नई दिल्ली: 5 अगस्त को, हिंसक प्रदर्शनकारियों ने लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटा दिया और उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए भारत में शरण लेने के लिए मजबूर कर दिया। इससे वहां का विपक्ष खुश हुआ, कट्टरपंथी खुश हुए, क्योंकि उन्हें अब खुली छूट मिल गई है, आतंकी भी खुश हुए, क्योंकि उन्हें जेल से भागने का मौका मिला और उन पर से मुक़दमे भी वापस ले लिए गए। लेकिन, भारत के एक प्रमुख और बड़े मीडिया समूह को इसमें ख़ुशी मनाने की क्या आवश्यकता पड़ी, ये बात थोड़ी समझ से परे लग रही है। दरअसल, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (PCI) ने कथित तौर पर शेख मुजीबुर रहमान का चित्र अपने दफ्तर से हटा दिया है, जिन्हें बांग्लादेश के राष्ट्रपिता - 'बंगबंधु' के नाम से जाना जाता है। वो मुजीबुर रहमान ही थे, जिन्होंने बंगलियों को पाकिस्तानी फ़ौज से बचाने के लिए लड़ाई लड़ी। जब पाकिस्तानी सेना बंगाली महिलाओं के सामूहिक बलात्कार कर रही थी, तब मुजीबुर रहमान ही उनके बचाव में खड़े हुए, इसलिए उन्हें बंगबंधु नाम मिला। उन्होंने ही भारत से मदद लेकर बंगालियों को अलग देश बनाकर दिया। जब बांग्लादेश बना था, तब वो धर्मनिरपेक्ष था, क्योंकि, अपने जन्म के समय ही उसने इस्लामी कट्टरपंथ का कूर चेहरा देख लिया था। इसलिए तत्कालीन बांग्लादेशी नेताओं ने सेक्युलर और समाजवादी रहना चुना, जिसमे मुजीबुर प्रमुख थे। लेकिन 1971 को बने देश में जल्द ही कट्टरपंथ फैला और 1975 में राष्ट्रपति मुजीबुर रहमान की उनके 16 परिजनों सहित मार डाला गया, ये सैन्य तख्तापलट था। उस समय 28 साल की रही उनकी बेटी शेख हसीना देश से भागी और भारत में शरण ली। 1981 में शेख हसीना वापस अपने पिता की विरासत और अपने देश को संभालने वापस पहुंची, लेकिन तब तक हालात बहुत बदल चुके थे। इस बीच बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP), जिसकी मौजूदा अध्यक्ष खालिदा जिया हैं। इसी BNP के मौदूद अहमद 1988 में बांग्लादेश के प्रधानमंत्री बने और उन्होंने संविधान में संशोधन करके बांग्लादेश को इस्लामी राष्ट्र घोषित कर दिया। ठीक उसी तरह जैसे भारत में इमरजेंसी के दौरान चुपचाप संविधान की प्रस्तावना ही बदल दी गई और उसमे सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्द जोड़ दिए गए। बहरहाल, 1996 में जब शेख हसीना पहली बार बांग्लादेश की पीएम बनीं, तब तक वो एक इस्लामी मुल्क बन चुका था, जिसे बदलना असंभव था। फिर भी शेख हसीना ने कट्टरपंथ को बढ़ने से रोकने और देश की प्रगति के लिए काफी कदम उठाए। पाकिस्तान की तुलना में बांग्लादेश तेजी से तरक्की कर रहा था, लेकिन कट्टरपंथियों के साथ ही ये चीन-पाकिस्तान को पसंद नहीं आ रहा था कि बांग्लादेश भारत के इतना करीब क्यों है ? यही चिंगारी को हवा दे देकर आग बनाया गया और धीरे धीरे इसमें बारूद डालकर विस्फोट किया गया। आरक्षण का तो कोई मुद्दा ही नहीं था, बांग्लादेशी सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर रोक लगा दी थी, प्रदर्शन रुक जाना चाहिए थे। शेख हसीना ने पद छोड़ दिया, देश छोड़ दिया, तब हिंसा रुक जानी चाहिए थी ? लेकिन, हिंसा आज भी जारी है। हिंसक प्रदर्शनकारियों ने बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की विरासत को मिटाने