आप नहीं जानते होंगे हज यात्रा से जुड़ी ये जरुरी बातें

14 जून की शाम चांद नजर आने के पश्चात् इस्लाम धर्म की पवित्र हज यात्रा प्रारंभ हो जाएगी. हज यात्रा इस्लामिक कैलेंडर के अंतिम महीने धू अल-हिज्जा में की जाती है. इस पाक महीने में इस्लाम धर्म के अनुयायी सऊदी अरब के मक्का शहर में हज यात्रा के लिए जाते हैं. इस बार हज यात्रा 14 जून से लेकर 19 जून तक की जाएगी. इस्लाम धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, प्रत्येक मुस्लिम को अपने जीवन में एक बार हज अवश्य जाना चाहिए. आइए आपको हज यात्रा का महत्व और इसके कुछ विशेष नियम बताते हैं.

हज यात्रा को को इस्लाम के 5 मुख्य स्तंभों में गिना जाता है. यह ऐसी परंपरा है जो शारीरिक तथा आर्थिक रूप से सक्षम मुस्लिमों को अपने जीवन में कम से कम अवश्य करनी चाहिए. हज यात्रा स्वयं को अल्लाह से जोड़ने या उसके नजदीक आने का मार्ग समझा जाता है.

हज यात्रा के नियम इस्लाम में हज करने वाले को हाजी कहा जाता है. धुल-हिज्जा के सातवें दिन हाजी मक्का शहर पहुंचते हैं. हज यात्रा के प्रथम चरण में हाजी इहराम बांधते हैं. यह एक सिला हुआ कपड़ा होता है, जिसे शरीर पर लपेटते हैं. इस के चलते सफेद कपड़ा पहनना आवश्यक है. हालांकि, महिलाएं अपनी पसंद का कोई भी सादा कपड़ा पहन सकती है. मगर हिजाब के नियमों का पालन करना आवश्यक है.

हज के प्रथम दिन हाजी तवाफ (परिक्रमा) करते हैं. तवाफ करते हुए हाजी सात बार काबा के चक्कर काटते हैं. फिर सफा एवं मरवा नाम की दो पहाड़ियों के बीच सात बार चक्कर लगाए जाते हैं. ऐसा कहा जाता हैं कि पैगंबर इब्राहिम की पत्नी हाजिरा अपने बेटे इस्माइल के लिए पानी की तलाश में सात बार सफा एवं मरवा की पहाड़ियों के बीच चली थीं. तत्पश्चात, हाजी मक्का से 8 किलोमीटर दूर मीना शहर इकट्ठा होते हैं. यहां पर वे रात में नमाज अदा करते हैं. हज के दूसरे दिन हाजी माउंट अराफात पहुंचते हैं, जहां वो अल्लाह से अपने गुनाह माफ करने की दुआ करते हैं. फिर वे मुजदलिफा के मैदानी इलाकों में इकट्ठा होते हैं. वहां पर खुले में दुआ करते हुए पूरी एक रात ठहरते हैं.

शैतान को मारते हैं पत्थर हज पर जाने वाले लोग यात्रा के तीसरे दिन जमारात पर पत्थर फेंकने के लिए दोबारा मीना लौटते हैं. जमारात 3 पत्थरों का एक स्ट्रक्चर है, जिसे शैतान एवं जानवरों की बलि का प्रतीक समझा जाता है. विश्वभर के अन्य मुस्लिमों के लिए यह ईद का पहला दिन होता है. तत्पश्चात, हाजी अपना मुंडन कराते हैं या बाल काटते हैं. इसके पश्चात् के दिनों में हाजी मक्का में दोबारा तवाफ और सई करते हैं एवं फिर जमारत लौटते हैं. मक्का से रवाना होने से पहले सभी हाजियों को हज यात्रा पूरी करने के लिए अंतिम बार तवाफ करनी पड़ती है. हज यात्रा के आखिरी दिन ईद-अल-अजहा मनाया जाता है. इस दिन जानवर की बलि देने एवं उसके मांस का एक भाग निर्धन लोगों में बांटने की परंपरा होती है. यह परंपरा पैगंबर इब्राहिम की याद में निभाई जाती है. 

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