नोटबंदी : सोचा था वैसे नहीं पर दूसरी तरह से अधिक सफल हो गई

नोटबंदी : सोचा था वैसे नहीं पर दूसरी तरह से अधिक सफल हो गई
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जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी अति-विश्वस्त टीम ने नोटबंदी (जिसका सही नाम विमुद्रीकरण है या जिसे नोट-बदली कहना भी ठीक है) को लागू किया तो उसके  कई उद्देश्य थे, जैसे आतंकवादियों व नक्सलवादियों को आर्थिक झटका; हवाला, ड्रग्स, तस्करी जैसे अवैध कारोबारों पर नकेल; भ्रष्टाचार, कालाबाजारी जैसे अनैतिक कामों को हतोत्साहित करना और काले-धन को आर्थिक चलन से बाहर करना ('नष्ट करना' सही शब्द नहीं है )। इनमें से शुरू में लिखे तीन-चार उद्देश्यों पर तो सरकार विश्वास के साथ पूरी सफलता का दावा कर रही है और नोट-बंदी का विरोध करने वाले भी उन पर कोई तथ्यात्मक प्रतिवाद नहीं कर पा रहे हैं। जबकि अंत में उल्लेखित मुद्दा ही सर्वाधिक विवादित हो रहा है क्योंकि इसके बारे में ही विरोधियों के पास भी बहुत कुछ कहने को है।  

अब तो उनके पास बहुत बड़ा आधार आ गया  है कि नोटबंदी के दो माह बाद अब RBI से यह जानकारी मिली है कि 1000 व 500 के पुराने नोटों के रूप में बैंकों में करीब 15 लाख रुपये की धनराशि जमा हो गई है। जबकि मोदी सरकार का अनुमान था कि नोटबंदी से पहले देश में 15.44 लाख करोड़ रुपए मूल्य के 1000 व 500 के नोट प्रचलित थे और उनमें से 4 से 5 लाख करोड़ रुपए के नोट सिस्टम में वापिस नहीं आएँगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अधिकांश अवैध किये गए नॉट बैंको में जमा हो गए।  इस आधार पर विरोधी कह रहे है कि पूरा काला धन तो बैंको में वापिस आ गया और सफ़ेद हो गया, इसलिए 'नोटबंदी तो फ़ैल हो गयी'। यहाँ सभी विरोधी प्रथम तीन बड़े उद्देश्यों को दरकिनार कर रहे हैं, जो कि कालेधन को बेकार करने के उद्देश्य से कम नहीं बल्कि अधिक ही महत्वपूर्ण हैं। कालेधन के सन्दर्भ में भी मामला ऐसा सीधा नहीं हैं, जैसा वे बता रहे हैं।  

हालाँकि रिज़र्व बैंक ने कहा है कि उसने बैंको को अपने-अपने पास जमा हुए पुराने नोटों की गिनती को फिर से चैक करने के लिए कहा है और इस पुनर्गणना के बाद RBI अधिकृत आंकड़े जारी करेगा।  फिर भी यदि हम अभी प्राप्त हुए आंकड़ों को ही सही मान कर ही विचार करें तो हमें मालुम पड़ेगा कि जो नगद धन बैंको में जमा हुआ है, वह सारा सफ़ेद साबित नहीं हो पायेगा और उसका बहुत बड़ा हिस्सा सरकार को मिलेगा तथा एक हिस्सा बैंकों के पास भी रह जाएगा। आइये पहले जाने कि मोदी सरकार को किस-किस तरह से अधिक पैसा मिलने वाला है:

