वक्फ को बचाने के लिए 'हत्या' करेंगे TMC सांसद? कांच की बोतल से किया हमला

नई दिल्ली: संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की बैठक में मंगलवार, 23 अक्टूबर को बड़ी घटना घटित हुई, जब टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने गुस्से में अध्यक्ष जगदंबिका पाल पर कांच की बोतल फेंक दी। बीजेपी सांसद और समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने आरोप लगाया कि बनर्जी ने वक्फ (संशोधन) विधेयक पर चर्चा के दौरान गुस्से में बोतल तोड़ी और उनकी ओर फेंकी, जिससे वे बाल-बाल बच गए। 

जगदंबिका पाल ने कहा कि हर सदस्य को अपनी बात रखने का समान अवसर दिया गया था, लेकिन बनर्जी ने अपनी असहमति और गुस्से का हिंसक रूप दिखाया। उनका कहना है कि वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण और उन पर नियंत्रण के लिए यह विधेयक गरीब मुसलमानों के विकास और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए लाया गया है, और इस पर चर्चा के दौरान बनर्जी द्वारा हिंसा करने का कोई औचित्य नहीं है। इस घटना के बाद जगदंबिका पाल ने स्पीकर ओम बिरला को घटना की जानकारी दी और कहा कि पहली बार किसी बैठक को स्थगित करना पड़ा। घटना के दौरान ओडिशा से एक पूर्व न्यायाधीश और एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी भी गवाह थे। उन्होंने कहा कि यह संसदीय लोकतंत्र में हिंसा के लिए जगह नहीं है और टीएमसी को अपने सांसद के इस व्यवहार पर विचार करना चाहिए।

पाल ने बताया कि कल्याण बनर्जी को अगली बैठक में शामिल होने से प्रतिबंधित कर दिया गया है और स्पीकर को भी इस बारे में सूचित कर दिया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि समिति की कार्यवाही को सार्वजनिक करने के आरोपों का कोई आधार नहीं है, क्योंकि उन्होंने केवल हिंसक घटना के बारे में बयान दिया है। इस बीच, विपक्षी नेताओं ने पाल पर समिति की कार्यवाही को सार्वजनिक करने का आरोप लगाया है, लेकिन पाल ने स्पष्ट किया कि उन्होंने समिति की किसी भी आंतरिक चर्चा का खुलासा नहीं किया है। उन्होंने सिर्फ उस हिंसा का जिक्र किया है जो बैठक के दौरान घटित हुई थी।

 

कल्याण बनर्जी के इस व्यवहार पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या वे वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ कोई ठोस तर्क नहीं दे पा रहे थे और इसीलिए उन्होंने हिंसा का सहारा लिया? एक चुने हुए सांसद द्वारा इस तरह का व्यवहार कई सवाल खड़े करता है कि क्या वे वक्फ को संशोधन से बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, जिसमें हिंसा का सहारा लेना भी शामिल हो? क्योंकि जिस तरह कल्याण बनर्जी ने बोतल तोड़कर हमला किया है, वो हत्या के प्रयास में आता है। 

वक्फ बिल पर भारत सरकार के 4 मुख्य संशोधन :-

इसमें चार मुख्य संशोधन हैं, पहले हम कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए कानून की बात करें तो, इसमें सेक्शन 40 के तहत पहला प्रावधान ये था कि, अगर वक्फ अपने विश्वास के आधार पर किसी भी संपत्ति पर अपना दावा ठोंकता है, तो वो संपत्ति वक्फ की हो जाएगी, उसे कोई सबूत पेश करने की जरूरत नहीं होगी और इस मामले में जिसे आपत्ति हो, वो वक्फ के ट्रिब्यूनल में जाकर ही गुहार लगाए। भाजपा सरकार का संशोधन है कि, पीड़ित, रेवेन्यू कोर्ट, सिविल कोर्ट, हाई कोर्ट आदि जा सकेगा। 

कांग्रेस सरकार के कानून में दूसरा प्रावधान ये था कि, वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला अंतिम होगा, यानी वो जो कहे, वही सत्य। भाजपा सरकार का संशोधन है कि, वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकेगी, इससे वक्फ की मनमानी ख़त्म होगी।  

कांग्रेस सरकार के कानून के मुताबिक, तीसरा प्रावधान ये था कि, कहीं कोई मस्जिद है, मजार है, मदरसा है, या जमीन को इस्लामी उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जा रहा है, तो जमीन अपने आप वक्फ की हो जाएगी, भले ही उसे किसी ने दान किया हो या नहीं। AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी एक बयान में कह ही चुके हैं कि, ''एक बार जब मुस्लिम किसी जगह को इबादतगाह के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर देता है तो वह जगह हमेशा के लिए मुस्लिमों की संपत्ति बन जाती है और अब मोदी सरकार उस प्रावधान को बदल रही है।'' ऐसे में अगर समुदाय, किसी पार्क, मैदान, रेलवे स्टेशन को इबादतगाह मानकर वहां नमाज़ पढ़ने लगेगा, तो क्या वो जमीन वक्फ की हो जाएगी ? इस मामले में भाजपा सरकार का संशोधन ये है कि, जब तक कोई जमीन वक्फ को दान ना की गई हो, तब तक वो संपत्ति वक्फ की नहीं हो सकती, भले ही वहां मस्जिद या मज़ार मौजूद हो। 

कांग्रेस सरकार के कानून के चौथे प्रावधान के मुताबिक,  वक्फ बोर्ड में महिला और अन्य धर्म के लोगों को सदस्य नहीं बनाया जाएगा। भाजपा सरकार का कहना है कि, बोर्ड में 2 महिला और अन्य धर्म के 2 लोगों को सदस्य बनाया जाएगा। 

वैसे, तो कांग्रेस सरकार के बनाए हुए वक्फ कानून में कुल 40 संशोधन किए जाने हैं, लेकिन उनमे ये चार मुख्य हैं, जिनका पूरे विपक्षी दल पुरजोर विरोध कर रहे हैं। आज वक्फ के पास देश की 9 लाख एकड़ से अधिक जमीन है, जो भारतीय सेना और भारतीय रेलवे के बाद तीसरे नंबर पर है। ये संपत्ति हर साल बढ़ते जा रही है, हर साल वक्फ सर्वे करता है और कई जमीनों पर अपना दावा ठोक देता है, पूरे के पूरे गाँव को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया जाता है। इसके अधिकतर शिकार, दलित-पिछड़े, आदिवासी ही होते हैं। लेकिन, दलितों-आदिवासियों और पिछड़ों के अधिकार का दावा करने वाले तमाम राजनेता इस मामले पर मौन हैं। वैसे एक सवाल ये भी है कि, जब आज़ादी के बाद सरदार पटेल के प्रयत्न से राजा-रजवाड़ों से उनके पुश्तैनी जमीनें लेकर सरकार के नाम कर ली गईं, तो फिर वक्फ के नाम से एक अलग 'राजवंश' बनाने का क्या औचित्य था ? देश की जमीन सरकार के अधीन ही रहना चाहिए थी। 

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