इन दिनों तलाक पर काफी बहस हो रही है यूं तो वर्तमान जीवन शैली जिस तरह की हो गई है। लोग अब एडजस्ट से अनएडजस्टेबल होने लगे हैं उससे तलाक का नाम अक्स सोसायटी में सामने आने लगा है मगर यहां पर हम तलाक, तलाक और तलाक की बात कर रहे हैं। जी हां, तीन तलाक को लेकर भारत का वर्ग विशेष चिंतन में है तो दूसरी ओर राजनीति भी इससे सरोकार रख रही है। न्यायालयों द्वारा मुस्लिम महिलाओं को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय दिए जा रहे हैं और तीन तलाक को असंवैधानिक बताया जा रहा है। न्यायालय ने सदैव ही आम आदमी के अधिकार में महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं और इस बार भी उसका निर्णय अहम है। हम यहां पर न्यायालय के निर्णय की विवेचना नहीं कर रहे हैं हम तो यहां इस सामयिक विषय को प्रस्तुत कर रहे हैं। न्यायपालिका का लोकतंत्र में अहम स्थान है और इसकी अपनी गरिमा है। तीन तलाक के मसले पर जिस तरह से मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड अपनी बात रख रहा है। वह समझ से परे है। जब मुस्लिम महिलाऐं पुरूषों के समान अधिकार की बात करते हुए तीन तलाक के मसले को समाप्त करना चाहती हैं तो फिर आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड इसमें लचीलापन क्यों नहीं अपना रहा है। हालांकि निश्चित ही मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड का अपना मत है मगर महिलाओं की मांग को देखते हुए और समय की नजाकत को समझते हुए इसे अपने नियमों में बदलाव लाना चाहिए। जिस कुरान का हवाला दिया जा रहा है उसमें भी इंसानियत और इंसानों के अधिकार की बात कही गई है। आखिर फिर कुरान के आधार पर महिलाओं को उनकी स्वतंत्रता और अधिकार से वंचित रखना कहां तक जायज़ है।