सुप्रीम कोर्ट ने एक केस पर सुनवाई करते हुए कहा कि ‘विशेष विवाह अधिनियम के तहत दूसरे धर्म के पुरुष से शादी करने पर महिला का धर्म पति वाला स्वतः नहीं हो जाता. शादी के बाद महिला की व्यक्तिगत पहचान और उसका धर्म तब तक बना रहता है जब तक वह अपना धर्म परिर्वतन न कर ले.‘ यह मामला हिन्दू से शादी करने वाली पारसी महिला गुलरुख एम. गुप्ता का है, जिन्होने अपने पिता के अंतिम संस्कार मे अपने मूल धर्म पारसी की मान्यता के मुताबिक हिस्सा लेने का अधिकार मांगा है. उन्होंने गुजरात हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया था कि दूसरे धर्म के पुरुष से शादी करने के बाद महिला का धर्म पुरुष के धर्म में स्वतः परिवर्तित हो जाता है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ के समक्ष याची की ओर से वरिष्ठ वकील इंद्रा जयसिंह ने कहा कि उनकी मुवक्किल ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत हिंदू पुरुष से शादी की थी, जो बगैर धर्म परिवर्तन के दूसरे धर्म में शादी की इजाज़त देता है. पारसी ट्रस्ट की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि पारसी समुदाय मानता है कि व्यक्ति को धर्म के अंदर ही विवाह करना चाहिए. धर्म के बाहर विवाह करने वाले को पारसी धर्म की मान्यताओं में हिस्सा लेने का अधिकार नहीं होता. पीठ ने उनसे कहा कि वे ट्रस्ट से निर्देश लेकर कोर्ट को बताएं कि क्या याची को पिता के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने की इजाजत दी जा सकती है या नहीं. कोर्ट मामले पर 14 दिसंबर को सुनवाई करेगा. यहां देखें दिनभर की 10 बड़ी खबरें क्यों चर्चा में है सरकार का वित्तीय संबंधी बिल अब हिमाचल को भी मिलेगा जीएसटी छूट का लाभ