध प्रदर्शन आयोजित करने की योजना बनाई जा रही है। रविवार, 24 दिसंबर को, झारखंड के रांची में आदिवासी समुदायों ने धर्मान्तरण कर चुके आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (ST) सूची से "हटाने" की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया। इस आयोजन में कथित तौर पर लगभग 5,000 आदिवासियों ने भाग लिया। इस दौरान आदिवासियों ने ''जो भोलेनाथ का नहीं, वो मेरी जात का नहीं'' और ''कुलदेवी को जो छोड़ेगा, आरक्षण वो खोएगा'' जैसे नारे भी दिए। यह मेगा विरोध प्रदर्शन RSS समर्थित वनवासी कल्याण केंद्र के सहयोगी जनजंतिया सुरक्षा मंच (JSM) के बैनर तले आयोजित किया गया था, जो आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है। JSM मांग कर रहा है कि ईसाई या इस्लाम में परिवर्तित किए गए सभी आदिवासियों से उनका ST दर्जा छीन लिया जाए, ताकि उन्हें अतिरिक्त लाभ न मिले। दरअसल, धर्मान्तरित होने वाले SC/ST और OBC समुदाय के लोगों को आरक्षण और इन वर्गों को मिलने वाली अन्य सुविधाओं का लाभ तो मिलता ही है, साथ ही इस्लाम या ईसाइयत में धर्मांतरित होने के बाद वो अल्पसंख्यकों को मिलने वाले लाभों के भी पात्र हो जाते हैं, जिससे वास्तविक SC/ST और OBC समुदाय के अधिकारों पर नकारात्मक असर पड़ता है और उन्हें पर्याप्त हक़ नहीं मिल पाते। JSM का कहना है कि ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों को चर्च और मिशनरी संस्थानों से शिक्षा और आर्थिक रूप से भी मदद मिलती है। इससे उन्हें गैर-धर्मांतरित आदिवासियों की तुलना में काफी अधिक सामाजिक और वित्तीय लाभ मिलता है। धर्मांतरित आदिवासियों को चर्चों के माध्यम से विदेशी धन मिलता है, साथ ही ST दर्जे के तहत आरक्षण का लाभ भी मिलता है और धार्मिक अल्पसंख्यक होने के कारण सरकारी लाभ भी मिलते हैं, जिससे वास्तविक ST समुदाय को नुकसान होता है। लोकसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर और आदिवासी नेता करिया मुंडा ने कहा कि, "झारखंड में ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों का प्रतिशत लगभग 15-20% होगा, लेकिन अगर हम सरकारी नौकरियों और IAS सहित प्रथम श्रेणी के अधिकारियों को देखें, तो उसमे 80-90% वे लोग हैं, जो धर्मांतरित हो चुके हैं।" हालाँकि, अभी फरवरी में दिल्ली में होने वाली रैली की तारीख तय नहीं हुई है। लेकिन, इसमें विभिन्न शहरों से आदिवासियों के भाग लेने की संभावना जताई जा रही है। करिया मुंडा ने कहा है कि, "नागपुर, नासिक और मुंबई में इसी तरह की बैठकों में कई हजार आदिवासी विरोध प्रदर्शन करने के लिए एकत्र हुए हैं।" JSM के राष्ट्रीय सह-संयोजक राजकिशोर हांसदा ने कथित तौर पर कहा कि भारतीय संविधान के निर्माताओं ने भारत के आदिवासियों और जातीय समूह के अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोत्तम प्रयास किए थे, लेकिन ये लाभ चर्च द्वारा समर्थित मुट्ठी भर "अच्छे इरादों वाले आदिवासियों" को मिला। रविवार को, प्रदर्शनकारियों ने अपने पारंपरिक परिधान पहने, धनुष, तीर, तलवार और दरांती जैसे हथियार ले रखे थे। भाजपा लोकसभा सांसद सुदर्शन भगत ने कहा कि, 'रैली का मुख्य उद्देश्य उन आदिवासियों को सूची से हटाने की मांग करना था, जिन्होंने इस्लाम, ईसाइयत या अन्य धर्म अपना लिए हैं। उन्हें अनुसूचित जनजाति (ST) को मिलने वाले आरक्षण लाभ से वंचित किया जाये। उन्हें उन लोगों से लाभ लेने का कोई अधिकार नहीं है जो वास्तविक आदिवासी हैं।' राज्यसभा सदस्य समीर ओरांव ने कहा कि, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग अपनी संस्कृति, आस्था और परंपरा को छोड़कर ईसाई या मुस्लिम बन गए हैं। वे आबादी का महज 20 फीसदी होंगे, लेकिन यही लोग मूल आदिवासियों से 80 फीसदी लाभ छीन रहे हैं।' रैली में भाग लेने वाले अन्य वरिष्ठ नेताओं में लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष और आदिवासी सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संरक्षक करिया मुंडा, छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री गणेश राम भगत उरावं, मध्य प्रदेश के प्रकाश सिंह शामिल हैं। बता दें कि, धर्मांतरित आदिवासियों को ST की सूची से हटाने की मांग नई नहीं है। इस साल मई में गुजरात के अहमदाबाद में गुजरात जनजाति सुरक्षा मंच के नेतृत्व में समुदाय द्वारा एक रैली का आयोजन किया गया था। आदिवासियों को डराकर, लालच देकर या बरगलाकर धर्म परिवर्तन कराने की साजिश दशकों से चल रही है। हालाँकि, कई धर्मांतरित लोगों ने कागज पर अपना धर्म नहीं बदला है और वे हिंदू बने हुए हैं, जिससे उन्हें आरक्षण सहित अन्य लाभ भी मिलते हैं और चर्च या मस्जिद से पैसा भी। इस मुद्दे पर 14 दिसंबर को महाराष्ट्र सरकार ने घोषणा की थी कि राज्य में दोहरे लाभ प्राप्त कर रहे धर्मांतरित आदिवासियों के मुद्दे पर एक समिति बनाई जाएगी। महाराष्ट्र के मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा ने विधान परिषद में कहा कि महाराष्ट्र में अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय के उन सदस्यों को मिलने वाले लाभों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा, जिन्होंने ईसाई धर्म या इस्लाम अपना लिया है और हिंदू धर्म छोड़ दिया है। पैनल की अध्यक्षता एक विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा की जाएगी और इसमें सभी राजनीतिक दलों के सदस्य शामिल होंगे जो आदिवासी (जनजाति/वनवासी) धर्मांतरण के मामलों को देखेंगे। 21 दिसंबर को, उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने एक इंटरव्यू में कहा था कि राज्य भर में सक्रिय मिशनरियों द्वारा आदिवासी आबादी को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के मामले को उचित सरकारी कार्रवाई के साथ संबोधित करने की आवश्यकता है। साव ने कहा था कि आदिवासियों का धर्मांतरण रोकना होगा। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसका समाधान किया जाना चाहिए। हम इसे रोकने के लिए कानूनी ढांचे के तहत जो भी संभव कदम होंगे, उठाएंगे। बदला जाएगा अयोध्या के नवनिर्मित मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम हवाई अड्डे का नाम, प्रस्ताव भेजने की तैयारी में योगी सरकार बदमाशों ने उठाया पंडित प्रदीप मिश्रा के कार्यक्रम का फायदा, चुराए श्रद्धालुओं के गहने, 13 महिला चोर 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