आक्रोश, अर्धसत्य और जाने भी दो यारों जैसी सार्थक फिल्मों में अपने साहसी, दमदार और असाधारण अभिनय से अपनी पहचान बनाने वाले ओमपुरी का जाना सिनेमाई आकाश से धूमकेतु के जाना जैसा है। उनसे मेरी पहली और आखिरी मुलाकात मुंबई में हुई। यह मुलाकात उनकी फिल्म ‘डर्टी पाॅलिटिक्स’ की प्रेस कांन्फ्रेंस में हुई थी।
इस दौरान उनसे सवाल-जवाब हुए, बातचीत भी हुई, नहीं हुआ तो सिर्फ फोटोसेशन। यह एक इब्तिला थी जिस पर गौर नहीं करना चाहिए। खैर, वे ऐसे कलाकार जिनसे आप पहली मुलाकात में प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। वह पहली मुलाकात में गांव के बाबूजी की तरह पेश आते है। जो ऊपरी तौर पर थोड़े सख्त है लेकिन अंदरूनी रूप से एक उपासना है, एक कौतुक है और एक अनुष्ठान है। साधारण शक्ल सूरत का इससे बड़ा कलाकार मैंने अपने पूरे जीवन में नहीं देखा। वैसे भी ओमपुरी साहब ने महानता के ठप्पे को अपनी इंसानी शख्सियत से दूर ही रखा। ये उनकी महानता का एक बेमिसाल उदाहरण है।
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मैं उन दिनों मेरे मित्र और अभिनेता विशाल पालीवाल के साथ मुंबई रहता था। एक दिन मुझे और मेरे मित्र वीनु विनय को मालूमात हुआ कि विशाल ने ओमपुरी साहब के साथ एक शूट किया। ओमपुरी साहब यानि हमारे फेवरेट, बिल्कुल हम जैसे, अंग्रेजी सीखने के लिए खूब संघर्ष करने वाले। इस शूट में महान ओमपुरी साहब विशाल और उनकी को-स्टार के सारथी की भूमिका में थे। साइकल रिक्शा उन्होंने खुद ने चलाया था। उस दिन हमने विशाल को खूब कोसा। अगर उनके साथ शूट था तो हमें इत्तिला क्यों नहीं की। खैर, उस दिन विशाल बेहद खुश था। एक महान कलाकार के साथ उसकी काम करने की उपलब्धि कम नहीं थी। उस दिन विशाल से हम लोगों ने मुंबईया वड़ा पाव और चाय की पार्टी ली थी। हमने उस दिन को एक महान दिन की तरह सेलिब्रेट किया था और असल में वह महान दिन था।
यथार्थ में होनी को कौन टाल सकता है। आखिरकार, ओमपुरी साहब के जाने से एक महान शख्सियत हमें छोड़कर चली गई। वे सिनेमा के आंगन के सबसे नायाब फूल थे। उनके जैसे साधारण शक्ल सूरत के कलाकार भारतीय सिनेमा को हमेशा उंचाई पर ही ले गए। मशहूर कलाकार शबाना आजमी ने एक बार ओमपुरी साहब और उनके एनएसडी के सहपाठी नसरूद्दीन शाह की एक पुरानी फोटो पर मजाकिया लहजे में कहा था,‘‘आप लोगों की हिम्मत कैसे हुई की आपने ये सोच लिया कि आप हिंदी फिल्मों में अभिनेता बन जाएंगे।’’
वे एक साधारण शक्ल सूरत के असाधारण अभिनेता थे। उनसे मिलने का जो सौभाग्य मुझे मिला, वे पल मेरे लिए अल्फाज है बाकी सबकुछ महज एक लालसा है। ओमपुरी साहब का विवादों से भी गहरा नाता रहा है, भारतीय जवानों पर की गई उनकी तीखी टिप्पणी, आमिर खान के असहिष्णुता के बयान पर दिए अपने बयान सहित कई ऐसे मामले थे जिनकी वजह से वे विवाद में रहे। जिस वजह से उन्होंने खुद को थोड़ा असहज भी महसूस किया। अंततः, वो बातें महज बातें थी।
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वह अबद के लिए अब उस दुनिया में चले गए, जहां सभी को एक न एक दिन जाना है। ओमपुरी साहब अब हम उसी दुनिया में मिलेंगे जहां अमलन हमें मिलना है।