  1. प्रधानमन्त्री गरीब कल्याण योजना के तहत काले धन के कुबेरों को जो अंतिम बार कड़ी कार्यवाही से बचने का मौका दिया गया है, उसमें इस बार पहले दिए मौके की तुलना में काफी अधिक राशि घोषित की जायेगी, क्योंकि नोट बंदी के बाद अब काले धन के कुबेर डरे हुए हैं। इसलिए इस बार 31 मार्च 2017 तक इन्कम डिक्लेरेशन स्कीम में ज्यादा अघोषित राशि उजागर होगी। इसका 50 फीसदी हिस्सा मोदी सरकार को तत्काल मिलेगा और 25 फीसदी हिस्सा चार साल के लिए बिना ब्याज के गरीब कल्याण हेतु उपयोग हो सकेगा।  
  2. जो लोग उक्त 'अंतिम ऑफर स्कीम' के तहत भी अपना काल धन घोषित नहीं करेंगे और पकड़े जायेंगे, उनकी पूरी अघोषित संपत्ति का 85 फीसदी हिस्सा सरकार जब्त कर लेगी। यानि देर से जागने वालों या कालेधन से अधिक मोह रखने वालों को अधिक सजा मिलेगी।   
  3. बैंको में जो जमा राशि बढ़ी है, उसका 20-25 फीसदी हिस्सा उन्हें एस.एल.आर. के तहत सरकारी बांड्स में निवेश करने के लिए कहा जाएगा।  
  4. कई काले धन वालों ने अपना धन अन्य निम्न व मध्यम वर्ग के लोगों के खातों में जमा किया है। उन 50 दिनों की अवधि में जिन खातों में नोटबंदी के पहले जो हर माह औसतन जमा होता था उससे यदि असामान्य रूप से अधिक जमा हुआ है, तो उन खातेदारों से पूछताछ करके अधिक धनराशि के असल मालिक को पकड़ा जाएगा और उनका भी अधिकांश (या सारा) काला धन जब्त हो जाएगा तथा इस काम में सहयोग करने वाले खातेदार को इनाम भी मिल सकता है।         
  5. नोट बंदी के बाद कालेधन वालों में जो अफरा-तफरी मची व उन्होंने काले को सफ़ेद करने के गलत तरीके अपनाये तो उसकी खबर सरकार व जांच एजेंसियों को मिली व अब भी मिल रही है। उनमें से कई पर कार्यवाही हुई और बहुत सी ब्लेक मनी जब्त हुई, आगे भी कई महीनों तक जब्त होती रहेगी।  
  6. बैंकों में जमा हुए 15 लाख रुपयों में बहुत से नकली नोट भी जमा हो गए हैं, चूँकि उस दौरान जल्द-बाजी होने के कारण बैंक वाले सब नोट चैक नहीं कर सकते थे।  पुनः चैक करने में या जानकारी मिलने पर अंशतः ऐसे नकली नोट भी पकड़े जायेंगे, उन्हें भी सिस्टम से बाहर किया जायेगा तथा कुछ दोषी भी पकड़े जा सकते हैं। 

