नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने व्यक्तिगत करदाताओं के लगभग 10.52 लाख फर्जी पैनकार्ड को देश की अर्थव्यवस्था को लेकर नुकसान पहुंचाने वाला बताया है। न्यायालय का कहना था कि यह बेहद गंभीर बात है। इस दौरान 11.35 लाख फर्जी या नकली पैन नंबर्स की पहचान की गई है जिसमें 10.52 लाख प्रकरण व्यक्तिगत करदाताओं से संबंधित हैं। न्यायालय ने अटाॅर्नी जनरल मुकुल रोहतगी की इस बात पर ध्यान दिया जिसमें कहा गया था कि फर्जी पैन कार्ड के माध्यम से फर्जी कंपनीज़ को धन पहुंचाने का उपयोग किया गया था।
संविधान पीठ ने इस मामले में कहा कि यदि आधार का उपयोग किया जाता है तो फिर कालेधन का असंगत हस्तांतरण रूक जाता है। आखिरकार कंपनियां तो लोगों द्वारा ही चलाई जाती हैं और ये अपनी पहचान दिखाने के लिए डाॅक्युमेंट प्रस्तुत करते हैं ऐसे में इनके माध्यम से कालेधन की हेरफेर की जाना संभावित है। न्यायालय ने कहा कि पैन कार्ड को जारी करने के ही साथ टैक्स रिटर्न दायर करने में आधार को अनिवार्य करने की आयकर कानून की धारा 139 को वैध बताया गया है।
इस दौरान 157 पन्ने के निर्णय में इस तरह की बात कही गई हैै। न्यायालय ने इसे लागू करने को लेकर आंशिक रोक लगा दी। न्यायालय ने कहा कि कानून की धारा 139 आयकर रिटर्न दायर करने और पैन कार्ड के डिस्ट्रीब्यूशन को लेकर याचिका दायर करने के लिए दिए जाने वाले आवेदन के पजीकरण से जुड़े पंजीकरण की जानकारी को अनिवार्य बना देती है।
इस तरह की बात 1 जुलाई से लागू की जाना है। न्यायमूर्ति एके सीकरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने दलील देने का प्रयास किया कि फर्जी पैन कार्ड वाले लोग केवल 0.4 प्रतिशत ही हैं। जिसके बाद किसी तरह के प्रावधान की आवश्यकता नहीं होती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा आईटी रिटर्न के लिए आधार अनिवार्य नहीं, PAN से भी हो सकता है दाखिल
NEET के नतीजों पर लगी रोक को CBSE ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती