विश्व ओजोन दिवस : धरती से 30 किलोमीटर ऊपर क्या है ख़ास, जानिए इसका महत्व ?

जब ओजोन की परत बिगड़ती है तो इसके साथ ही जलवायु में तेजी से बदलाव आते हैं. ओजोन के प्रति लोगों को जागरूक करना काफी महत्वपूर्ण है. हमारी धरती से करीब 30 किलोमीटर ऊपर वायुमंडल में गैस की एक पतली सी परत देखने को मिलती है, इसे ओजोन परत के नाम से जाना जाता है. इस बात से हर किसी को परिचित होना बेहद जरूरी है कि ओजोन की पतली परत सूर्य से आने वाली अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन को सोखने का काम करती है और यदि रेडिएशन धरती पर प्रत्यक्ष रूप से प्रवेश करने लग जाए तो मानव समाज के साथ ही पेड़-पौधों और पशुओं को भी इससे बहुत बड़ी हानि हो सकती है. 

ओजोन लेयर सूर्य की किरणों से हमारे लिए लड़ती है, हालांकि अब ओजोन का अस्तित्व खुद खतरे में पड़ गया है. हमारे लिए लड़ने वाली ओजोन अब कमजोर पड़ती जा रही है. इसमें पहले से ही कई छेद मौजूद है, इन्हें ओजोन होल्स के नाम से जाना जाता है. साल 1985 में सबसे पहले इन छेद के बारे में पता चला था. ओजोन की कमजोरी का सबसे बड़ा कारण कई तरह के केमिकल है. ये ओजोन को पतला कर रहे हैं और ओजोन पर संकट गहराता ही जा रहा है.

आपको यह जानकर गहरा धक्का लग सकता है कि ओजोन लेयर को बिगाड़ने के प्रबल जिम्मेदार भी हम लोग ही हैं. धरती पर मौजूद फैक्ट्री और तरह-तरह के उद्योग से निकलने वाले खतरनाक रसायन हवा में घुलने के साथ ही जहरीले हो जाते है, जिससे वायुमंडल तो प्रदूषित होता ही है, साथ ही ओजोन परत को भी ये हानि पहुंचाते हैं और इससे जब ओजोन के बिगड़ने का ख़तरा बढ़ता है तो इससे जलवायु परिवर्तन में इजाफा होता है. इससे यह होता है कि धरती के तापमान में भी निरंतर इजाफ़ा हो रहा है. हालांकि अब ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले केमिकल्स पर रोक लगाई जा चुकी है. 

 

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