अन्य अनअपेक्षित व महत्वपूर्ण लाभ 

  • उपरोक्त बिंदु से ही, यह एक और अनअपेक्षित लाभ भी निकलता है कि जो कुछ हुआ उसमें गलत करने वाले अधिक लोग उजागर हो रहे हैं, अब और इससे बहुत अधिकं सामने आएंगे।  यदि काले धन के कुबेरों ने सरकार की अपेक्षा के अनुसार अपना कालाधन कबूल न कर पाने की मज़बूरी के कारण बैंकों में जमा न करवाया होता या या कुछ भ्रष्ट बैंक वालों से सांठ-गाँठ करके न बदलाया होता तो उनका काला धन सिस्टम से बाहर तो हो जाता पर पकड़ाता नहीं और वे भी नहीं पकड़ाते। हाँ कालाधन कुछ अधिक मात्रा में सिस्टम से बाहर होता। किन्तु, जो हुआ उसका दूसरी तरह का फायदा है । अब बहुत से सूत्र जांच करने व कानूनी कार्यवाही करने वाली एजेंसियों के पास आ गए हैं और इससे बहुत से आर्थिक अपराधी बेनकाब होंगे, ज़बकि यदि उन्होंने काले को सफ़ेद करने के गलत तरीके नहीं अपनाये होते तो उनके गुनाह ढके ही रह जाते।      
  • नकदी काले धन पर कार्यवाही में सफलता के बाद सरकार को अब बेनामी संपत्ति एवं सोने-जेवरात में लगाए गए काले धन पर भी कार्यवाही या सर्जिकल स्ट्राइक करने का प्रोत्साहन व जन-समर्थन मिलने का भरोसा मिला है। सरकार इन पर सही प्लानिंग व तैयारी से कार्यवाही करेगी तो इससे भी अधिक कालाधन पकड़ाने की संभावना है, क्योंकि लोगों ने सबसे ज्यादा अघोषित धन रियल इस्टेट या प्रॉपर्टियों में और उसके बाद सोने-जेवरात में निवेश किया है। इन  कार्यवाहियों से सरकारी खजाने में कितने लाख करोड़ आयेंगे, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। 
  • नोट बंदी के 50 दिनों में बैंको में जो राशि जमा हुई है उसमे व्यापार- उद्दोग जगत का कालाधन और जन साधारण की बचत यानि वह ‘ब्लाक मनी’ (जो लोगों ने खासकर भारतीय गृहिणियों ने वक्त-जरुरत के लिए बचाई थी) वे दोनों शामिल हैं। अब ब्लैक मनी के साथ-साथ यह ब्लॉक मनी जमा होकर सिस्टम में आ गई है।  व्यापार- उद्दोग जगत के लोग इसे निकाल कर विभिन्न कारोबारों में ही निवेश करंगे और 'ब्लाक मनी' का तो एक बड़ा भाग बैंको में ही जमा रह जाएगा। असल में ब्लॉक मनी जमा करवाने वाले अधिकांश लोगों को बैंकिंग व्यवस्था का पूरा लाभ लेने की आदत ही नहीं थी। इसलिए अवश्यम्भावी लगता है कि वे अब अपनी इस जमाराशि में से जरूरत के अनुसार ही बैंक से निकालेंगे और भविष्य में बचत को बैंकों में ही जमा करेंगे। इस तरह आम लोगों में बैंकिंग की आदत पड़ेगी। बैंको में अब अधिक जमाराशि रहने लगेगी और इससे उनकी उत्पादक व उपयोगी कामों के लिए कर्ज देने की क्षमता बढ़ जाएगी। इससे वे कर्ज की ब्याज दर घटायेंगे और अधिक कर्ज भी देंगे।   

नोटबंदी के सन्दर्भ में अभी तक के घटनाक्रम से, सरकार व RBI के बयानोँ से यह भी लगता है कि रिजर्व बैंक के पास नोटों की कमी पहले रही होगी अब तो नहीं है; परन्तु शायद सोच-समझ कर एक रणनीति बनाकर नये नोट धीरे-धीरे ही जारी किए जा रहे हैं। इसीलिए एटीएम से निकासी की सीमा भी जल्दी नहीं बढाई जा रही है; ताकि अधिक समय तक लोगों के पास नगदी कम ही रहे और वे डिजिटल लेन-देन के अभ्यस्त बनें और व्यवस्था में अधिक पारदर्शिता आये और सरकार के राजस्व में भी लगातार बढ़ोतरी होती रहे।  

इस तरह से समझे तो यह कहना उचित ही होगा कि नोट बंदी के जो उद्देश्य बताये गए थे वे अधिकांशतः पुरे हुए हैं और जो सबसे विवादित मकसद कालेधन संबंधी है वह भी जिस तरह से सोचा गया था उस तरह तो नहीं लेकिन अन्य तरह से बहुत हद तक पूरा हुआ है।  उपरोक्त सभी लाभ हासिल करने के तरीके यदि सरकारी मशीनरी ने असल में पुरे भुना लिए तो अनुमान किया जा सकता है कि उनसे भारत सरकार को 5 लाख करोड़ रुपए तक की धनराशि अपनी विकास योजनाओ व गरीब कल्याण के लिए मिल सकती है। अब यह प्रधानमंत्री मोदी के लिए ही नहीं, सम्पूर्ण सरकारी मशीनरी के लिए नयी चुनौती है और विशेषकर तो IT Department, ED, CBI, ACB आदि जांच व आर्थिक अपराधों पर कार्यवाही करने वाली सरकारी संस्थाओं की कड़ी परीक्षा है।

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