नए साल के साथ ही साथ अब धीरे धीरे कड़कड़ाती ठंडक के बीच में अब त्योहारो ने भी अंगड़ाइयां लेना शुरू कर दिया है. साल की 12 संक्रांतियों में से मकर संक्रांति का सबसे ज्यादा महत्व है क्योंकि इस दिन सूर्य देव मकर राशि में आते हैं और इसके साथ देवताओं का दिन शुरु हो जाता है। इसलिए मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान और पूजन का बड़ा ही महत्व है। लेकिन इन सबसे ज्यादा महत्व है सूर्य देव का अपने पुत्र शनि के घर में आना। इस साल मकर संक्रांति पर कुछ ऐसा संयोग बना है जिससे सूर्य और शनि दोनों को एक साथ खुश किया जा सकता है और यह ऐसा संयोग है जो कई वर्षों के बाद बना है। यह वैदिक उत्सव है।
इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। गुड़–तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बाँटा जाता है। इस त्यौहार का सम्बन्ध प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और कृषि से है। ये तीनों चीज़ें ही जीवन का आधार हैं, दरअसल इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को है क्योंकि इस दिन सूर्य देव सुबह 7 बजकर 38 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं।
मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं।
लगाए सागर-संगम में पुण्य डुबकी:
भारत की नदियों में सबसे पवित्र गंगा, गंगोत्री से निकल कर पश्चिम बंगाल में जहां उसका सागर से मिलन होता है, उस स्थान को गंगासागर कहते हैं. इसे सागरद्वीप भी कहा जाता है. यह स्थान देश में आयोजित होने वाले तमाम बड़े मेलों में से एक, गंगासागर मेला, के लिए सदियों से विश्व विख्यात है. हिन्दू धर्मग्रन्थों में इसकी चर्चा मोक्षधाम के तौर पर की गई है, जहां मकर संक्रांति के मौके पर दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु मोक्ष की कामना लेकर आते हैं और सागर-संगम में पुण्य की डुबकी लगाते हैं. एक आकलन के मुताबिक़ साल 2017 में यहां 20 लाख लोगों के आने की उम्मीद है.
तमिलनाडु में मकर संक्रांति का पर्व पोंगल के रूप में मनाया जाता है:
संयोग की बात है कि मकर संक्रांति के दिन शनिवार का योग भी बन रहा है। शनिवार के दिन मकर संक्रांति का होना एक दुर्लभ संयोग है। तमिलनाडु में मकर संक्रांति का पर्व पोंगल के रूप में मनाया जाता है, जिसे वहां माद्दू पोंगल कहा जाता है। यह पर्व कृषि से ही संबंधित है। जनवरी तक तमिलनाडु की फसल की मुख्य फसल गन्ना व धान पक कर तैयार हो जाती है। जब किसान अपने खेतों में लहलहाती फसलों को देखता है तो वह भगवान के प्रति अपना आभार व्यक्त करने के लिए पोंगल का त्योहार मनाता है।
पोंगल के त्योहार में मुख्य रूप से बैल की पूजा की जाती है क्योंकि बैल के माध्यम से किसान अपनी जमीन जोतता है। गाए व अन्य पशुओं को सजाया जाता है। उनके सींगों पर चित्रकारी की जाती है। उसके बाद भगवान को नई फसल का भोग लगाया जाता है व गाए व बैलों को भी गन्ना व चावल खिलाया जाता है।
इस अवसर पर बैलों की दौड़ और अन्य खेलों का भी आयोजन होता है। पोंगल के तीसरे दिन बहनें अपने भाइयों के लिए मंगलकामनाएं करती हैं और भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं।