नई दिल्ली: आज सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से पूछा कि क्या संबंधित हितधारकों के साथ विचार-विमर्श के बाद पूरे भारत में छात्राओं और कामकाजी महिलाओं के लिए अनिवार्य मासिक धर्म अवकाश (Menstrual leave) के संबंध में कोई रूपरेखा तैयार की जा सकती है। देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने महिला छात्राओं और पेशेवरों के लिए मासिक धर्म अवकाश की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए यह बयान दिया और कहा कि इस मामले पर एक आदर्श नीति बनाना सरकार का काम है। CJI ने कहा कि मासिक धर्म अवकाश अनिवार्य करने से देश के कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ सकती है, वहीं दूसरी ओर यह नियोक्ताओं को महिलाओं की भर्ती करने से भी रोक सकता है। उन्होंने आगे कहा कि कभी-कभी महिलाओं की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम उनके लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि, यह वास्तव में सरकार का नीतिगत पहलू है और इस पर अदालतों को गौर नहीं करना चाहिए। यह सुनवाई अधिवक्ता शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी द्वारा दायर याचिका पर हुई, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों को देश भर में मासिक धर्म के दौरान छात्राओं और कामकाजी महिलाओं को मासिक अवकाश देने के निर्देश देने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत को बताया कि यद्यपि उन्होंने मई 2023 में केंद्र को एक अभ्यावेदन प्रस्तुत किया था, लेकिन अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि चूंकि ये मुद्दे "राज्य नीति के विविध उद्देश्यों" को जन्म देते हैं, इसलिए न्यायालय के लिए अपने पिछले आदेश के आलोक में "हस्तक्षेप" करने का कोई कारण नहीं है। तमिलनाडु में एक और विपक्षी नेता पर हमला, बसपा प्रदेश अध्यक्ष की हत्या के बाद अब PMK नेता को सरेआम घोंपे चाक़ू तैय्यब ने अपनी 15 दिन की बच्ची को बोरे में भरकर जिन्दा दफ़न कर दिया, कारण जानकर हो जाएंगे हैरान दिल्ली में रोके गए 5000 शिक्षकों के तबादले, जानिए क्यों ?