दिवाली- धनतेरस पर यहाँ होती है चांदी की मछली की पूजा, जानें इसका पौराणिक महत्व

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में चांदी की मछली जमकर धूम मचा रही है. यहां पर दिवाली और धनतेरस के खास पर्व पर चांदी की मछली की पूजा की जाती है. बड़ी संख्या में लोग चांदी की मछली खरीदते हैं, बाजार में 5 ग्राम से लेकर 5 किलो तक वजन की मछली बिक रही है. भारतीय परम्परा के मुताबिक, खास त्योहारों पर चांदी की मछली को रखना और उसकी पूजा करना काफी शुभ माना जाता है. प्राचीन काल में व्यापारी सुबह के वक़्त सबसे पहले चांदी की मछली देखना पसंद करते थे. मछली के बगैर बुंदेलखंड में दिवाली की पूजा अधूरी मानी जाती है. इसलिए लोग काफी खरीदारी कर रहे हैं.

सभी धर्मों में चांदी को सबसे शुभ और शीतल धातु माना गया है. जिस प्रकार मंगल प्रतीकों में गाय, मोर, हाथी, शेर और कछुआ आता है. इसी प्रकार इन प्रतीकों में मछली भी शामिल है. चांदी की मछली को पूजा की थाली से लेकर शादी में बेटी और दामाद को भी उपहार स्वरुप दिया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इससे बेटी दामाद पर किसी तरह की कोई मुसीबत नहीं आती है. हमीरपुर जिले के मौदहा कस्बे में एक परिवार द्वारा कई पीडियों से चांदी की मछली बनाई जा रही है. जब भारत में ब्रिटिश हुकूमत थी, तब इस परिवार के बुजुर्गो ने विक्टोरिया राजकुमारी को चांदी की मछली उपहार में दी थी, जिसके एवज में राजकुमारी ने मछली की खूबसूरती को देखकर उन्हें एक मैडल भेंट में किया था. इस कला की वजह से इस परिवार का नाम आईने अकबरी पुस्तक में भी दर्ज है.

सनातन धर्म में धनतेरस और दीपावली में मछली और चांदी की मछली की काफी अहमियत है. बड़ी देवी मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित रमेश शास्त्रीय का कहना है कि मछली समृद्धि का प्रतीक है और दस अवतारों में मत्स्य अवतार भी शामिल है. सुबह के वक़्त मछली को देखने से न केवल समृद्धि आती है, बल्कि तमाम रोगो से भी मुक्ति मिलती है. इसलिए बुंदेलखंड इलाके के लोग धनतेरस और दीपावली में चांदी की मछली खरीदने को अधिक महत्व देते हैं. 

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