आज वर्ल्ड 'सीनियर सिटीजन्स डे' है, यानि विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस. जैसा कि इस दिवस के नाम से ही पता चलता है, यह दिन को वरिष्ठ नागरिक या बुजुर्गों को समर्पित है. किन्तु अगर वर्तमान की बात करें तो बुजुर्गो की स्थिति वैसी ही हो गई है, जैसे एक बच्चा के जवानी में प्रवेश करने के बाद उसके खिलौनों की होती है. विशेषकर भारत में ये स्थिति बहुत विकट है, वजह साफ़ है नैतिक मूल्यों का पतन. भारत के ही किसी महान विचारक ने एक बार कहा था कि "ये मेरे देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ वृद्धाश्रम हैं, जिस दिन यहाँ से वृद्धाश्रम ख़त्म हो जाएंगे उस दिन भारत की नैतिक आत्मा फिर से जीवंत हो उठेगी." बात सही भी है, आखिर श्रवण कुमार जैसे पुत्र पैदा करने वाली धरती पर ये कैसे पुत्र पैदा होने लगे हैं, जो सांस्कृतिक मूल्यों और सामाजिक कर्तव्यों को तिलांजलि देकर अपने माता-पिता को तिल-तिल मरने के लिए वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं. इसके लिए हमारी शिक्षा प्रणाली भी कुछ हद तक जिम्मेदार है, जो नवयुवकों को पैसा कमाना तो सिखाती है, लेकिन उन्हें अपने कर्त्तव्यपथ से विमुख कर देती है. हमारी किताबों में भी मर्यादा और नैतिकता सिखाने वाले किस्से-कहानियां सिर्फ स्कूल की कुछ कक्षाओं तक ही पढाई जाती है, उसके बाद की सारी शिक्षा का केंद्र आर्थिक उन्नति ही रहता है. हाँ ये सच है कि अर्थ यानि धन मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है, किन्तु अगर उसी धन से अगर आप अपने पिता को 2 वक़्त का भोजन नहीं दे सकते, अपनी माँ की दवाई नहीं ला सकते, तो उस धन का मूल्य नगण्य है. वर्तमान में भारत में बुजुर्गों की जो स्थिति है, उसे देखते हुए अब प्रशासन को इस मामले में विचार करने की जरुरत है. इस मसले पर असम सरकार ने एक मिसाल क़ायम की है, असम सरकार ने कुछ समय पहले एक विधेयक पारित किया था, जिसके तहत माता-पिता की देखभाल नहीं करने वाले सरकारी कर्मचारियों का वेतन काटने का प्रावधान था. केंद्र को भी इससे सीख लेने की जरुरत है. हालांकि यह भी समस्या का पक्का समाधान नहीं है, यह भी जड़ तक नहीं जाता पर फिर भी वर्तमान में बुजुर्गों की अवनति रोकने में सहायक जरूर हो सकता है. खबरें और भी:- World Mosquito Day : इसलिए होता है मच्छरों का भी दिन