शास्त्रों के अनुसार, अब तक चार प्रमुख युगों का चक्र बताया गया है, जिनमें तीन—सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग—बीत चुके हैं और हम वर्तमान में चौथे युग, कलियुग, में जीवन जी रहे हैं। हर युग का एक विशेष महत्व और गुण होता है। सतयुग को सत्य और धर्म का युग माना जाता है, जहां धर्म और नैतिकता का पालन चरम पर था। इसके बाद त्रेतायुग आया, जिसमें धर्म का तीन-चौथाई भाग रह गया और अधर्म बढ़ने लगा। फिर द्वापरयुग में अधर्म का और अधिक प्रसार हुआ। वर्तमान युग, कलियुग, इन सबसे अधिक अधर्म और अनीति का युग माना गया है। कलियुग का प्रभाव और लक्षण कलियुग को शास्त्रों में मानवता और नैतिकता के पतन का युग बताया गया है। इस युग में मनुष्य अपने ही कर्मों का दंड भुगतेगा। धर्म, करुणा, और सत्य के मूल्यों का पतन होगा और अज्ञानता, हिंसा, लोभ, और अहंकार का विस्तार होगा। मान्यता है कि कलियुग की शुरुआत एक प्रतीकात्मक घटना से होगी, जिसमें महिलाओं के बाल काटने की परंपरा का आगमन होगा। यह उस सामाजिक पतन का संकेत होगा, जो कलियुग की विशेषता है। पारिवारिक कलह और सामाजिक विघटन भगवान विष्णु के अनुसार, कलियुग में परिवारों में विवाद बढ़ेंगे। पुत्र अपने पिता से झगड़ेंगे, माता-पिता का सम्मान कम हो जाएगा, और परिवारों में मेल-जोल और प्रेम की भावना का अभाव रहेगा। रिश्तों में कड़वाहट, स्वार्थ और अलगाव की भावना प्रबल होगी। प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप शास्त्रों में बताया गया है कि कलियुग के दौरान पृथ्वी पर प्राकृतिक आपदाएँ चरम पर होंगी। अम्लीय वर्षा से धरती की उर्वरता कम हो जाएगी, जिससे पेड़-पौधे और जीव-जंतु नष्ट हो जाएंगे। पर्यावरण संतुलन बिगड़ जाएगा, और मानव जाति अस्तित्व के लिए संघर्ष करने लगेगी। इसके परिणामस्वरूप, भुखमरी और बीमारियाँ व्यापक रूप से फैलेंगी, जो मानवता को और अधिक संकट में डालेंगी। मनुष्यता का पतन कलियुग में मानवता और नैतिकता पूरी तरह से लुप्त हो जाएगी। मनुष्य अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक-दूसरे को हानि पहुंचाने लगेंगे। लोग अपनी भूख और लालच में एक-दूसरे से लड़ेंगे, और समाज में विश्वास और सहयोग की भावना खत्म हो जाएगी। धरती पर दया, करुणा और इंसानियत का अंत होगा। चरम मौसम की स्थिति कलियुग में भयानक प्राकृतिक प्रकोप होंगे। गर्मी, सर्दी, तूफान, बाढ़ और बर्फबारी जैसे मौसम के बदलाव अपने चरम पर होंगे। मौसम का यह असंतुलन पर्यावरण को विनाश की ओर ले जाएगा। कलियुग के अंत में, इन आपदाओं के साथ-साथ पृथ्वी के कई हिस्सों में जीवन समाप्त होने लगेगा। संसार का अंत और सतयुग का आगमन शास्त्रों और पुराणों के अनुसार, कलियुग के अंत में संसार का पूर्ण रूप से विनाश हो जाएगा। इस विनाश के बाद एक नए युग की शुरुआत होगी, जिसे सतयुग कहा जाएगा। सतयुग को फिर से धर्म और नैतिकता का युग माना जाएगा, जहाँ सत्य, दया, और धार्मिकता फिर से स्थापित होंगे। यह चक्र अनंत है, और युगों का यह परिवर्तन प्रकृति और संसार की स्वाभाविक व्यवस्था का हिस्सा है। इस प्रकार, शास्त्रों के अनुसार, वर्तमान कलियुग में मानवता एक गहरे नैतिक और सामाजिक संकट का सामना कर रही है, जिसके अंत में संसार का पुनर्निर्माण होगा और सतयुग का आगमन होगा। शुभ है घर में इन 3 संकेतों का दिखना, मिलने वाली है 'गुडन्यूज़' जानिए बप्पा की विदाई का शुभ मुहूर्त और विसर्जन की विधि 16 या 17 सितंबर, कब है अनंत चतुर्दशी? इस दिन जरूर करें ये कार्य