नई दिल्ली बैंक, बीमा कंपनियों आदि की खराब सेवा को लेकर हमेशा समस्या रहती है। लोग सिस्टम में नीचे से ऊपर तक शिकायत करते रहते हैं, परन्तु सुनवाई नहीं होती। क्या आपको यह जानकारी है कि सरकारी संस्थानों में अगर एक निश्चित समय में आपकी समस्या का समाधान नहीं होता तो आप हर्जाना पाने के हकदार हैं। कई बार लोगों को पता नहीं होता है कि उन्हें कितना हर्जाना मिल सकता है। खराब सेवाओं पर कैसे वसूल सकते हैं आप हर्जाना, बता रही हैं प्रीति कुलकर्णी। 1. बैंक ट्रांजैक्शन A. एटीम ट्रांजैक्शन में पैसे कट जाने पर यदि एटीएम ट्रांजैक्शन के दौरान अकाउंट से पैसे कट जाएं, परन्तु कैश न मिले तो बैंक के पास रिवर्स करने के लिए 6 दिन (ट्रांजैक्शन वाले दिन के बाद पांच दिन और) का समय होता है। जुर्माना: अकाउंट में पैसा वापस न करने पर बैंक पर सातवें दिन से 100 रुपये रोजाना पेनल्टी शुरू हो जाती है। B. पीओएस मशीन से पैसे कट जाने पर पीओएस यानी किसी मर्चेंट के पास लगी मशीन से ट्रांजैक्शन के दौरान आपके खाते से पैसे निकल जाएं यदि चार्ज स्लिप जनरेट न हो तो इस मामले में ट्रांजैक्शन रिवर्सल के लिए 6 दिन (ट्रांजैक्शन वाले दिन के बाद पांच दिन और) का समय होता है। जुर्माना: 6 दिन में पैसे अकाउंट में नहीं आते हैं तो 100 रुपये रोजाना की पेनल्टी शुरू होती है। C. यूपीआई के जरिए पैसे कटने पर प्रीपेड वॉलेट प्रॉपराइटरी पेमंट सिस्टम के इस्तेमाल के दौरान यूपीआई पर IMPS के जरिए फंड ट्रांसफर फेल हो जाए लेकिन आपके खाते से पैसे कट जाएं तो इस रकम को 2 दिन (ट्रांजैक्शन वाला और उसके बाद वाला दिन) में वापस अकांउट में आ जाना चाहिए। जुर्माना: ऐसा न होने पर आप तीसरे दिन से रोजाना 100 रुपये पेनल्टी पाने के हकदार होंगे। D. ई-कॉमर्स साइट पर पैसे कटने पर किसी भी ई-कॉमर्स कंपनी की वेबसाइट पर ट्रांजैक्शन करते समय कार्ड से पैसे कट जाएं, लेकिन ट्रांजैक्शन पूरा न हो तो उसमें भी रिवर्सल के लिए 6 दिन (ट्रांजैक्शन वाले दिन के बाद पांच दिन और) का समय होता है। जुर्माना: 6 दिन में पैसे अकाउंट में न आने पर 100 रुपये रोजाना की पेनल्टी पाने के आप हकदार होंगे। 2. लाइफ इंश्योरेंस A. डेथ क्लेम पर बीमा कंपनियों को डेथ क्लेम केस से जुड़ी किसी भी तरह की पूछताछ क्लेम फाइल होने के 15 दिनों के भीतर ही करनी होगी। क्लेम अप्रूव हुआ है या नहीं, इसके बारे में भी कंपनी को उचित दस्तावेज और स्पष्टीकरण मिलने के 30 दिनों के भीतर जानकारी देनी होती है। जुर्माना: अगर इंश्योरेंस कंपनी डेथ क्लेम समय पर सेटल नहीं कर पाती है तो उसे अंतिम जरूरी डॉक्युमेंट मिलने के दिन से क्लेम की देय रकम पर तत्कालीन रेपो रेट (अभी 5.4 फीसदी) से 2 फीसदी ज्यादा का ब्याज पेनल्टी के रूप में देना होता है। जांच जरूरी होने पर: 90 दिनों में जांच पूरी करनी होगी। जांच पूरी होने के 30 दिनों के भीतर क्लेम को मानना होगा या फिर खारिज करना होगा। जुर्माना: डेडलाइन के भीतर मामला नहीं निबटाने पर अंतिम डॉक्युमेंट मिलने के दिन से देय रकम पर बैंक ब्याज दर से 2 फीसदी ज्यादा का ब्याज देना होता है। B. मच्योरिटी, सर्वाइवल बेनिफिट और एन्युटी क्लेम्स के निपटारे में देरी पर इन मामलों में इंश्योरेंस कंपनी को बीमाधारक को ड्यू डेट से पहले सूचना देनी होती है। साथ ही, पोस्ट डेटेट