क्या लड़की बहन योजना बनेगी शिंदे सरकार की तारणहार? जानें महाराष्ट्र की महिलाओ की राय

मुंबई: महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार द्वारा जुलाई में शुरू की गई "लड़की बहिन योजना" ने राजनीतिक चर्चाओं का एक अहम मुद्दा बनकर सभी का ध्यान आकर्षित किया है। यह योजना महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें आर्थिक मदद प्रदान करने की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, इस योजना को लेकर विपक्षी दलों ने तरह-तरह की साजिशें रचीं और आलोचना की, लेकिन सरकार ने इस योजना को सफलतापूर्वक लागू करके अपना वादा निभाया।

महाराष्ट्र के वित्त मंत्री अजित पवार ने जून में वित्तीय बजट पेश करते समय "लड़की बहिन योजना" की घोषणा की थी। इस योजना के तहत, हर वर्ग की पात्र महिलाओं को हर महीने ₹1,500 की आर्थिक सहायता देने का वादा किया गया। योजना का उद्देश्य राज्य की महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाना और उनके जीवन स्तर में सुधार लाना है। योजना का ऐलान होते ही बड़ी संख्या में महिलाओं ने इस योजना में अपना पंजीकरण कराना शुरू कर दिया। अब तक राज्य में करीब डेढ़ करोड़ से अधिक महिलाओं ने पंजीकरण पूरा कर लिया है।

योजना की सफलता को देखते हुए, विरोधी पार्टियों ने इसे बदनाम करने के लिए कई प्रकार की आलोचनाएँ कीं। पहले उन्होंने इसे सरकार का "जुबानी जुमला" बताया और कहा कि यह महज चुनावी राजनीति है। लेकिन जब जुलाई में महिलाओं के खातों में ₹1,500 की राशि जमा होनी शुरू हो गई, तो आलोचनाओं का स्वर बदलने लगा। महिलाओं ने भी योजना पर अपनी उम्मीदें जताईं और पंजीकरण की प्रक्रिया में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

 

विपक्षी दलों ने योजना के कारण राज्य पर बढ़ते वित्तीय बोझ का मुद्दा उठाया। उनका दावा था कि सरकार के पास इतनी बड़ी राशि देने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं और इसे पूरा करने के लिए सरकार भारी कर्ज ले रही है। इसके बावजूद, वित्त मंत्री अजित पवार ने इस तरह के आरोपों का खंडन करते हुए योजना की निरंतरता का आश्वासन दिया। 

योजना के पंजीकरण के लिए महिलाओं की लंबी कतारें देखने को मिलीं। इसके बीच, योजना की लोकप्रियता को देखकर विरोधियों ने पंजीकरण प्रक्रिया में बाधाएं पैदा करने की कोशिश की। सोशल मीडिया पर गलत सूचनाएँ फैलाई गईं और ऑनलाइन पंजीकरण पोर्टल पर गलत जानकारी डाली गई। विरोधी दलों ने ऐसी अफवाहें भी फैलाने की कोशिश कीं कि चुनाव आयोग की आचार संहिता लागू होते ही योजना में अड़चनें आएंगी। 

सरकार ने इन प्रयासों का सामना करते हुए, महिलाओं को सही जानकारी देने के लिए कदम उठाए और ऑफलाइन पंजीकरण प्रक्रिया शुरू की। इन प्रयासों का असर यह हुआ कि महिलाओं में सरकार पर भरोसा और मजबूत हुआ और उन्होंने विपक्षी दलों के बहकावे को नजरअंदाज कर दिया।

इस योजना की शुरुआत चुनाव से चार महीने पहले की गई थी, जो कि एक राजनीतिक दृष्टिकोण से एक मजबूत रणनीति कही जा सकती है। हालांकि, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यह योजना केवल चुनावों तक सीमित नहीं रहेगी बल्कि चुनावों के बाद भी जारी रहेगी। उनके इस आश्वासन ने महिलाओं के बीच सरकार के प्रति भरोसे को और बढ़ाया।

वहीं, विपक्ष के नेता उद्धव ठाकरे ने चेतावनी दी कि अगर वे सत्ता में आए, तो इस योजना को बंद कर देंगे। उन्होंने नैतिकता का मुद्दा उठाते हुए कहा कि सरकार महिलाओं के वोट खरीदने की कोशिश कर रही है। सोशल मीडिया पर भी कुछ वीडियो वायरल हुए जिनमें कुछ महिलाओं को यह कहते हुए दिखाया गया कि उन्हें ₹1,500 नहीं चाहिए, बल्कि सस्ता गैस सिलेंडर चाहिए।

शिंदे सरकार ने ‘लड़की बहिन योजना’ के माध्यम से महिलाओं का दिल जीतने की कोशिश की है। महिलाओं के खातों में धनराशि जमा होने से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है और सरकार के प्रति उनकी निष्ठा बढ़ी है। हालांकि, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि यह योजना चुनावी सफलता में कितनी कारगर साबित होगी। 

विपक्ष के लगातार आरोपों और योजना को बदनाम करने की कोशिशों के बावजूद, महिलाओं का समर्थन सरकार के साथ बना हुआ है। सरकार की इस पहल ने महिलाओं को आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाया है और उनका आत्मविश्वास भी बढ़ाया है। यह योजना न केवल महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बना रही है, बल्कि उन्हें राजनीतिक रूप से भी जागरूक कर रही है।

अब सवाल यह उठता है कि क्या "लड़की बहिन योजना" महाराष्ट्र चुनाव में शिंदे सरकार की तारणहार साबित होगी? अगर योजना के माध्यम से महिलाओं का विश्वास बना रहा और वे सरकार के समर्थन में वोट करती हैं, तो यह योजना निश्चित रूप से शिंदे सरकार के लिए एक मजबूत चुनावी हथियार साबित हो सकती है।

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