महिलाओं को समर्पित कवितायेँ

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष में हम आपके समक्ष कुछ कविताओं को रख रहे हैं, जो कि पूरी तरह महिलाओं को समर्पित है. इन कविताओं का सार यह है कि किस तरह नारी अपनी ख्वाइशों का बलिदान करके, अपनी हर इच्छा को मारकर अपने परिवार के साथ खड़ी रहती है और अपने जीवन साथी का साथ देती है. घर की रसोई से लेकर कंपनी के दफ्तर तक महिलाएं हर काम में आगे निकल रही हैं. तो हमें भी हर एक नारी का उसी तरह सम्मान करना चाहिए जिस तरह से हम अपने घर की महिलाओं का करते हैं.

1. फूल जैसी कोमल नारी, कांटो जितनी कठोर नारी, अपनो की हिफासत मे सबसे अव्वल नारी, दुखो को दूर कर, खूशियो को समेटे नारी, फिर लोग क्यो कहते तेरा अत्सित्व क्या नारी, जब अपनी छोटी-छोटी ख्वाइशों को जीने लगती  नारी, दुनिया दिखाती है उसे उसकी दायरे सारी, अपने धरम मे बन्धी नारी, अपने करम मे बन्धी नारी, अपनो की खूशी के लिये खुद के सपने करती कुर्बान नारी, जब भी सब्र का बाण टूटे तो सब पर भारी नारी, फूल जैसी कोमल नारी, कांटो जितनी कठोर नारी.

 

2. ये किसने कहा कि, नारी कमज़ोर है, आज भी उसके हाथ में, अपने घर को चलाने की डोर है, वो तो दफ्तर भी जाए, घर भी संभाले, ऐसे हाल में भी कर दे, पति अपने बच्चो को भी उसके हवाले, एक बार उस नारी की ज़िंदगी जीके तो देख, अपने मर्द होने के घमंड, में तू बस यूं बड़ी-बड़ी ना फेक.

अब हौसला बन तू उस नारी का, जिसने ज़ुल्म सहके भी तेरा साथ दिया, तेरी ज़िम्मेदारियों का बोझ भी, ख़ुशी से तेरे संग बाट लिया, चाहती तो वो भी कह देती, मुझसे नहीं होता, उसके ऐसे कहने पर, फिर तू ही अपने बोझ के तले रोता.

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