चेक भेजना पड़ता है या ड्यू डेट पर रजिस्टर्ड बैंक अकाउंट में रकम जमा करानी होती है। जुर्माना: पेनल्टी के तौर पर बीमा कंपनी को अंतिम डॉक्युमेंट मिलने के दिन से देय रकम पर बैंक ब्याज दर से 2 फीसदी ज्यादा का ब्याज देना पड़ता है। रिफंड न मिलने पर: फ्री लुक कैंसिलेशन, सरेंडर, विद्ड्रॉल, प्रपोजल डिपॉजिट वापसी की रिक्वेस्ट के मामलों में 15 दिन के भीतर रिफंड मिल जाना चाहिए। जुर्माना: रिफंड नहीं मिलने पर रिक्वेस्ट या अंतिम डॉक्युमेंट मिलने के दिन (जो भी बाद में आए) से देय रकम पर बैंक ब्याज दर से 2 फीसदी ज्यादा का ब्याज देना पड़ता है। 3. जनरल इंश्योरेंस क्लेम का निपटारा समय पर न होने पर बीमा कंपनी के पास क्लेम को स्वीकार करने या उसे खारिज करने के लिए फाइनल सर्वे रिपोर्ट और उससे संबंधित सूचना मिलने के बाद 30 दिनों का समय होता है। जुर्माना: अगर इंश्योरेंस कंपनी समय पर क्लेम सेटल नहीं कर पाए तो उसे पेनल्टी के तौर पर अंतिम डॉक्युमेंट मिलने के दिन से पेमंट तक की अवधि के लिए बैंक ब्याज दर से 2 फीसदी ज्यादा का ब्याज देना पड़ता है। 4. हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम का निपटारा समय पर न होने पर सामान्य केस में कंपनी को क्लेम 30 दिनों के भीतर सेटल करना होता है। केस में जांच जरूरी होने पर जांच अंतिम डॉक्युमेंट हासिल होने के 30 दिनों के भीतर पूरी करनी होती है जबकि क्लेम 45 दिनों में सेटल करना होता है। जुर्माना: क्लेम सेटलमेंट में देरी होने पर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी को अंतिम डॉक्युमेंट मिलने के दिन से पेमंट तक बैंक ब्याज दर से 2 फीसदी ज्यादा का ब्याज बतौर पेनल्टी देना होता है। 5. म्यूचुअल फंड रिडम्प्शन के मामले में रिक्वेस्ट मिलने के 10 दिन में और डिविडेंड डिक्लेरशन के 30 दिनों के अंदर पेमंट हो जाना चाहिए। जुर्माना: देरी वाली अवधि के लिए 15 फीसदी की दर से देय रकम पर ब्याज। 6. टैक्सेशन A. अडवांस टैक्स या TDS के रूप में ज्यादा रकम देने पर अडवांस टैक्स या TDS के तौर पर अदा की गई अतिरिक्त रकम का रिफंड भी तय समय पर मिलना चाहिए। अगर रिटर्न 31 जुलाई से पहले दाखिल किया गया है तो ब्याज असेसमेंट ईयर में 1 अप्रैल से रिफंड पेमंट की तारीख तक के लिए मिलेगा। रिटर्न बाद में फाइल होने पर यह पीरियड रिटर्न फाइल करने के तारीख से शुरू होगा। जुर्माना अगर रिफंड समय पर नहीं मिलता है तो आपको रिफंड पर हर महीने 0.5 फीसदी का ब्याज मिलेगा। अगर रिफंड की रकम टैक्स देनदारी के 10 फीसदी से कम है तो उस पर कोई ब्याज नहीं मिलेगा। B. सेल्फ असेसमेंट टैक्स का ज्यादा पेमंट होने पर इस मामले में रिफंड के लिए इंटरेस्ट पेमंट वाला पीरियड उस दिन से शुरू होगा, जिस दिन टैक्स पेमंट किया गया हो या रिटर्न दाखिल किया गया हो। जुर्माना डेडलाइन मिस होने के बाद करदाता को बकाया रिफंड पर हर महीने 0.5 फीसदी की दर से ब्याज मिलेगा। अगर रिफंड टैक्स लायबिलिटी के 10 फीसदी से कम है तो कोई ब्याज नहीं मिलेगा। 9 महीने की कटौती के बाद नवंबर में बढ़ा मारुती का उत्पादन, शेयर बाजार को भेजे गए आंकड़े PAN card को Aadhaar से लिंक कराने का आखिरी मौका, नजरअंदाज करने का यह होगा नतीजा वित्त मंत्री ने Income Tax में कटौती का संकेत, कहा- कर प्रणाली को बनाया जाएगा और सरल