के लिए कई बांग्लादेशी ऐतिहासिक धरोहरों को निशाना बनाया है और उन्हें नष्ट कर दिया। उन्होंने मुजीबुर रहमान की मूर्ति पर चढ़कर, उस पर पेशाब करके और हथौड़ों से उसे नुकसान पहुंचाकर भी अपवित्र किया। हिन्दुओं के घरों पर कट्टरपंथियों की भीड़ टूट पड़ी। उनके मंदिर तोड़े गए, घर जलाए गए, पुरुषों की हत्या की गई और महिलाओं के सामूहिक बलात्कार। अगर इन सब चीज़ों की ख़ुशी भारत का कोई प्रमुख मीडिया समूह मनाता है, तो सवाल उठना लाज़मी हैं ? भारत की राजधानी नई दिल्ली में स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अज्ञात 'पत्रकार/कर्मचारी' ने उनकी तस्वीर हटा दी। यह ध्यान देने योग्य है कि, शेख मुजीबुर रहमान को बांग्लादेश के पिता के रूप में मान्यता प्राप्त है क्योंकि उन्होंने 'मुक्ति वाहिनी' का गठन किया था, जिसने पाकिस्तानी सेना की ज्यादतियों के खिलाफ भारतीय सेना के साथ लड़ाई लड़ी और बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) को आजाद कराया। हालांकि, PTI कार्यालय से उनकी तस्वीर हटाए जाने पर सोशल मीडिया पर काफी नाराजगी हुई। इस कृत्य के लिए कड़ी आलोचना का सामना करने के बाद, उनकी तस्वीर को उसके मूल स्थान पर पुनः स्थापित कर दिया गया। सुभाष यादव ने 5 अगस्त को शाम 7:10 बजे प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की बिल्डिंग के अंदर की एक तस्वीर ली, जहां से शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर हटा दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, सुभाष एस यादव ने सोमवार को एक फोटो ली थी, जब तस्वीर हटा ली गई थी। उन्होंने सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को उठाया और सभी का ध्यान आकर्षित किया, जिसके बाद 4 दिन बाद तस्वीर को फिर से उसी स्थान पर लगा दिया गया। तस्वीर के फिर से लगाए जाने के बाद उन्होंने शुक्रवार (अगस्त 9, 2024) को इसे फिर से लगाया। PCI के कुछ पत्रकारों ने माना भी है कि तस्वीर हटाने की काफी निंदा के बाद तस्वीर फिर से लगाई गई है। उन्होंने यह भी बताया कि बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शनकारियों द्वारा शेख हसीना को सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद PCI में जश्न मनाया गया था। इसी जश्न के दौरान तस्वीर हटा दी गई थी। बता दें कि, प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया ऐसे पत्रकारों का समूह माना जाता है, जो वामपंथी विचारधारा पर चलते हैं। एक रिपोर्ट में सूत्र के हवाले से कहा गया है कि, शेख हसीना अक्सर, PCI में बिरयानी पार्टी करवाती थीं, जिसके लिए रसोइया भी बांग्लादेश से आता था। लेकिन, उन्ही बिरयानी खाने वालों ने शेख हसीना के हटने का जश्न मनाया और उनके पिता की तस्वीर भी हटा दी। बताया ये भी जाता है कि PCI के पास भारत की आजादी के लिए बलिदान देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की तस्वीरें तक नहीं हैं। लेकिन, बांग्लादेश में हो रही हिंसा शेख हसीना के हटने का ही परिणाम है और उसका जश्न मनाने का सीधा मतलब बेकसूरों की लाशों पर ठहाके लगाना है। भारत को भी ऐसे लोगों से सतर्क रहने की जरूरत है, कि कल को यदि भारत में ऐसी स्थिति पैदा होती है, तो ये किस तरफ खड़े होंगे ? 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