अमुमन प्रमुख देवी मंदिरों के भीतर या फिर मंदिरों के बाहर भैरव के मंदिर अथवा ओटले जरूर रहते है। वैष्णो देवी जो लोग गये है, उन्हें वहां के बारे में बहुत अधिक जानकारी हो सकती है क्योंकि वहां जब तक भैरव के दर्शन न कर लिए जाए, तब तक माता वैष्णोदेवी के दर्शन का पुण्य फल पूरा नहीं मिलता है। इसलिए शास्त्रोक्त मान्यता यह भी है कि पहले भैरव के दर्शन पूजन करें और फिर देवी की पूजा आराधना संपन्न की जाए तो पुण्य फल की प्राप्ति होने के साथ ही मनोकामना भी पूरी होती है। किसी भी प्रमुख देवी मंदिरों के बारे में जानकारी प्राप्त की जाए, लगभग सभी देवी मंदिरों में भैरव देव का महत्वपूर्ण स्थान रहता है। भैरव की पूजन पहले की जाना चाहिए और इसके बाद देवी की पूजा करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है। कहा भी जाता है कि भैरव को पहले मनाया जाए, इसलिए पहले भैरव की पूजा करें। एक जड़ ही पास रखें तो हो मंगल की शांति महाकाल दर्शन पश्चात बदले मंदिरों के ध्वज